संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 04-09-2023
गोस्वामी जी के अनुसार -
अर्थात भूमि, आकाश, वायु, अग्नि और नीर- इन पाँचों तत्वों के सम्मिलित तत्व से जीवन सृजित हुआ है और जब आत्मा के शरीर त्यागने पर पंचतत्व में ही विलीन हो जाता है। सृष्टि के इन पंचतत्व को चलाने वाली शक्ति, विश्वास और अनुभूत को ही "भगवान" शब्द से संबोधित किया जाता है। भगवान सरल, सुलभ और शुद्ध रखने का सबसे उत्तम उपकरण है। मन ही "भगवान" का सर्वोत्तम निवास स्थान है, ब्रह्मा विष्णु और महेश व अन्य देवता भी मन में ही विराजमान है, जिन्हें शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध विचार और शुद्ध अंतःकरण से पाया जा सकता है।
ऐसे ही विष्णु के एक आयाम को कृष्ण रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनमें सम्पूर्ण संसार विलीन हो जाता है, सांसारिक प्राण और आत्मा में मै (अहंकार) छुपा हुआ है, जिसे कृष्ण अपने में समाहित कर लेते है। कृष्ण के अस्तित्व में सम्पूर्ण अहंकार के विलीन होते ही मै का अस्तित्व भी नहीं होता है। जो भी हम स्पर्श करते हैं, जो भी हम देखते हैं, जो भी हम सुनते हैं, जो भी हम मनः इच्छाओं और वृत्तियों अनुसार चाहते हैं, वह सब श्री कृष्ण के श्रीचरणों में स्वतः कृष्ण का हो जाता है।
अत: एक बुद्धिमान साधक मोक्ष के पथ पर मुक्ति के स्वर्णमय आनन्दित जीवन की कामना से व्यावहारिक गुण के साथ मै (अहंकार) को योग्य पात्र के रूप में कर्तव्य बोध सहित इन चरणों समर्पित कर देता है. यह बुद्धिमती पर निर्भर करता है कि मानसिक वृत्तियों या आवश्यकताओं के अनुसार कृष्ण से क्या मांगते हो। क्योकि कृष्ण तो एक मार्ग मात्र है, जो अन्तत: बिना किसी अपवाद के सब को समाहित कर लेते है। सांसारिक जीवन में सब कुछ मन से चाहूओर घूमता है- चाहे वह छोटा व्यास बना कर घूमे अथवा बड़ा व्यास बना कर। मन के पास अन्य कोई विकल्प ही नहीं है, लेकिन मन कृष्ण के श्रीचरणों में जाते ही कृष्ण का हो जाता है।
हिंदी व्याकरण में कृष् धातु से अर्थ उपजता है - खेत जोतना और आकर्षित करना और व्यंजन संधि के अनुसार कृष+न से निर्मित होता है – कृष्ण अर्थात जो प्रत्येक प्राणी को आकर्षित कर अपने प्रभाव में खींच लेते हैं। उन श्री कृष्ण जी को केशव, क्रुणाल, कृष्ण्देव, कृपा, केदार, कान्हा, सुमेध, श्रीकांत, माधव, मदन, गोपाल, गोपाला गोविन्द, नारायण इत्यादि अनेको नामो से जाना जाता है। अन्य क्रमागत लीलाओ के कारण कृष्ण भगवान को छलिया एवं काली-कमली भी बोला जाता है।
भक्ति और प्रेम का जीवन दर्शन ही कृष्ण भक्ति में समर्पित है. कृष्णा का प्रेम अनुरागी, बैरागी और अलख अलौकिक है, जिसे शब्द सीमाओं में पिरोया ही नहीं जा सकता है। बस अनुरागी ह्रदय को कृष्णा मार्ग में गतिमान करिए और आनन्द के महासमुद्र को पा लीजिये।
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