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चैत्र नवरात्रि से मानव मन भक्ति रस मे डूबता है और प्रकृति उत्सव मनाती है।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 13-04-2021

चैत्र नवरात्रि 2021 घटस्थापना प्रथम मुहूर्त - 13 अप्रैल, 2021 सुबह 05:28 से 10:14 तक (अवधि-04 घंटे 15 मिनट)। द्वितीय मुहूर्त- सुबह 11:56 से दोपहर 12:47 मिनट तक (अवधि-51 मिनट)।

चैत्र नवरात्रि 2021 को 90 वर्षों बाद मंगलवार दिन का एक दुर्लभ सा संयोग बन रहा है और इस वर्ष को आनंद नाम नवसंवत्सर कहा जाएगा, जिसमें राक्षस प्रवृति के लोग घटेगें और दैव प्रवृति में वृद्धि होगी। आनंद नवसंवत्सर में आर्थिक, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ कम होंगी औए राजनैतिक, प्राकतिक आपदा जैसी समस्याओं के उतार चढ़ाव देखने को मिलेगें।

सनातन संस्कृति में आदिशक्ति भगवती के सभी रूपों की पूरे नौ दिनों तक स्थापन कर पूजन करने का चैत्र नवरात्रि मे बड़ा महत्व है। जिसे लगभग सभी सनातनी बहुत ही जोश और उत्साह से मनाते है। सनातन पंचांग में वर्ष का पहला मास चैत्र है, जिसके शुक्ल पक्ष के आरम्भ से आदिशक्ति भगवती का पर्व नवरात्रि के रूप मे मनाया जाता है, इसे ही चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि सर्वाधिक प्रचलित एवं महत्वपूर्ण त्योहार अथवा व्रत है, जिसे पूरे नियम और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि में 9 देवियों (1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4. कूष्माण्डा, 5.स्कंदमाता 6. कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी, 9.सिद्धिदात्री।) की उपासना और अर्चना होती है।

पूरे वर्ष मे आदिशक्ति माँ भगवती की साधना करने के लिये साल में चार नवरात्रि आती है, जिनमें से दो प्रगट नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि है। इन सभी नवरात्रियों मे चैत्र मास की नवरात्रि सर्वप्रथम है और इसी नवरात्रि के साथ ही सनातनी नवसंवत्सर भी प्रारंभ होता है। जिसे चैती नवरात्र भी कहा जाता है। चारो ही नवरात्रियों को सिद्धि प्राप्त करने के लिये सर्वोत्तम माना जाता है, लेकिन प्रत्यक्ष नवरात्रि ग्रहस्थ और सामाजिक जीवन जीने वालों के लिए वरदान स्वरूप माना जाता है, जिसका लाभ सभी को मिल सकता है और गुप्त नवरात्रि का सबसे ज्यादा प्रचलन संन्यासियों और साधकों में है। सामान्य और सामाजिक वर्ग के लोग प्रगट नवरात्रि में अपनी श्रद्धा अनुसार देवी माँ को अपने भक्ति से प्रसन्न करते हैं और गुप्त नवरात्रि का प्रयोग न के बराबर होता है। पूरे वर्ष की सभी नवरात्रियों में प्रकृति का बदलाव देखने को मिलता है। चैती नवरात्र से पतझड़ समाप्ति के बाद पेड़-पौधों पर नयी-नयी पत्तियाँ आने से प्रकृति में हरियाली छायी रहती है और ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत के साथ फल, फूल, लदे हुये पेड़ होते हैं। ऐसे में मान्यता है कि देवी-देवता भी धरती पर रहते हैं। एक तरफ मानव का मन भक्ति संगीत से झूम रहा होता है और दूसरी तरफ प्रकृति एक उत्सव मना रही होती है। वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का तेज प्रभाव होता है।

नवरात्रि में देवी माँ को प्रसन्न करने के लिये घट की स्थापना के साथ सप्तशती पाठ होता है और यज्ञ इत्यादि पूर्ण कर पारण के समय सात साल से कम उम्र की बालाओं का पूजन किया जाता है। बालाओं के (पग पखारकर) चरणों को धो-पोछ कर उचित और साफ सुधरे स्थान पर बैठाकर फलाहार इत्यादि कराने के उपरांत आलता, फीता, रोली का टीके मेंहदी आदि श्रंगार भेंट करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती के पाठ के बिना नवरात्रि का पूजन अपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि दुर्गा सप्तशती के नियमित रूप से पाठ करने से माँ भगवती खुश होती है और हवन इत्यादि कर्मों से गृह क्लेश हरती है। चैत्र मास में घटस्थापना और अखण्ड ज्योत जलाना अत्यधिक शुभ होता है। घटस्थापना से घर से बीमारियाँ, दुख-अभाव, नकारात्मक ऊर्जा और विपत्तियों का नाश होता है। माता के बायीं तरफ क्षेत्रीय अनाज और आसपास मे घट को कहीं भी रख सकते हैं। पूजा स्थल पर धर्म ध्वज भी रखना महत्वपूर्ण होता है। माँ दुर्गा के पूजन स्थल पर सुंदर चित्रांत्मक रंगोली बनाने के बाद लकड़ी के पट्टे पर साफ स्वच्छ वस्त्र बिछाकर माँ दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करें और फिर माता भगवती को एक पान, एक सुपारी, एक लोंग का जोड़ा, अक्षत, रोली, गुड़हल का फूल (या फिर कोई और भी पुष्प हो सकता है), कोई भी ऋतु फल आदि भेंट कर नियमित रूप से माँ के गीत भजन करने चाहिए। सभी सनातनियों को चैत्र नवरात्र में माँ भगवती से हाथ जोड़, ध्यानपूर्वक, विन्रम भाव से विश्व की सुख शान्ति के लिये प्रार्थना करनी चाहिए।

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