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Laxshami (Dipawali) - लक्ष्मी जी के पूजन से प्रसन्नता, उल्लास, मनोविनोद, और आनन्द प्रप्ति होती है।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 02-11-2021

लक्ष्मी जी के पूजन का शुभ मुहूर्त 4.11.2021 को प्रातः काल 7:33 से 9:51 तक वृश्चिक लग्न,  9:51 से 11:55 तक धनु लग्न,  11: 55 से 13:37 तक मकर लग्न (अभिजित मुहूर्त) 15:05 से 16: 30 तक मीन लग्न,  18:06 से 20:02 तक मेष लग्न व प्रदोष बेला, 20:03 से 22:16 तक मिथुन लग्न 22:17 बजे से  24:35 तक कर्क लग्न, तांत्रिक मंत्र सिद्धि का मुहूर्त रात्रि 12: 35 से 2:53 तक सिंह लग्न निशीथ काल।

दीपों के जगमग से सुसज्जित दीपावली पर्व, लक्ष्मी जी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है| इस पर्व का महत्व और महात्मय सनातनियो के लिए अतिमहत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है, जैसे मंत्रियो के समुदाय के मध्य में एक राजा शोभायमान रहता है, उसी प्रकार से दीपावली भी महत्व रखती है।  दीपावली से दो दिवस पहले धनतेरस (यम दीपम) तत्पश्चात नरक चतुर्दशी (काली चौदस, हनुमान जयन्ती, छोटी दीपावली) तदोपरान्त दीपावली (लक्ष्मी पूजन, केदार गौरी व्रत,कमला जयन्ती, दर्शा अवतार, चौपड़ पूजन), गोवर्धन पूजा (अन्नकूट, बलिप्रतिपदा, द्रुत कीड़ा दिवस) तथा भाईदूज (चन्द्र दर्शन, यम द्वितीया) मनाये जाते हैं।

इस त्योहार (पर्व) को निष्ठा और हर्षौल्लास से मनाए जाने पर परिवार पर आई बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ टल सकती हैं। कुछ सनातनी दीपावली पर्व की रात्री लक्ष्मी जागरण का दिवस भी मानते हैं। अतः सभी सनातनियों को गणेश लक्ष्मी एवं कुबेर पूजन (दीपावली पर्व) अवश्य करना चाहिए।

लक्ष्मी जी प्रसन्नता, उल्लास, मनोविनोद, और आनन्द की देवी मानी जाती हैं| इनके किसी स्थान पर वास करने मात्र से ही उस स्थान के आस-पास के समस्त संताप नष्ट हो जाते है| लक्ष्मी जी के वास करने का लक्षण स्वतः स्वछता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता के रूप में प्रदर्शित होता है| जिसकी अभिलाषा में प्रत्येक सनातनी चाहें, वो राजा हो या रंक सभी पूर्ण निष्ठा से लक्ष्मी जी के स्वागत रूप में दीपावली पर्व में पूजन-पाठ कर प्रसाद वितरण के साथ ही मध्य रात्री तक पूर्ण हर्षौल्लास के साथ सक्रिय रूप से पंच महापर्व का आनन्द लेते हैं।

दीपावली से एक दिन पूर्व रात्रिकाल में दीप के प्रकाश-पुंज से रात्रि-तिमिर को दूर भगा दिया जाता है, जिस प्रकार दीपावली की रात को भी अधिकाधिक संख्याओ में किया जाता है। इस निशा दीये जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है।

दीपावली के दिन भगवान श्री रामचन्द्र जी, चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या में पुनः आगमन हुआ था और उस दिवस गणेश लक्ष्मी एवं कुबेर पूजन (दीपावली पर्व) का शुद्ध अन्तःकरण से तैयारियां हो रही थी, तभी भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण के आगमन का समाचार पाकर समस्त अयोध्यावासियों ने अपनी खुशी से दीप जलाकर स्वागत में उत्सवपर्व मनाया। तभी से कमला जयन्ती (दर्शा अवतार) को दीप चहुँओर प्रज्वलित करने का प्रचलन आरम्भ हो गया। दीपावली को मात्र एक दिवस का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। आज लक्ष्मी पूजन को बिना दीपो के किये जाने की कल्पना भी सम्भव नहीं है, सम्भवतः इन्ही तथ्यों के आधार पर ही इस उत्सव पर्व को दीपावली (दीपमालिका) कहा जाता है।

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