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Ganesh Chauth - शिव व गौरी पुत्र गणेश जी के अवतरण तिथि चतुर्थी में भी वैज्ञानिकता है।


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 11-09-2023

गणेश जी भक्त की सरसता और सरलता में जीवन रस की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं

अनादिकाल से ही गणेश महाराज को बुद्धि के देवता एवं सभी देवताओं में प्रथम देवता के रूप में सर्वोपरि व अग्रिणी स्थान मिला हुआ है तथा इन्हें सभी कष्टों के निवारण और निराकरण करने वाला माना जाता है। गणेश जी को संकट हरने वाला और विघ्ननाशक भी कहा जाता है। गणेश जी भक्त की सरसता और सरलता में जीवन रस की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं, क्योंकि गणेश महाराज की कृपा से यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, तेजस्विता, प्रखर बुद्धि, विवेक, विद्या एवं ज्ञान में शुभता एवं वृद्धि मिलती है।
सनातन संस्कृति में हर वर्ष में आने वाले प्रत्येक माह की सभी तिथियों का अपना ही एक महत्व प्रदर्शित होता है। ज्योतिष शास्त्रों के मतानुसार चतुर्थी तिथि को शिव व गौरी पुत्र भगवान गणेश अवतरित हुए थे। इसीलिए चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को अतिप्रिय है। यह तथ्य सभी सनातनियों को ज्ञात हैं कि प्रत्येक माह में दो चतुर्थी मनाई जाती है, जिसके अधिष्ठाता देवता भगवान गणेश को माना गया है। प्रत्येक सनातनी याचको को दो बार ज्ञान, विज्ञान, विवेक, बुद्धि एवं आत्मचेतना के देव गणेश जी की कृपा प्राप्त करने का सुअवसर मिलता हैं, जिसमें गणपति को समर्पित शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक (वरद) एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी संज्ञा प्राप्त है। भगवान गणेश मन को पढ़ने मे निपुण माने जाते है, इसलिए भक्त के मन की कोई बात गणपति जी से गुप्त नहीं रह सकरी है। 

गणपति पूजा से चतुर्थी तिथि का वैज्ञानिक संबंध

पूर्णिमा और अमावस्या का सीधा सम्बन्ध भी मन की चेतना से जुड़ता है, जिसमें अमावस्या के पश्चात की चतुर्थी का सीधा सम्बंध मन की नव चेतना से हो जाता है एवं पूर्णिमा तक पहुँचते-पहुँचते मन की गति उर्ध अवस्था तक आ जाती है और पुनः अमावस्या तक पहुँचते-पहुँचते मन की गति क्षीण अवस्था तक रह जाती है। इसीलिए अमावस्या के पश्चात की चतुर्थी से मन भी नयी क्रियों, विषयों एवं नव सृजन की ओर जाने लगता है, जिससे मन की गति, स्थिति निर्मल व शुद्धता से पूर्ण हो जाती है। इन्ही पर आधारित विद्या और बुद्धि के देव गणेश जी का आवाहन एवं पूजन कर बौद्धिक स्थिरता का वर चतुर्थी तिथि से पाया जा सकता है।
चतुर्थी तिथि से पाठको, शिक्षार्थियों, ज्ञान-विज्ञान से जुड़े एवं बच्चों के लिए ज्ञान-विज्ञान को नया संचार मिलने के कारण महत्वपूर्ण ही माना गया है। चतुर्थी तिथि से ही पूर्ण वर्ष की दोष पूर्ण या अधूरी शिक्षा एवं ज्ञान में पूर्णता मिलती है। प्राचीन काल में चतुर्थी तिथि को शुभ मुहूर्त में बच्चों से विद्या अध्ययन आरंभ करवाया जाता था। सम्भवतः इन्हीं तथ्यों के अनुरूप ही गणेश को विद्यावारिधि, शुभगुणकानन, गुणिन, बुद्धिप्रिय, बाल गणपति इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। गणपति गणनायक गणेश जी का विधि-विधान से पूजन पाठ और व्रत अनादिकाल से होता आ रहा है।
गजानन जी के पूजा के साथ-साथ चंद्र दर्शन और अर्घ्य का भी विशेष महत्व है। सूर्योदय से शुरू होने वाला चतुर्थी व्रत चंद्र दर्शन के बाद समाप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को औषधियों का स्वामी और मन का कारक है। चंद्रदेव को अर्घ्य देकर गणनायक की पूजा से बच्चों की उम्र लंबी और स्वास्थ्य के उत्तम होने के साथ ही सौभाग्य की वृद्धि होती है। गणेश जी को अत्यधिक सरल भाव से पूजित करने से वे सर्वाधिक प्रसन्न हो जाते है।

गणपति पूजा में ध्यान देने योग्य बातें :-

गजपति गणानाथ के पूजन की विधि

चतुर्थी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करके व्रत का संकल्प लें, फिर पूजा स्थल या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माटी या शक्कर या गोबर से निर्मित गजपति जी की मूर्ति एवं नये लोटे या कलश को नियमानुसार स्थापित कर गणेश जी को पीले वस्त्र अर्पित कर, उन्हें पंचोपचार विधि से (गंगाजल अभिमंत्रित) फूल, धूप, दीपक, सुगंध, चंदन, जनेऊ, सुपारी, पान, लोंग, ईलायची, तिल, फल, 21 दूर्वा, नैवेद्य और मोदक या लड्डू का भोग अर्पित करें। इसके बाद गणेशबीज मंत्र (ॐ श्री गंगणपतये नम:) का जाप कर गणेश चालीसा का पाठ, चतुर्थी व्रत कथा सुनकर गाय का घी व गुड़ अथवा चीनी युक्त या खीर में कनेर का पुष्प मिलाकर हवन करना चाहिए। अंत में गणेश जी की आरती कर सन्ध्या को चांदी या मिट्टी के बर्तन में पानी में थोड़ा सा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत या पूजा को समाप्त करें। तदोपरान्त पूजन समाप्ति के पश्चात यथासंभव भोग या प्रसाद अवश्य बांटे।

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