संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 22-07-2021
कोकिला व्रत - आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कोकिला व्रतपर्व धूमधाम से मनाया जाता है। महिलाएँ व कुँवारी कन्यायें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति तथा मनोवांछित वर के लिये कोकिला व्रत करतीं हैं। जिसे परंपरागत रूप से दक्षिण भारत में परिवारजन की महिलाऐं अपने परिवार और प्रियजन के अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि सुनिश्चित करने हेतु देवी पार्वती से जुड़ा कोकिला व्रत अवश्य मनाती हैं। कोकिला को आम भाषा में कोयल कहा जाता है और कोयल अपनी मीठी वाणी के लिए जानी जाती है। प्रचलित मान्यता है कि प्रातः कोयल की वाणी सुनने से पूरा दिन आनन्दमयी रहता है। ठीक उसी प्रकार से इस व्रतपर्व का विशेष महत्व है।
कोकिला व्रतपर्व पूर्णतः भगवान शिव और सती माता को समर्पित है। ऐसा विश्वास है कि जो भी इस व्रतपर्व को श्रद्धापूर्वक मनाता है, उनके वैवाहिक जीवन मे सदैव सुख-शांति और सौहार्द्ता बना रहता है और भक्त हमेशा अपने वैवाहिक सम्बन्ध के लिए प्रतिबद्ध रहता है। व्रतपर्व के प्रभाव से वैवाहिक जीवन मे आने वाले हर अवरोध और संकटों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ यह भी आस्था है कि इस व्रतपर्व अवधि के मध्य जो भी सौभाग्यवती स्त्री उपवास रहती है, उनके जीवन मे कुटुम्ब की समृद्धि, सौभाग्य और कल्याण बना रहता है। साथ ही धन का कभी अभाव नहीं होता है। अविवाहित कन्याओ के लिए भी कोकिला व्रत का अलग महत्व माना जाता है। यह महिलाओं को विवाहित जीवन में बाधक विभिन्न दोषों (जैसे भौमा व अन्य दोष) से छुटकारा पाने में मदद करता है। अविवाहित कन्या उचित व सुयोग्य वर को प्राप्त करने की इच्छा से इस शुभ व्रत का पालन करती है।
कोकिला व्रत का महत्व - कोकिला व्रत अथवा उत्सव मात्र कोई त्योहार ही नहीं हैं, बल्कि वातावरणीय पशु पंक्षियों और प्रकृति संरक्षण का भी पर्व है। कोकिला व्रत में केवल भगवान शिव और देवी सती की मूर्तियों की ही पूजा नहीं होती हैं, अपितु उनके अतिरिक्त पशु-पक्षी, वनस्पति को महत्वपूर्ण मानकर उनकी भी पूजा होती है। इसमें पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और अन्य जीव जन्तु भी शामिल हैं। कोकिला व्रत के दौरान देवी पार्वती का आशीर्वाद पाने की लालसा से कोयल पक्षी की मूर्ति का और धेनु (गाय) का पूजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। सनातनी सभ्यता मे पशु-पक्षी और अन्य जीव जन्तु के मध्य गाय को विशिष्ठ और पवित्र माना जाता है, क्योंकि मान्यता प्रचलित है कि संपूर्ण ब्रह्मांड तीनों लोकों सहित एक धेनु (गाय) के अंदर समाहित रहता है।
कोकिला व्रत कथा – वैदिक काल मे एक बार दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया, जिसमे समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, परन्तु अपने दामाद भगवान शंकर का निमंत्रण नही किया। पार्वती जी को मायके जाने से पहले शंकर जी ने बहुत समझाया बुझाया कि बिना आमंत्रण अथवा निमंत्रण के किसी भी उत्सव या यज्ञ में नहीं जाना चाहिए, फिर भी माता पार्वती शंकर जी की बिना सहमति के अपने मायके चली गयी। मायके में पार्वती को सम्मान नहीं दिया गया, जिससे अपमानित और हृदयाघात अनादर सहन ना कर सकी। अपमानित पार्वती को यह शंकर जी का भी अपमान लगा, जिसके फलस्वरूप पार्वती जी तत्क्षण प्रज्वलित यज्ञ कुंड मे कूदकर भस्म हो गयी। यह समाचार भगवान शंकर जी सुनते ही अत्यधिक क्रोधित होकर यज्ञविध्वंस करने के लिए वीरभद्र नामक को अपने गण भेजा। वीरभद्र ने दक्ष जी के यज्ञ को खंडित कर तमाम देवताओं को अंग-भंग करके भगा दिया। इस विप्लव से आक्रांत भगवान विष्णु, शंकर जी के पास जाकर देवों को पूर्ववत बनाने का आग्रह किया। जिसे स्वीकार करते हुए सभी देव गणों को ज्यों का त्यों रूप दे दिया मगर पार्वती द्वारा आज्ञा उल्लंघन करने की धृष्टा हेतु क्षमा न कर सके। जिसके लिए पार्वती जी को दस हजार वर्ष तक कोकिला (कोयल) पक्षी बनकर विचरण करने का श्राप दे दिया। कोयल (कोकिला) रूप में दस हजार वर्ष तक नन्दन बन में रहते हुए पार्वती ने आषाढ़ में नियमित रूप से यह व्रत कर भगवान शिव को पति रूप में पुनः प्राप्त किया।
पूजा विधि :-
संसारिक गतिविधियों में सभी बोलने वाले जीवों में एक गुण समान है, जिसमें सभी जीव आपस में एक दूसरे से वार्तालाप अवश्य करते हैं। जिसका उद्देश्य है कि एक दूसरे से जुड़े रहकर जीवनगति को ...
बाहुड़ा गोंचा अथवा बाहड़ा गोंचा आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी को कहा जाता है। जिसमें पुनः जगन्नाथ जी को रथारूढ़ कर विग्रह तीनों रथों की परिक्रमा करते हुए श्री मंदिर अर्थात जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है। ...
भड़रिया नवमी प्रारंभ 18 जुलाई 2021 02: 41 और समापन 19 जुलाई 2021 को रात 12:28 भड़रिया नवमी का महत्व अक्षय तृतीया, देवउठनी एकादशी के तुल्य है। भड़ली नवमी को अक्षय तृतीया के समान शुभफलदायी और ...