संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 07-04-2021
प्रथमम् शैलपुत्री स्तुति -
1- या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
2- ॐ वन्दे वाञ्छित लाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री को प्रथम देवी के रूप में पूजा जाता है। वृषभ-स्थिता माँ जिनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल पुष्प सुशोभित पूर्ण स्वरूप का ध्यान किया जाता हैं। माँ शैलपुत्री की उपासना में भक्त मन को एकाकृत करके ध्यान को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। मन को स्थिर करने से ही योग साधना का प्रारंभ माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन शैलपुत्री माता के दर्शन हेतु सुहागनें अपने सुहाग की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थय के लिए शैलपुत्री के मंदिर में आती हैं। मंदिर में भक्त माँ शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिये लाल फूल, लाल चुनरी और नारियल के साथ सुहाग का सामान चढ़ाते हैं।
विद्वानों द्वारा सर्वप्रथम बनारस स्थित काशी के मढिया घाट पर अलईपुर में स्थित शैल पुत्री मन्दिर की खोज की गयी थी। जिसे विश्व में प्रथम शैलपुत्री मन्दिर के रूप में ख्याति प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं में भी यही माँ शैलपुत्री का पहला मंदिर है। बनारस का प्रचीन मन्दिर अत्यधिक प्राचीन होने के कारण से यहाँ के स्थानीय लोगों को शैलपुत्री मन्दिर के स्थापना का सटीक समय ज्ञात नहीं है, लेकिन माँ शैलपुत्री के प्राचीन मंदिर में प्रवेश करते ही आंनद की अनुभूति जरुर होने लगती है। इस मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग रूपी पिता हिमराज हिमायल स्थापित हैं और साथ में माता शैलपुत्री मुख्य भाग में ऊपर भक्तों को दर्शन दे रही हैं।
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री देवी के इस प्राचीन मंदिर में पांव रखने की भी जगह नहीं रहती है। नवरात्र में माता के दर्शन को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंगो में रंग जाता है और अपनी झोली में मुराद लिये ब्रह्म मुहूर्त से ही लंबी कतार में खड़े हो जाते हैं। कहा जाता है की शिव की धरती वाराणसी में मौजूद माता का यह मंदिर इतना शक्तिशाली है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी हो जाती है। यहां लोग काफी दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं और मन्नत पूरी हो जाने पर पूजा करवाते हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन माता की महाआरती होती है और माँ शैलपुत्री की कथा भी सुनाई जाती है।
सनातनी पुराणों में मन्दिर में स्थापित पिता हिमालय और उनकी बेटी शैलपुत्री की कहानी कोक कथाओं का वर्णन मिलता है जिसका संक्षिप्त वृतान्त इस प्रकार है, रू. महाराज शैलराज हिमालय के यहाँ पुत्री का जन्म हुआ जिनका शैल नामांकरण हुआ जो कालान्तर में माता सती के रूप में विख्यात हुयीं। माता शैलपुत्री के जन्म पश्चात नारद ऋषि ने नवजात को देखकर महाराज हिमालय के समक्ष भविष्यवाणी की यह कन्या शिव में आस्था रखने वाली और शिव की अर्धान्गिनी होगी। माता शैलपुत्री बाल्यावस्था में ही संसार के भ्रंमण के लिये निकलीं और भगवान शिव तलाशते हुए शिव के प्रिय काशी नगरी में आई।
माता शैलपुत्री को प्राचीन काशी अत्यधिक मनभावन लगीं और वही काशी के मढिया घाट पर रुककर तपस्या करने लगी। इस बीच पुत्री को तलाशते हुये पिता हिमवान भी वहाँ आ पहुँचे और हिमवान ने शैलपुत्री को साथ में अपने निवास कैलाश चलने को कहा लेकिन माँ शैलपुत्री वहाँ जाने को सहमत नही हुई। शैलपुत्री को तपस्या करते देख हिमवान भी वही तपस्या करने लग गये और तप पूर्ण हो जाने के बाद महाराज हिमालय के साथ शैलपुत्री अपने निवास कैलाश वापस चली गई। माँ शैलपुत्री की तपस्या स्थली को ही अब शैलपुत्री मन्दिर नाम से जाना जाता है।
द्वितीयम् ब्रह्मचारिणी स्तुति – ॐ दधाना कर पद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। (अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी आपको बारम्बार प्रणाम है।) नवरात्र के दुसरे ...
तृतीयं चन्द्रघण्टा स्तुति – या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्य नमसतय नमस्तस्य नमो नमः । ॐ पिण्डज प्रवरा रुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।| प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।। नवरात्र के तीसरे दिन (तृतीया) को माँ भगवती के चन्द्रघण्टा रूप ...
सनातन संस्कृति के पंचाग गणनाओं के अनुसार तिथियों को देख कर ही दिन, वार, नक्षत्र इत्यादि का निर्धारण किया जाता हैं। सनातनी पंचाग अनुसार प्रत्येक मास को दो भागों में (कृष्ण पक्ष और शुक्ल में) ...