Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

Chitragupt - न्यायाधिकारी और भविष्य निर्माता चित्रगुप्त जी, यमराज के रिश्तेदार है। 


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 28-10-2021

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज पर्व के साथ ही चित्रगुप्त का भी पूजन होता है। सनातनी ग्रंथानुसार चित्रगुप्त कायस्थ वर्ग के प्रमुख ईष्टदेव हैं। इसलिये यह तिथि विशेषकर कायस्थ वर्ग के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ऐसी आस्था है कि वर्तमान में कायस्थ समाज के लोग चित्रगुप्त देव के ही वंशज हैं। वेदों और पुराणों अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त को न्याय का देवता कहा जाता है क्योकि धर्मराज यमराज की धर्मसभा में चित्रगुप्त ही अपनी लेखनी से जीवों की कर्म पुस्तिका में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त के सभी कर्मों को अंकित करते रहते हैं और उन्ही तथ्यों के आधार पर ही सभी जीवो के सत्कर्मो और कुकर्मो का लेखा-जोखा रखकर न्यायोचित दण्ड और लोक-परलोक निर्धारित किया जाता है। जिस प्रकार से शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं, ठीक उसी प्रकार से भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं। चित्रगुप्त की पूजा करने वाले भक्तो को यमराज के कोप से मुक्ति मिलती है।
सनातनी शास्त्रानुसार ब्रह्मा जी के सर्वप्रथम 13 ऋषि पुत्र हुए और 14 वे पुत्र श्री चित्रगुप्त जी हुए। भगवान ब्रह्मा के मन से वशिष्ठ, नारद और अत्री आदि ऋषियो का जन्म हुआ और शरीर से धर्म, भ्रम, भय,क्रोध,वासना,विकार और मृत्यु जैसे कई बहुसंख्यक पुत्रो का भी जन्म हुआ, लेकिन चित्रगुप्त जी के अवतरण की कथा भगवान ब्रह्मा के अन्य संतानो से भिन्न है।
पौराणिक कथानुसार सृष्टि निर्माण के उपरान्त ब्रह्माजी ध्यान मग्न होने को तैयार थे कि तभी यमराज जा धमके और अपने कामकाज की दुहाई देकर अपने लिए सहायक की व्याख्या कर ही रहे थे, तभी ब्रह्मा जी ध्‍यान में मग्न हो गए। इस प्रकार यमराज जी अपना प्रस्ताव भी पूर्ण ना कर पाए और उन्हें उस समय खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ गया। एक सहस्त्र वर्ष उपरांत तपस्या समाप्त होने पर भी ब्रह्माजी को यमराज का आवेदन स्मृति मे रहा। तत्क्षण ही ब्रह्माजी ने यमराज के आवेदन अनुसार अपनी काया से यमराज के कार्य को सरल और सुचारु रखने के उद्देश्य से भगवान चित्रगुप्त की रचना पूर्ण कर उन्हें यमलोक जाने की आज्ञा दे दी। 
आधुनिक विज्ञान में यह सिद्ध हुआ है कि जो भी विचार हमारे मन में आते हैं, वे सभी चित्रों के रुप में मानस पटल पर अंकित रहते हैं। जीवात्मा के मृत्यु उपरान्त मस्तिष्क क्षणिक काल तक संचालित रहता है और मस्तिष्क के उस क्षणिक काल में जीवन की प्रत्येक घटित हुई घटनाओ के चित्र मानस पटल पर चलचित्र रूप में चलते रहते हैं। सनातनी आस्था है कि भगवान चित्रगुप्त मस्तिष्क के सभी विचारों को चित्रों के रूप में गुप्त एवं संचित करके रखते जाते हैं और अंतकाल में सभी गुप्त एवं संचित चित्रों के आधार पर ही जीवों के परलोक व पुनर्जन्म का निर्णय न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त द्वारा होता हैं।
गरूड़ पुराण के अनुसार जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित होकर यमलोक जाता है। यमलोक के यमदूत मृत्यु उपरान्त जीवात्मा को बड़ी निर्ममता से बन्धन में बांध घसीटते हुए यमलोक तक ले जाते हैं और जीवात्मा को उनके कुकर्मो के अनुसार असहनीय दारुण यातना देकर यमराज के समक्ष न्यायोचित दण्ड और लोक-परलोक निर्धारित कराते है। जो भी प्राणी धरा पर जन्मता है, उस प्राणी की मृत्यु भी निश्चित है, क्योकि यही विधि का विधान है, जिससे मृत्यु लोक में जन्म लेकर ईश्वर भी स्वयं के देह की मृत्यु से बच नहीं सके, चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुद्ध हों अथवा महावीर हों। पृथ्वी लोक पर सभी की मृत्यु आती और शरीर का त्याग भी निश्चित समय से करना पड़ता है। जीवन से पहले क्या है और मृत्युपरान्त क्या है, इस रहस्य को ऋषि-मुनियों ने वेदों एवं पुराणों में बताया है कि मृत्युलोक के पश्चात क्रमशः दिव्य लोक(स्वर्ग), विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है।  दिव्यलोक (स्वर्ग) में न जीवनहर्ष है और न मृत्युशोक। इस लोक में देवताओं और दिव्य आत्माओ का निवास है। जीव अपने कर्मानुसार विभिन्न लोकों में स्थान पाता है और उस जीवात्मा को जीवन चक्र के आवागमन अर्थात् कर्मानुसार जीवात्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और अंत में जीवात्मा ब्रह्मतत्व में विलीन होता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त करता है।
मान्यताओ के अनुसार यमराज और यमी (यमुना) दोनो ही सूर्य देव के जुड़वाँ संताने थी। चित्रगुप्त जी, यमराज जी के कार्य को सरल और सुचारु रखने में सहायक थे, जिनकी लेखन प्रतिभा और न्यायप्रियता से यमराज जी सदैव प्रभावित भी रहते थे और अपनी अनुपस्थिति में चित्रगुप्त जी को श्रेष्ठ उत्तराधिकारी भी मानते थे। चित्रगुप्त जी के कार्यो से संतुष्ट यमराज जी ने अपनी सबसे प्यारी अमूल्य निधि बहन यमुना का विवाह माता पिता की सहमति के आधार पर चित्रगुप्त के साथ सम्पन्न करवाया था। जिसके उपरान्त यमुना चित्रगुप्त जी के महल में रहने लगीं। इस प्रकार चित्रगुप्‍त जी यमराज के बहनोई बन गए। यमुना, यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए आमंत्रित करती है, लेकिन यमराज अपनी व्यस्तता के कारण हर बार यमुना की बातों को टाल देते थे। लेकिन एक दिन बहन यमी (यमुना) को चित्रगुप्त से ज्ञात हुआ की कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि (नरक चौदस) को यमराज मृत्यु लोक पर धन्वतरी जी या हनुमान जी के अवतरणदिवस के लिए निकालेंगे, तो यमुना ने भी उचित अवसर देख यमराज को अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। उस क्षण यमराज भी विचार करते हैं कि मैं तो सभी के प्राणों को हरने के लिए ही किसी के घर जाता हूँ। मुझे तो कोई भी अपने घर बुलाना ही नहीं चाहता लेकिन मेरी बहन स्नेहवश मुझे इतनी सद्भावना से निमंत्रित किया है, तो मैं अवश्य ही जाऊंगा।
यमराज जी कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को बहन के घर जा पहुंचते है। यमराज जी को उपस्थित देख यमुना आनंद से झुमने लगी और फिर भाई यमराज को आतिथ्य आदर देकर स्नान इत्यादि कर्म से स्वयं का अंतःकरण शुद्ध कर उनका विजय-तिलक, आरती आदि कर अपने हाथो से पकाया हुआ उनका मनपसंद नाना प्रकार की मिठाई, पकवान व्यंजन आदि भोग अर्पित करती है। बहन से अपने प्रति इतना ज्यादा स्नेह, आदर और सम्मान पाकर यमराज भी हर्षित हो उठते हैं और यमुना को अपने वर मांगने को कहते हैं। तब बहन यमुना हे भद्र! इस दिन जो भी बहन मेरे समान अपने भाई का आदर, सत्कार और टीका कर भोजन इत्यादि के आमंत्रण करेगी, उसे और उसके भाई को तुम्हारा भय न रहे. बहन के परोपकारी विचार सुन यमराज और प्रसन्न हुए तत्क्षण अपने पास उपलब्ध अनोखे उपहार, अमूल्य वस्त्र, आभूषण यमुना को भेंट स्वरुप देकर घोषणा करते हैं कि जो भी बहन इस तिथि को भाइयों इसी प्रकार से प्रसन्न करती है, उन भाई-बहन के बीच अटूट स्नेह बंधन रहेगा और अकाल मृत्यु टलेगी। तत्पश्चात् यमलोक चले जाते हैं।इस तिथि को यमराज ने चित्रगुप्त आग्रह पर नरक के जीवों को सभी यातनाओं और पाप मुक्त किया था और सभी नरक वासियों ने भी तृप्त होकर मिलकर उत्सव मनाया और ये उत्सव यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था, जिसके लिए चित्रगुप्त का अभिवादन भी किया गया, क्योकि इस तिथि को यमराज के कोप से सभी की रक्षा हुई थी। इसलिए ऐसा माना जाता है कि भाई दूज पर्व तिथि पर चित्रगुप्त को प्रसन्न करने से भय और पाप विचारो, कर्मो से मुक्ति होती है।

चित्रगुप्त से सम्बंधित अन्य जानकारी:-

पंडितजी पर अन्य अद्यतन