संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 11-04-2021
दिनांक- 13 अप्रैल 2021 को चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से सनातनी नववर्ष आरंभ हो रहा है और साथ ही इसी तिथि से ही नवरात्रि भी प्रारंभ हो रहे हैं, जिसे नया संवत्सर शुरु होना अथवा 'नवसंवत्सर' का आरंभ भी कहते हैं।
'नवसंवत्सर' से सनातनी कैलेन्डर का वर्ष भी प्रारंभ हो जाता है और खगोलीय घटनाओ में भी सूर्य बारहवीं राशि (मीन) से पहली राशि (मेष) में प्रवेश में करता है। नवसंवत्सर से ही मेष संक्रांति होती है, जिसे मेष संक्रमण भी कहा जाता है, इसे सतुआ संक्रांति के भी नाम से जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि से ही नववर्ष, नवसंवत्सर, मेष संक्रांति का संयोग एक साथ हो रहा है। इस संयोग पर्व को पूरे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस संक्रांति संयोग पर्व को पंजाब में वैशाख, केरल में विशु, पश्चिम बंगाल में पोइला बैसाख, ओडिशा में पनासंक्रांति या महाविषुव संक्रांति, तमिलनाडु में पुथांदु, बिहार में सतुआनी और उत्तराखंड में बिखोती के नाम से जाना जाता है। पूरे भारत में इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति भी कहा जाता है। सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति को लोग बेहद ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
शास्त्रानुसार चैत्र नवरात्रि से ही खरमास का समापन हो जाता है, जिसके पश्चात शुभ कार्यों जैसे शादी विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और घर खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त की शुरुआत होती है। इस दिन से विवाह लग्न प्रारम्भ हो जाती है। मेष संक्रांति में सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। मेष संक्रांति को भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर गायत्री मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। प्रातः काल आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने से, और सूर्य के सामने बैठकर सूर्य से त्राटक करने से आत्मबल में वृद्धि होती हैं। सूर्य त्राटक को कभी भी प्रातः काल किया जा सकता है।
मेष संक्रांति में किसी पवित्र सरोवर में अथवा गंगा जल मिश्रित जल से स्नान कर अक्षत, लाल फूल, रोली, सिक्के आदि से ताँबे के बर्तन से सूर्य को जल देने से सूर्य के हानिकारक प्रभाव कम किया जा सकता है। इसके बाद किसी जरूरतमंद और ब्राह्मण को गेहूं, गुड़ और चांदी की वस्तु दान-दक्षिणा करना शुभकारी होता है। पूरे वर्ष संक्रांतिओ में सूर्य देव की स्तुति करने से सभी प्रकार की तरक्की, यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
प्रथमम् शैलपुत्री स्तुति - 1- या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 2- ॐ वन्दे वाञ्छित लाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम: नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री ...
द्वितीयम् ब्रह्मचारिणी स्तुति – ॐ दधाना कर पद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। (अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी आपको बारम्बार प्रणाम है।) नवरात्र के दुसरे ...
तृतीयं चन्द्रघण्टा स्तुति – या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्य नमसतय नमस्तस्य नमो नमः । ॐ पिण्डज प्रवरा रुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।| प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।। नवरात्र के तीसरे दिन (तृतीया) को माँ भगवती के चन्द्रघण्टा रूप ...