संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 29-10-2021
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट/गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन दैत्यराज राजा बलि पूजा और मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाए जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से गोवर्धन उत्सव प्रारंभ हुआ था। लोक जीवन में अन्नकूट का अर्थ है-अन्न का ढेर। अन्नकूट के साथ प्रकृति का मानव से सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है।
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार कार्तिक महीने में उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राईं इत्यादि मोटे दाने का अनाज यदि बिना कुटे अथवा पिसे खाया जाता है, मानव शरीर मे अनेकों रोग व्याधियों की संभावनाए प्रबल हो जाती है, अगर इस माह मे रोग व्याधियां आरम्भ होती है, तो पूरे वर्ष निरोगी रहने की संभावनाए कम हो जाती है। सम्भवतः इन्ही तथ्यो के आधार पर ही अन्नकूट पर्व कार्तिक माह मे ही मनाया जाता है, जिसे सनातनी ऋषि मुनि जानते थे। कार्तिक मास को सभी माह में सर्वश्रेष्ठ और मंगलकारी बताया गया है। धार्मिक मान्यता मे इस माह को मोक्ष की प्राप्ति करने का द्वार बताया गया है।
शास्त्रों में कार्तिक के समान कोई मास नहीं है, न सतयुग के समान कोई युग, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं। कार्तिक माह में दीपदान करने से जीवन का अंधकार दूर होता है व सकारात्मकता की प्राप्ति होती है गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप मानते हुए गाय की पूजा होती है। शास्त्रोंक्त गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।
एक बार अन्नकूट व्रत पर्व के दिन श्री कृष्ण ने माँ यशोदा से प्रश्न किया "मईया आप लोग इतने धूमधाम से किनकी पूजा की तैयारी कर रही हैं" तब माँ यशोदा उत्तर देती है लल्ला देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण ने फिर पूछा मैया इन्द्र की पूजा क्यों होती हैं? मैईया ने उत्तर दिया इन्द्र वर्षा करते हैं, उससे अन्न पैदा होता है और उससे हम लोगो का और हमारे पशुओ को भोजन मिलता है।
लीलाधारी कृष्ण बोल पड़े हमारी गाये तो गोर्वधन पर्वत जाकर चारा खाती है, तो हम लोग इन्द्र की पूजा क्यो करे, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र के दर्शन भी नही होते, उल्टा पूजा न करने पर क्रोधित होते हैं। ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। यह बात माँ यशोदा को भी ठीक लगी, जिसके बाद सभी नगर वासियों ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा कर ली। जिसके बाद अहंकारवश देवराज इन्द्र ने पूरे नगर मे प्रलय के समान घनघोर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी।
यह देख सभी नगरवासी कृष्ण को कोसने लगे। जैसे-जैसे वर्षा तीव्र होती जा रही थी, वैसे-वैसे लोग कृष्ण को कोसते जा रहे थे। इस पर देवराज इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार कृष्ण ने मुरली कमर मे खोसी और 56 दिन तक मूसलधार वर्षा से ब्रजवासियों को बचने के लिए गोवर्धन पर्वत कनिष्ठिका उँगली पर उठाकर सभी बृजवासियों, गोप-गोपिकाएँ, गाय और बछडे़, पशु पक्षी और पूरे नगर को शरण मे लेकर सुखपूर्वक छाया देते रहे और 56 दिन बाद गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा। इस मध्य सभी बृजवासी उत्सव के साथ उत्तम पकवान बनाते, भजन कीर्तन करते रहे हैं। इस मध्य सुदर्शन चक्र और शेषनाग को आज्ञा थी कि सुदर्शन चक्र पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग मेड़ बनाकर वर्षा के पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
सात दिनो तक मूसलधार वर्षा से इंद्र विचलित होने लगें और उन्हे लगने लगा कि उनका मुकाबला करने वाला कोई साधारण मानव नहीं है, निश्चय ही कोई बड़ा मायावी है, तब इंद्र भाग कर ब्रह्मा जी के पास पहुंच सब वर्णन सुनाया। जिसके प्रतिउत्तर मे ब्रह्मा जी ने बताया आपने भगवान विष्णु के साक्षात अंश पुरूषोत्तम नारायण कृष्ण से झगड़ा मोल ले रखा हैं। इसके बाद इन्द्र अहंकार भूल अत्यंत लज्जित भाव से श्री कृष्ण के पास पहुचकर क्षमायाचना मांग स्वयं ही देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया और आज्ञा दी कि हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनायेँ। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के साथ गोवर्धन के नाम से भी मनाया जाने लगा।
मान्यता है कि अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य आरोग्य रहकर लंबी आयु को प्राप्त करता है, साथ ही दारिद्र्य नाश होता है। अगर इस दिन कोई मनुष्य दुखी रहता है तो साल भर दुख उसे घेरे रहते हैं। इसलिए सभी को चाहिए कि वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय अन्नकूट उत्सव को प्रसन्न मन से मनाएं। इस दिन भगवान कृष्ण को नाना प्रकार के पकवान और पके हुए चावल पर्वताकार में अर्पित किए जाते हैं. इसे छप्पन भोग की संज्ञा भी दी गई है।
गोवर्धन पूजा की अन्य जानकारी:-
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