संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 17-02-2022
सनातन पंचांग अनुसार संवत्सर के समापन का मास है फाल्गुन मास, जिसके समाप्त होते ही नए संवत्सर वर्ष का प्रारम्भ हो जाता है। फाल्गुन मास को फगुनई व फागुनी नाम से भी जाना जाता है। फाल्गुन नाम आते ही रोम-रोम में ऊर्जा, उत्साह और प्रफुल्लित मन की अनुभूति जागृत हो जाती है। यह माह धार्मिक होने के साथ सकारात्मक सोच, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक उपयोगिता से भी ओतप्रोत रहता है।
परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, फाल्गुन नाम आते ही तीज-त्योहार, सकारात्मक ऊर्जाओं और प्रसन्नताओ की परिपूर्ण परिलक्षित होती है। संपूर्ण प्राकृतिक परिवेश में प्रकृति में नयापन, नवऊर्जा का संचार, सुंदर रूपवान छटा चहुओर दिखने से मन स्वयं ही उत्सव मनाने का करने लगता है, इन्ही आधार पर ही फगुनई व फागुनी को बसंत बहार भी पुकारा जाता है।
फाल्गुन मास में दिन गर्म और रात्रि सर्द होने लगती है और गर्मी का आगमन आरम्भ हो जाता है। आनंद और उल्लास के मास की नई चेतना लोगों में नवऊर्जा सृजन के साथ धार्मिक दृष्टि से और पर्यावर्णीय प्रभावों से भी अतिविशिष्ट हो जाता है। फाल्गुन मास में सनातन संस्कृति का सबसे महावपूर्ण पर्व होली बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है।
फाल्गुन माह और मास के पर्व सामूहिक संदेश देते हैं कि जीवन में कर्मठता व सही दिशा का चयन करें, जिससे मृत आशा और आकांक्षा के भाव जागृत हों और जीवन सकारात्मक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहे, क्योंकि मानव जो भी कर्म करता है, ईश्वर भी उसी के अनुरूप ही परिणाम देते हैं।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार भी इस मास से गर्म अथवा गुनगुने जल से स्नान का त्याग कर ठंडे जल स्नान करना चाहिए, जिससे रोग व्याधियाँ उत्पन्न होने से पूर्व ही समाप्त होने लगती है। सम्भवतः इसी कारण से फाल्गुनी अमावस्या को गंगा स्नान का विशेष महत्व हो जाता है।
पावन फाल्गुन मास में धार्मिक मान्यतानुसार अपनी क्षमता के अनुरूप निर्बल व निर्धनों की किसी भी प्रकार से सहायता कर देने से पित्रों को तर्पण, पिण्डदान इत्यादि करने का महान फल अवश्य मिलता है, इसलिए पावन फाल्गुन मास में दान करने का विशेष महत्व है। नारद पुराण के मतानुसार फाल्गुन मास में अन्न, जल, स्वर्ण, रजत, वस्त्र, शुद्धघृत (घी), तिल, सरसों तेल, मौसमी फल आदि का दान करने से अक्षय-पुण्य का फल मिलता है। इसलिए तीर्थ व संगमों पर श्रद्धा से स्नान कर दान देने की परंपरा है। फाल्गुन मास में दान अत्यंत ही पुण्य फल प्रदान करने वाला माना गया है।
फाल्गुन माह में चंद्रदेव का जन्म:-
अधिकांश सनातन धर्मियों के मन में प्राय: प्रश्र अवश्य आता है कि क्यो संवत्सर वर्ष के अंतिम माह का नामकरण फाल्गुन है। जिसका उत्तर सनातन ज्योतिष शास्त्रो से मिलता है। नक्षत्रो मे उत्तरा फाल्गुनी और पूर्वा फाल्गुनी नामक दो नक्षत्रो का उल्लेख मिलता है। इस माह के पुर्णिमा तिथि को चंद्रमा महाराज उत्तरा फाल्गुनी और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में ही विचरण करतें हैं, जिनके आधार पर इस माह को फाल्गुन मास की संज्ञा प्राप्त है।
पौराणिक शास्त्रों में वर्णन है कि चंद्र महाराज का अवतरण जन्म फाल्गुन माह में हुआ था और इस माह में पवित्र और पावन मनः स्थिति मे रहते हैं, इसी कारण से फाल्गुन मास की पुर्णिमा को मनवादी (मंवादी) तिथि मानते हुए चंद्रदेव का जन्मदिन भी मनाने की परम्परा भी प्रचलन में है। चंद्रदेव की उपासना फाल्गुन माह में करना, जीवन में सुख-शांति, समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। यह मास अध्यात्म के उत्सव का भी माह है, जिसमे चंद्रदेव के सहित भगवान शिव-शम्भू, श्रीकृष्ण की उपासना विशेष फलदायी है।
अध्यात्म के उत्सव का माह:-
फाल्गुन (फगुनहट) से जुड़े अन्य तथ्य:-
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