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Dhatersh (Dhanvantari)- धनतेरस से नाकारात्मक ऊर्जा और हर क्षण रोगों से रक्षा करते हैं आयुर्वेद प्रवर्तक धन्वंतरि जी।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 27-10-2021

(धन्वंतरि जयंति) धनतेरस पूजन और यम दीपम 

धन्वन्तरि जी मूल रूप से चिकित्सा के देव हैं, जिनके आशीष से मानव जाति को औषधीय ज्ञान एवं स्वास्थ्य का वरदान मिलता है, साथ ही इन्हे जीवन मे समृद्धि स्थापित करने वाला देव तत्व माना गया है। आयुर्वेद प्रवर्तक धन्वन्तरि को आरोग्य, सेहत, आयु, तेज, वैभव और सुख समृद्धि का आराध्य देवता कहा जाता है और शास्त्रानुसार धन्वन्तरि जी को यमराज का वैद्य मानते हैं। सनातन संस्कृति मे धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का अवतरण दिवस माना जाता है, जैसे विष्णु जी संसार की रक्षा हर क्षण करते हैं, ठीक वैसे ही धन्वंतरि जी मानव जगत मे रोगों से रक्षा करते है, इसीलिए धन्वंतरि जी को भी विष्णु का अंश माना गया है।

इन्ही तथ्य के आधार पर मान्यता है कि धनतेरस तिथि को जिस भी गृह के प्रवेश द्वार पर उत्सव रूप मे धन्वन्तरि जी के लिए दीप जलाए जाते हैं, वहाँ पूरे वर्षभर यमराज जी का प्रवेश नहीं होता है। धनतेरस के दिन नया साजो समान, धातु के सिक्के, साने चाँदी के आभूषण व बर्तन, नया झाड़ू, नया वाहन, घर, संपत्ति, कपड़े, इत्यादि के साथ धनिया के बीज घर मे स्थापित कर धन्वन्तरि का पूजन कर उन्हे प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।  

देव-असुर संग्राम को समाप्त करने के उद्देश्य से पृथ्वी लोक पर समुद्र मंथन नियोजित किया गया, जिसमे से चौदह रत्न (सर्वप्रथम हलाहल विष 2.उच्चैश्रवा 3.एरावत 4.कौस्तुभ मणि 5.कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय 6.कल्प वृक्ष 7.पारिजात 8.शंख 9.शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, 10.रम्भा 11.कार्तिक त्रयोदशी को धन्वंतरी 12.चतुर्दशी को काली माता (वारुणी) 13.अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी और 14.अमृत) का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। अवतरण के समय धन्वन्तरि जी की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र और दो अन्य भुजाओं मे जलूका, औषध और अमृत कलश था।

इसीलिये लक्ष्मी पूजन (दीपावली) से दो दिन पूर्व कार्तिक त्रयोदशी को धन्वंतरी जी का जन्मोत्सव पूरी निष्ठा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। धन्वंतरी जी के वंश मे आयुर्वेद ज्ञाता दिवोदास ने विश्व का पहला शल्य चिकित्सा विद्यालय काशी में स्थापित किया था, जिसके प्रधान आचार्य दिवोदास के शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत बनाये गए थे।

आयुर्वेद के संबंध में सुश्रुत का मत है कि ब्रह्माजी से पहली बार आयुर्वेद के एक लाख श्लोक का अध्यायो मे प्रजापति और अश्विनी कुमारों ने प्रवीणता प्राप्त किया और उनसे इन्द्र को ज्ञान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात धन्वंतरि जी को इन्द्रदेव ने आयुर्वेद सिद्धांतो मे पूर्णतया दक्ष किया और उन्ही सिद्धांतो के बल पर मुनि सुश्रुत ने आयुर्वेद की सकल जगत मे रचना की। इसीलिए वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था, वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था, वहीं धन्वंतरि को अमृत कलश मिला।  अतः दीर्घायु स्वस्थ्य और एश्वर्यवान बने रहने हेतु यह पर्व उत्साह के साथ अवश्य मनाया जाना चाहिए|

धनतेरस तिथि को भगवान धन्वन्तरि की प्रसन्नता की युक्तियाँ (उपाय)

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