संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 09-11-2021
सूर्योपासना का यह लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। वेदों के अनुसार जगत रूपी शरीर की आत्मा सूर्य है, जिसके आभाव मे इस सृष्टि की कल्पना करना संभव नहीं है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सेवा का कारक माना गया है। भूलोक और द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक होता है। इस द्युलोक में नक्षत्र, तारों के मध्य में तीनों लोकों को सूर्य प्रकाशित करते हैं। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। भगवान सूर्य से शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है। अनादि काल से सूर्य उपसना की परंपरा निरंतर जारी है।
सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम का पर्व है। छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। आस्था में यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें मूर्ति पूजा नहीं होती है। षष्ठी तिथि (छठ) की पूजा में छठ को माता मानते हुए कठिन व्रत होता है।
छठ पर्व का पौराणिक या सांस्कृतिक महत्व के अतिरिक्त वैज्ञानिक महत्व भी अद्भुत है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य जलता हुआ विशाल पिंड है. इसके गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही सभी ग्रह इसकी तरफ खींचे रहते हैं। अगर ऐसा न हो, तो सभी अंधकार में लीन हो जाएंगे। विशालकाय सूर्य के चारों ओर आठों ग्रह और अनेकों उल्काएं चक्कर लगाते रहते हैं।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। षष्ठी तिथि (छठ) को सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र होती हैं। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के समय मनुष्य पर सूर्य के किरणें पड़ती हैं। इन्ही किरणों के प्रभाव से चर्म रोग नहीं होता है और लोग निरोगी होते हैं। विज्ञान के अनुसार छठ के दौरान सूर्य उपासना करने से ऊर्जा का संचरण स्वास्थ्य को और भी अच्छा बनाए रखता है।
दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है, इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप या ऊर्जा का संचय किया जाता है, ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे। इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं, विशेषकर पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन। छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है, इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है, और छठ महापर्व की परंपरा से मानव की पराबैंगनी किरणों के कुप्रभावों से रक्षा होती है|
कार्तिक महीने की चतुर्थी से आरम्भ होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला ये त्यौहार चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा में पहले दिन व्रत करने वाले भक्त एक समय लहसुन-प्याज़ रहित लौकी की सब्ज़ी, चने की दाल, चावल और मूली का भोजन करते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखकर घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखता है,
दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना का तात्पर्य शुद्धिकरण होता है। इस दिन भोग बनाने हेतु मिट्टी का नया चुल्हा और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। खरना के दिन व्रती संध्या काल में पूजन उपारंत गुड़ की खीर का भोग लगाकर सभी में उस भोग का वितरण करके उस भोग को ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ करता है।
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य होता है, जिसमे संध्या काल में अस्तगत सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। संध्या अर्घ्य के दिन विशेष प्रकार का पकवान ठेकुवा, गुड़, गन्ना, सिंघाड़ा, नारियल, केला, नींबू, हल्दी, अदरक, सुपारी, साठी का चावल, जमीरी, संतरा,और मूली आदि सूर्य देव को चढाए जाते हैं और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती ऊषा काल (सूर्य निकलने से पहले) में रात का रखा हुआ मिश्री-पानी ग्रहण करता है।
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। व्रती छठी माता और सूर्य देव से अपने संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति और उन पर अपनी कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करता है और घर आकर देवी-देवता का पूजन कर प्रसाद को खाकर व्रत का समापन करता है।
लोक परंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी देवी में भाई-बहन का संबंध मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य की पराबैंगनी किरणों में सूर्य की बहन (छठी देवी) का वास होता है, जो कार्तिक महीने की चतुर्थी से आरम्भ होकर सप्तमी तक ही भुलोक में रहती है, यदि इनका पुरे नियम संयम से उपसना कर आशीर्वाद ले लिया जाये, तो पुरे वर्ष सूर्यदेव की कृपा से परिवार मे ऊर्जा का अक्षय भण्डार बना रहता है और शक्ति व ब्रह्मा का वरदहस्त भी प्राप्त होता है लोक मान्यता अनुसार मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। सूर्यदेव की पूजा का महत्व विस्तार पूर्वक उल्लेख विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में प्राप्त होता है। सृष्टिपालन, शक्तिकारक सूर्य की उपासना सभ्यता के अनेक विकास क्रमों में देखी जा सकती है। पौराणिक काल से ही सूर्य को आरोग्य के देवता माना गया है!
सम्पूर्ण जगत में सूर्य ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत है। मूलत: प्रकृति पूजा की संस्कृति वाले भूभाग में सूर्य की पूजा परम्परा किसी भी संस्कृति से बहुत-बहुत पुरानी है। सूर्य को धन्यवाद स्वरुप ही छठ पूजा किया जाता है। ऊर्जा को भगवान मानते हुए सूर्य की पूजा स्वास्थ्य, समृद्धि और प्रगति ही प्रदान करती है।
सूर्योपासना का महापर्व छठ पर्व का सार:-
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