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Rishi Panchami - ऋषी पंचमी व्रत नियति (भाग्य) को सुधारने के साथ रजस्वला दोष से मुक्ति का मार्ग है।


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संकलन : जाह्नवी पाण्डेय तिथि : 12-09-2023

ऋषियों को समर्पित करते हुए एक दिवस ऋषि व्रत।

सभी सनातनी ने बाल्यावस्था से ऋषियों की गाथा, वर्णन, वृतान्त आदि अनेको प्रसंग सदा से सुनते चले आ रहे होंगे, किन्तु ऋषियों का सम्पूर्ण और वास्तविक ज्ञान सनातनियों में अल्प है, जिसको संभवतः अनादि वैदिक ऋषियों को कल्प से आदि का ज्ञान था, इसीलिए सनातन संस्कृति में एक दिन पूर्णतः ऋषियों को समर्पित करते हुए ऋषि व्रत का प्राविधान किया होगा, जिसे आज के परिवेश में ऋषी पंचमी के त्यौहार की मान्यता प्राप्त हैं, किन्तु ज्ञान और तथ्यों की जानकारी का अभाव भारतीय मानस में इसको उतना महत्त्व नहीं देता, जितना इसका प्रताप है।

रजस्वला दोष से मुक्ति,ऋषि पंचमी पूजन।

वास्तव में ऋषी पंचमी, ऋषियों की गाथा और उनके प्रताप के सोपान का दिवस है, जिसे प्रत्येक भारतीय को भोग करना चाहिए। सभी ज्ञात-अज्ञात ऋषियों, सप्त ऋषियों, समस्त वेद की परम्परा के मूल पुरुष ब्रह्मा (ऋषि) को अपने जीवन स्थापित करने का दिवस ही ऋषि पंचमी पूजन है।
सनातन संस्कृति में भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की पंचमी को सप्त ऋषियों के पूजन का विधान प्राविधानित है, जिसके कारण इसे ऋषि पंचमी कहा जाता है। शास्त्रानुसार मान्यता है कि ऋषि पंचमी को शास्त्रोक्त व्रत का पालन करने से स्त्रीयां रजस्वला दोष से मुक्ति पाती हैं। ये भी मान्यता है कि महिलाएं ऋषि पंचमी व्रत के दौरान गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें, तो इस व्रत का फल कई गुना बढ़ता है।
स्त्रीयों के लिए रजस्वला होना, एक स्वभाविक प्रक्रिया है। जिसके प्रभाव से उनमें ऊर्जा, सौंदर्यता की वृद्धि साथ आरोग्यता भी आती है, किन्तु रजस्वला काल स्त्रीयों के लिए अशुद्ध और अपवित्र माना जाता है। जिसमे उन्हे देव-स्थल व पाक-गृह में जाना वर्जित किया जाता है। ऐसे में अज्ञानता या आपात परिस्थितियों में रजस्वला काल के मध्य देव-स्थल और पाक-गृह मे स्त्रीयों को प्रवेश करने का दोष लगता हैं, प्रायः जिसकी मुक्ति के लिए स्त्रीयों को सप्तऋषियों के पूजन का प्रविधानित है।
यह व्रत मनः पाप विचारो से छुटकारा दिलाने में सहायक ही सिद्ध होता है। ऋषि पंचमी को बहने भी अपने भ्राताओं की सुख व लम्बी उम्र की कामना के निमित्त व्रत व् पूजा भी करती हैं और कई परम्पराओं और क्षेत्रो में ऋषी पंचमी को रक्षाबंधन का पर्व मानते हुए बहने भाइयों को रक्षिका सूत्र (राखी) भी बाँधती है।

ॠषित्येव गतौ धातु: श्रुतौ सत्ये तपस्यथ्। एतत् संनियतस्तस्मिन् ब्रह्ममणा स ॠषि स्मृत:॥

वायु पुराण, मत्स्य पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराण में ऋषि शब्द का व्यापक वर्णन मिलता है। शास्त्रोक्त दर्शन करने वाला, तत्वों की साक्षात अथवा अपरोक्ष अनुभूति रखने वाला विशिष्ट पुरुष को ही ॠषि का संज्ञा दी जाती है, किन्तु उक्त श्लोक के अनुसार 1. गति 2. श्रुति 3. सत्य तथा 4. तपस्, ये चारों वस्तुएँ ब्रह्माजी के द्वारा जिस साधको में नियत कर दी जायें,  वही ‘ॠषि’  होता है। ऋषी शब्द के अनेक अर्थ बताए गए हैं, लेकिन समस्त वेद की परम्परा के मूल पुरुष ब्रह्मा जी सर्व प्रथम ऋषि हैं, जिनके साथ सप्त ऋषियों का आवाहन पूजन करने से व्रती को 1.गति 2.श्रुति 3.सत्य तथा 4.तपस् का फल मिलता है। जिसके प्रताप एवं बल पर व्रती स्वतः ही मनः पापक बोध से निवृत्त हो जाता है।

ऋषि पंचमी व्रत से व्रती के पापात्मक विचार में सुधार

जीवन में शुद्धता और पवित्रता की सत्कामना को ऋषि पंचमी व्रत पूर्ण करता है। यह व्रत विचारों (नियत) को शुद्ध करता है और नियत ही नियति (भाग्य) के विधान को स्थापित करती है। इसलिए यह व्रत व्रती की भाग्य को सुधार सकता है, इसे पुरुष भी करते है। ऋषि पंचमी व्रत से व्रती के पापात्मक विचार सुधार कर सांसारिक आडम्बर से दूर भक्ति और आनंद का रूप मानव धारण कर लेता है। इस यह व्रत मोक्ष और परम ब्रह्म को प्राप्त का वैदिक मार्ग है, जिसका अनुसरण प्रत्येक वर्ष एक बार अवश्य करना चाहिए।

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