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BEL PATRA - दर्शनम्‌ बिल्व पत्रस्य, स्पर्शनम्‌ पाप नाशनम्‌.....बिल्वपत्र चढ़ाने से 1 सहस्त्र कन्यादान के समान पुण्य होता है।


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 08-02-2022

बेल का वृक्ष संपूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल है और बेलपत्र के दर्शन व स्पर्श करने मात्र से पाप शमन होता है। प्रभु आशुतोष के पूजन व अभिषेक में बिल्वपत्र का स्थान सर्वप्रथम है। जिसके विषय में स्कंद पुराण में स्पष्ट वर्णन है कि मंदराचल पर्वत पर माता पार्वती के पसीने की बूंद गिरने से बेल का वृक्ष उत्पन्न हुआ। चूंकि बेल के वृक्ष का उद्भव माता पार्वती के पसीने से हुआ, इसलिए इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं।
बेल वृक्ष की जड़ में गिरिजा स्वरूपा, तनों में माहेश्वरी स्वरूपा, शाखाओं में दक्षिणायनी, फलों में कात्यायनी स्वरूपा, फूलों में गौरी स्वरूपा और पत्तियों में पार्वती जी साक्षात स्वयम बसती या निवास करती हैं। इन सब के अतिरिक्त समस्त बिल्ववृक्ष में माँ लक्ष्मी भी निवास करती है। इसीलिए बेलपत्र माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाकर प्रसन्न किया जाता हैं और प्रसन्नता पूर्वक भगवान शिव अपने भक्तो की मनोकामना पूर्ण करते हैं। सनातनी ऋषियों का कथन है कि भोले-भंडारी को बिल्वपत्र चढ़ाने से 1 सहस्त्र कन्यादान के समान पुण्य होता है। सनातन श्लोक ('दर्शनम्बिल्व पत्रस्य, स्पर्शनमं पाप नाशनम्‌') से स्पष्ट है कि बिल्वपत्र भगवान भोलेनाथ शिव को ही क्यो इतने प्रिय हैं।
इस वृक्ष के नीचे स्तोत्र जप-तप, पूजन-पाठ और यज्ञ-दान करने से पुण्य फल में अनन्त गुना की वृद्धि के साथ शीघ्रता से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। (अमृतोद्भव श्री वृक्ष महादेवत्रिय सदा। गृहणामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।।') बिल्व पत्र सभी देवी-देवताओं को अर्पित करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। पूरी दण्डी सहित बिल्वपत्र तोड़कर भगवान सूर्यनारायण को समर्पित करने से वे भी प्रसन्न होते हैं। ('न यजैद् बिल्व पत्रैश्च भास्करं दिवाकरं वृन्तहीने बिल्वपत्रे समर्पयेत') बेल फल की समिधा से यज्ञ अथवा हवन करने से लक्ष्मी का आगमन होता है। यदि साधक स्वयं बिल्वपत्र तोड़ें और मंत्र व श्रोतों का जप करने से रोग व्याधियां समाप्त होती है। बिल्वपत्र के सेवन से कर्ण सहित अनेक रोगों का शमन होता है।

बिल्वपत्र कब न तोड़ें:-

लिंगपुराण अनुसार चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति काल एवं सोमवार को बिल्वपत्र तोड़ना निषिद्ध माना गया है। बिल्वपत्र सदैव ही उपयोग हेतु ग्राह्य है। बिल्वपत्र शिव या अन्य देवताओं को समर्पित करने के लिए किसी भी दिन या काल को जानने की आवश्यकता नहीं है। जिन काल अथवा तिथि में बिल्वपत्र तोड़ना निषिद्ध है, उन्ही काल अथवा तिथि में बिल्वपत्र चढ़ाने के लिए साधक को एक दिन पूर्व ही तोड़ना चाहिए। बिल्वपत्र कभी भी बासी, कभी भी अशुद्ध नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण के इस श्लोक (अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:। शंकरार्यर्पणियानि न नवानि यदि क्वाचित।।') में आज्ञा है।
बिल्वपत्र के वे ही पत्र पूजार्थ उपयोगी हैं, जिनके त्रिसंख्या या उससे अधिक संख्या वाले पत्र एक साथ संलग्न हों। त्रिसंख्या से न्यून पत्ती वाला बिल्वपत्र पूजन योग्य नहीं है। पत्र की संख्या में विषम संख्या का ही विधान शास्त्रसम्मत है। प्रभु को समर्पित करने के पूर्व बिल्वपत्र की डंडी की गांठ तोड़ देना चाहिए। सारदीपिका के श्लोक ('स्युबिल्व पत्रमधो मुखम्') अनुसार बिल्वपत्र को नीचे की ओर मुख करके (पत्र का चिकना भाग नीचे रहे) ही चढ़ाना चाहिए। किसी भी पूजन या शिव पूजन में बिल्वपत्र का उपयोग अतिआवश्यक एवं पापों का क्षय करने वाला होता है।

बिल्वपत्र चढ़ाने का फल:-

किसी भी शिवरात्रि, श्रावण, प्रदोष, ज्योतिर्लिंग, बाणर्लिंग में भगवान रुद्र को पूजन में बिल्वपत्र समर्पित करने से अनन्त गुना पुण्यफल मिलता है। यदि किसी कारणवश बिल्वपत्र की उपलब्धता न हो, तो स्वर्ण, रजत, ताम्र के बिल्वपत्र बनाकर भी पूजन कर सकते हैं। ऐसा करने का फल भी वनस्पतिजन्य बिल्वपत्र के समकक्ष है। यदि किसी संकल्प के नि‍मित्त बिल्वपत्र चढ़ाना हो, तो प्रतिदिन समान संख्या में या वृद्धि क्रम की संख्या में ही उपयोग करना चाहिए। अधिक संख्या के पश्चात न्यून संख्या में नहीं चढ़ाना चाहिए। पुराणों में उल्लेख है कि एक आक पुष्प, 1 कनेर फूल और एक बिल्व पत्र संयुक्त रूप से चढ़ाने से 10 स्वर्ण मुद्रा दान के बराबर का पुण्यफल मिलता है। बेलवृक्ष के दर्शन व स्पर्श से कई प्रकार के पापों का शमन होता है, तो इस वृक्ष को काटने, तोड़ने या उखाड़ने से लगने वाले पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं। अत: किसी भी स्थिति मे इस वृक्ष को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील रहना आध्यात्मिक एवं पर्यावरण दोनों की दृष्टि से लाभकारी है।

बिल्वपत्र चढ़ाने के नियम:-

यदि बिल्वपत्र पर चंदन या अष्टगंध से ॐ, शिव पंचाक्षर मंत्र या शिव नाम लिखकर चढ़ाने से व्यक्ति की दुर्लभ कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कालिका पुराण के अनुसार चढ़े हुए बिल्व पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) से पकड़कर उतारना और चढ़ाने के लिए सीधे हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) एवं अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए। तीन जन्मों के पापों के संहार के लिए सत्व-रज-तम का प्रतीक त्रिनेत्र रूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र इस मंत्र ('त्रिदलं त्रिगुणाकरं त्रिनेत्र व त्रिधायुतम्। त्रिजन्म पाप संहारं एकबिल्वम शिवार्पणम्।।) को बोलकर अर्पित करना चाहिए।
शिव उपासना अर्थात मंगल कामना की साधना के लिए यदि प्रत्येक शिवभक्त अर्थात कल्याण की आकांक्षा का प्रेमी यदि बेलपत्र के वृक्ष का रोपण एवं उसके पत्र का अर्पण करें, तो देश की अनेक समस्याओं सहित पर्यावरण की समस्या से भी बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आवश्यकता मात्र ऐसे शिवभक्तों की है।

बिल्वपत्र के बारे में महत्वपूर्ण बातें-

बिल्वपत्र 6 महीने तक बासी नहीं होता और एक बार शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है। कई जगह शिवालयों में बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं हो पाने पर इसके चूर्ण को चढ़ाने का विधान भी है।
बिल्वपत्र को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसमें निहित इगेलिन व इगेलेनिन नामक क्षार-तत्व औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह चातुर्मास में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से भी निजात दिलाता है।
यह एक औषधि के रूप में गैस, कफ और अपचन की समस्या को दूर करने में सक्षम है। इसके अलावा यह कृमि और दुर्गंध की समस्या में भी फायदेमंद है । प्रतिदिन 7 बिल्वपत्र खाकर पानी पीने से स्वप्नदोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
मधुमेह के रोगियों के लिए बिल्वपत्र रामबाण इलाज है। मधुमेह होने पर 5 बिल्वपत्र, 5 कालीमिर्च के साथ प्रतिदिन सुबह के समय खाने से अत्यधि‍क लाभ होता है। बिल्वपत्र के प्रतिदिन सेवन से गर्मी बढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाती है।
शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं भक्त को कभी भी पैसों की समस्या नहीं रहती है। बिल्वपत्र को तिजोरी में रखने से भी बरकत आती है।
कुछ विशेष तिथि‍यों पर बि‍ल्वपत्र को तोड़ना वर्जित होता है। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति पर बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए।
सोमवार के दिन बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए, इसमें शि‍वजी का वास माना जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन दोपहर के बाद भी बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।

बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र:-

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।

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