संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 05-04-2021
सनातन संस्कृति के पंचाग गणनाओं के अनुसार तिथियों को देख कर ही दिन, वार, नक्षत्र इत्यादि का निर्धारण किया जाता हैं। सनातनी पंचाग अनुसार प्रत्येक मास को दो भागों में (कृष्ण पक्ष और शुक्ल में) बांटा गया हैं एवं कृष्ण पक्ष के 15वें दिन अमावस्या एवं शुक्ल पक्ष के 15वे दिन पूर्णिमा कहा जाता है।
वर्ष के प्रत्येक माह के प्रत्येक पूर्णिमा एवं अमावस्या के पश्चात की तिथि को प्रतिपदा तिथि की संज्ञा प्राप्त हैं। एक मास में यह तिथि पूर्णिमा के पश्चात एवं अमावस्या के पश्चात (दो बार) आती है एवं प्रतिपदा तिथि से ही माह के पक्ष का प्रारम्भ हो जाते हैं। पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को कृष्णपक्ष प्रतिपदा एवं अमावस्या के पश्चात् की प्रतिपदा को शुक्लपक्ष प्रतिपदा कहा जाता है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को चन्द्रमा की प्रथम कला होती है। सनातन संस्कृति में प्रतिपदा तिथि को अग्रि देव से जोड़कर देखा जाता है। प्रतिपदा को प्राक्रत(अर्ध मगधी) में पडिवदा, अपभ्रन्श में पडिवआ या पडिवा,पालि भाषा में पटिपदा तथा हिंदी में परिवा, संस्कृत में एकम कहते हैं।
शुक्लपक्ष प्रतिपदा से चन्द्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है एवं कृष्णपक्ष प्रतिपदा चन्द्रमा क्षरण (ह्रास) की ओर बढ़ता है। शुक्ल पक्ष में सूर्य एवं चन्द्र का अन्तर 0° से 12° अंश तक होता है एवं कृष्ण पक्ष में सूर्य एवं चन्द्र का अन्तर 181° से 192° अंश तक होता है, तब प्रतिपदा तिथि होती है। शुक्लपक्ष प्रतिपदा में चन्द्रमा अस्त रहता है, अतः इसे समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य माना गया है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में स्थिति एकदम विपरीत होती है।
प्रतिपदा दो शब्दो का समूह है - ‘प्रति+पदा’, जिसका अर्थ है सामने की ओर 'पग बढ़ाना'। प्रतिपदा से चन्द्र एक-एक पग आगे की ओर बढ़ाने लग जाते हैं। प्रतिपदा तिथि को शाब्दिक रूप में मार्ग पर आरम्भ या प्रवेश या प्रयाण किए जाने से भी चिंहित किया जाता है। प्रतिपदा को 'नन्दा' अर्थात् 'आनन्द देने वाला कहा गया है। प्रतिपदा में कहीं यात्रा करना शुभ नही मानते हैं, परंतु प्रतिपदा तिथि में विवाह आदि सम्पन्न किये जाते हैं। अग्नयादि देवों का उत्थान पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को होता है। अग्नि से संबंधित कुछ और विशेष पर्व प्रतिपदा को ही होते हैं।
प्रतिपदा तिथि से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
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