संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 10-06-2021
अनादि काल से ही सूर्य को देव रूप में मानते हुए भगवान सूर्य का पूजन अर्चन किया जाता रहा है। दिन रात का होना सूर्य के देव रूप का प्रत्यक्ष प्रमाण है। दिन रात की प्रक्रिया से सूर्य अपनी शक्ति से पूरे ब्रह्माण्ड को लगातार गतिमान बनाये हुये है। यह गोलाकार पृथ्वी, जल और अग्नि के संयोग से उत्पन्न हुई अन्तरिक्ष के अन्तर्गत अपनी कक्षा में विभिन्न प्राणियों, वनस्पतियो, जलादि पदार्थ इत्यादि सहित सब की रक्षा करने वाले इस लोक के पालक पति स्वरूप ईष्टदेव सूर्य के आगे आगे चारों ओर अर्धांगी रूप में क्षण-क्षण झूमती हुई, घूमर नृत्य करती हुईं घूमती है। इसी से दिन, रात्रि, शुक्ल व कृष्ण पक्ष, ऋतु और अयन आदि काल-विभाग का क्रम सम्भव होता है। अर्थात प्रत्यक्ष रूप से पृथिवी सूर्यलोक के आगे-आगे अन्तरिक्ष अर्थात् आकाश में चारों तरफ घूमती है। इस ब्रह्माण्ड में सूर्यलोक की अग्नि और भूलोक के बीच बहने वाली वायु दीप्ति से प्रकाश रूपी बिजली उत्पन्न होती है, जो ब्रह्माण्ड और शरीर के मध्य में चलती है। विद्युत् नाम से प्रसिद्ध सब मनुष्यों के अन्तःकरण में रहने वाली अग्नि की कान्ति, जो प्राण, अपान और वायु के साथ युक्त होकर प्राण, अपान, अग्नि और प्रकाश आदि चेष्टाओं के व्यवहारों को संचालित करती है। सूर्य सौरमंडल में सबसे निडर और ओजवान ग्रह है। सूर्य का ओज और ऊपर-नीचे जाने वाली वायु, प्राण, अपान के सामर्थ्य से समस्त सूर्य लोक में जीवन व्याप्त है।
अंतरिक्षीय अग्नि व प्रकाश आदि गुणों से मनुष्य प्रतिदिन प्रकाशित रहता है, जिसके चलने-चलाने आदि गुणों से प्रकाशयुक्त अग्नि प्रतिदिन मनुष्यो को अच्छे प्रकार की वाणी, विचार, संस्कार प्रदान करते हैं। शरीर में रहने वाले बिजली रूपी अग्नि से वाणी प्राणयुक्त होकर प्रकाशित होती है और उसके गुणों के प्रकाश से सांसरिक उपदेश व श्रवण नित्य चल रहा है। एक दिन में पृथ्वी और सूर्य की इस प्रक्रिया में तीस घड़ी और एक मास के नियम से तीस दिन/ तिथियों के हिसाब से सब जीव जन्तु व्यवस्थित होते है। प्रातः कालीन एवं सायं कालीन सूर्य की किरणें सूर्य की उत्पादक शक्ति, प्रकाश जैविकी तथा विटामिन डी इत्यादि (photobiology & Vitamin D) और सर्वरोग हरण शक्ति जीवन चक्र के लिए एक सौ यज्ञों के बराबर है। जिसमें रोग हरण की शक्ति, ओजवान होने का बल, प्रतिरक्षा का गुण अधिक से अधिक प्रातः कालीन एवं सायं कालीन में सूर्य की किरणों के सम्पर्क में आने से मिलता है, परंतु प्रातः कालीन एवं सायं कालीन के अतिरिक्त और किसी भी काल मे सूर्य की किरणें नेत्रों के लिए हानिकरक हो जाती हैं।
सूर्य देवता चक्षुओं (नेत्र) को समर्थ करने वाले और ऊंचे पर्वतों, मेघों, वृक्षों की हरियाली इत्यादि से साक्षात्कार कराते हैं। समस्त संसार के सुंदर दृश्यों को सूर्य द्वारा निर्मित प्रकाश से समस्त पृथ्वीवासी स्वयं के शारीरिक अङ्गों को ठीक से देखने की सामर्थ्य और समीप व दूर की दृष्टि बलवती हो जाती हैं। सूर्य के उदय और अस्त होने के समय सूर्य का लाल वरण हृदय रोग और पीलापन दोनों रोग पर एक साथ औषधीय कार्य करता है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों में विशेष परा बैंगनी किरणें अधिक पायी जाती हैं, जिन किरणों से मनुष्य के शरीर का हृदय रोग और पीलिया रोग दूर होते है। प्रात: सूर्याभिमुख होकर सूर्य की लाल रंग रश्मियों के वरण से रोगकृमियों का नाश, रुधिर में रक्तता की वृद्धि, पीलिया रोग, पापजन्य रोग से मुक्ति प्राप्त कर मनुष्य दीर्घायु को प्राप्त होता है। अधिकांश नवजात शिशु पीलिया रोग से प्रभावित होते हैं। जिन शिशुओं में यह रोग इतना अधिक हो जाता है कि उपचार त्वरित संभव नहीं होता है, तब आधुनिक आयुर्विज्ञान में नवजात शिशु के नग्न शरीर को सूर्य की दोपहर की रश्मियों से उपचारित किया जाता है। बीमारियाँ रूपी असुर मानव जाति को परेशान करती रहती हैं। (जैसे तपेदिक, बुखार, निमोनिया, राजयक्ष्मा, चर्म रोग आदि रोग।) जिनको नष्ट करने की दिव्य शक्ति सूर्य की किरणों में होती हैं। एंथ्रेक्स के वायरस जो कई वर्षों के शुष्कीकरण से नही मरते, वे सूर्य की किरणों से एक डेढ़ घण्टे में मर जाते हैं। हैजा, निमोनिया, चेचक आदि के कीटाणु पानी में डालकर उबालने पर नही मरते, किंतु सूर्य की प्रभातकालीन किरणों से शीघ्र ही नष्ट होते हैं।
कंकरेज प्रजाति की गाये सूर्य की रश्मियों से शरीर के लिए आहार ग्रहण कर लेती हैं, जिसके कारण मरुस्थल में दिनभर घूमकर इतना पोषण प्राप्त कर लेती हैं कि गोपालक को प्रतिदिन कुल मिलाकर तीन चार लीटर दूध देती हैं। 1937 में केरल में जन्में हीरा रत्न माणेक सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य स्नान करके अपने के लिए इतना पोषण प्राप्त कर लेते हैं कि लगातार एक वर्ष तक केवल जल और सूर्याहार पर जीवित रहते हैं। इस प्रयोग का भारत वर्ष और अमेरिका के आयुर्विज्ञानिकों द्वारा इस प्रयोग को प्रमाणित भी किया जा चुका है। रोहित (लाल रंग की दिव्य दूध देने वाली गाये) गायों के दूध में भी हृदय रोग और त्वचा के रोग के लिए स्वास्थ्यदायक तत्व होते हैं, जिन्हें आधुनिक आयुर्विज्ञान मे होर्मोन कहते हैं और सुविधानुसार Vitamin D कहते हैं। तोते रोगादि से ग्रसित होने पर अपनी स्थिति को अपने आवरण में बदलाव से प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार मानव शरीर भी रोगादि से व्याकुल होकर आत्मा में उत्साह और अवसाद का प्रभाव प्रदर्शित करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य की किरणों और जल के अपवर्त्तन से प्राप्त सप्त रश्मियो का प्रवर्धन सातों रंगों के प्रभाव से मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो जाता है। सूर्य की रश्मियों से अंजली का जल ओषधीय व उपचारित जल हो जाता है, जिससे अंजली के जल में मरीची अर्थात् सूर्य की किरणें मिलने से अमृत हो जाती है।
सूर्य को जलार्घ देने की विधि :-
जल पात्र के जल में लाल चंदन या रोली मिलाकर उक्त पात्र को छाती के बराबर की ऊँचाई पर रखकर जल गिराते हुए लोटे के उभरे भाग से सूर्य को तब तक देखते रहें, जब तक जल न समाप्त हो जाये। ऐसा करने से आंखों में मोतियाबिंद नही होता है। नियमित जल देने से आंखे मजबूत होती हैं। शरीर की हड्डियां मजबूत होती हैं।
सूर्य देव को अर्घ्य देने से संबन्धित आवश्यक तथ्य।
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