संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 14-01-2021
प्रत्येक वर्ष आंग्ल कैलेण्डर के हिसाब से यह 14 जनवरी को मकर संक्रांति पड़ती है। माघ का महीने की कड़ाके की ठिठुरती सर्दियों के बीच जब खरीफ की कटाई हो चुकती है, किसान नया अनाज घर लाता है, रबी की फसल खेतों में लहरा रही होती है, सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्राति मनाई जाती है। कृषि प्रधान भारत क्षेत्र के हर प्रान्त में यह अलग-अलग नामों से मनाई जाती है। कहीं यह पोंगल है, कहीं लोहड़ी, कहीं खिचड़ी और कहीं बिहू के नाम से यह जाना जाता है।
अंग्रेज़ी नववर्ष में सबसे पहला पर्व है जो सारे भारतीय मनाते हैं। मकर संक्रांति पर्व को धार्मिक, ज्योतिषीय, स्वास्थ्य और विज्ञान के उद्देश्य से अति महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिषीय मान्यताओं में जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उससे प्राकृतिक वायुमण्डल एवं जीवन में व्यवहार व स्वभाव में परिवर्तन आता है, इसे ही संक्रान्ति काल कहा जाता है और परिवर्तन की त्वरित स्थिति को ही संक्रान्ति संज्ञा दी गयी हैं। जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है, तो उसी समय को मकर संक्रांति कहते है। मकर संक्रांति के बाद ही मौसम में भारी परिवर्तन दिखाई देने लगता हैं।
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण से यहाँ पर रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं अर्थात् सर्दी का मौसम होता है। किंतु मकर संक्रान्ति से सूर्य ऊत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाते हैं। अतः इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है । दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अतः मकर संक्रान्ति पर सूर्य राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।
सूर्य सौरमंडल का सबसे चमकदार और प्रकाशवान ग्रह है। ज्योतिषीय गणनाओं में इसका बहुत महत्व है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अंतराल पर होती है। इसी कारण सारे भारतवर्ष में लोग विविध रूपों में सूर्य की उपासना, आराधना एवं पूजन कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। सामान्यतः भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।
ज्योतिषीय मान्यता में चावल चंद्रमा का और उड़द दाल शनि का प्रतीक है। इन दोनों के संयोग में हरी सब्जियां बुध ग्रह का प्रतीक हैं। इन सबका मेल मानसिक, खनिजीय और बौद्धिक क्षमता को बढाता है, जिससे मंगल और सूर्य भी बली हो जाते है। मकर संक्रांति को सूर्य उत्तरायण में जाते ही समस्त नौ ग्रह भी सकारात्मक परिणाम की ओर अग्रसर होते हैं।
शास्त्रीय महत्व के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान आदि का क्रिया-कलापों का विशेष महत्व है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगा तट पर दान को अत्यंत शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
इस बारे में कुछ और भी कहानियाँ हैं। मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह के अपने देह त्याग के लिए मकर संक्रान्ति का चयन करने की कथा तो सभी को ज्ञात है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन गंगा भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इस तरह राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जिस स्थान पर गंगा का सागर में मिलन हुआ था, वह स्थान गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध है। राजा भागीरथ ने इस दिन गंगासागर में अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था। तभी से यह परंपरा भी पड़ी कि लाखों लोग मकर संक्रान्ति के दिन स्नान कर अपने पितरों का तर्पण करते हैं।
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