संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 23-03-2021
सनातन संस्कृति में द्वापर युग से चली आ रही परंपरा, रीति-रिवाज के अनुसार पवित्रता एवं एकता का प्रतीक होली पर्व, आज भी भगवान कृष्ण की कर्म व जन्म स्थली एवं राधा कृष्ण के बीच स्नेह व पवित्र प्रेम का साक्षी मथुरा एवं इसके आप-पास के क्षेत्र में बृजवासी बड़े ही आनंद व हर्षोल्लास से मनाते हैं। इसकी चर्चा पुरे विश्व में वर्षो से होती रही है एवं होली पर्व में विशेष रूप से विदेशी पर्यटक भारत आते है एवं होली पर्व में सम्मिलित होकर होली पर्व का भरपूर आनन्द लेते है।
फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष अष्टमी से ही मथुरा के बरसाना एवं नंदगॉव में होली का रंगा-रंग कार्यक्रम आरम्भ हो जाता है। राधा रानी के गांव बरसाना में फाग आमंत्रण का उत्सव स्वरुप लड्डू से होली पर्व की धूम चहुँओर दिखने लगती हैं। यहाँ सर्वप्रथम भक्तों के साथ लड्डुओं की होली का आयोजन कर बरसाने के मंदिर में लट्ठमार होली से एक दिन पहले नंदगांव में होली का निमंत्रण देने का रिवाज है, उसके पश्चात् गोपी स्वरूप सभी महिलायें वापस श्रीजी (राधारानी) के मंदिर पहुंच जाती है। गोस्वामी समाज के लोगों की ओर से आमंत्रण स्वीकार कर खुशी में लड्डूमार होली का आयोजन किया जाता है। जहाँ पुरोहित जी द्वारा मन्दिर के छत से विभिन्न प्रकार के खाद्य प्रदार्थों से बने लड्डूओ को भक्तों की झोली में प्रसाद स्वरुप दिया जाता है, जिनसे बड़े ही श्रद्धा भाव से लड्डूवन होली खेली जाती है, जो लड्डू होली के नाम से विख्यात है। वर्तमान में भी लोग बहुत उत्साह से मनाते हैं।
द्वापर युग से लड्डू होली की परंपरा के पीछे पौराणिक किस्सा राधा रानी के पिता एवं कृष्ण भगवान के पिता से जुड़ा है। किवदंती है कि द्वापर युग में बरसाने की होली खेलने का न्यौता लेकर राधारानी की सखियों को नंदगांव भेजा गया था। राधारानी के पिता वृषभानु जी के न्यौते को कान्हा के पिता नंदबाबा ने स्वीकार किया एवं स्वीकृति का एक पत्र पंडा (पुरोहित) के हाथ बरसाना भेजा। बरसाने में वृषभान जी ने नंदगांव से आए पंडे का स्वागत राज परम्परा से किया एवं थाल में नाना प्रकार के लड्डूओं का भोग खाने को दिए। इसी बीच बरसाने की गोपियों ने होली के उत्सव में मस्त पंडे को गुलाल लगा दिया, जिसके प्रतिउत्तर में पुरोहित जी (पंडे) ने सामने रखे लड्डूओं को उन गोपियों पर बरसाना शुरू कर दिया, जिसके बाद से ही यह परम्परा आरम्भ हो गयी कि रंगों की होली से पहले लड्डू होली, फिर फूलों की होली एवं लट्ठमार होली के साथ ही रंगों की होली प्रचलन में आ गयी, जिसका आज भी पूरी निष्ठां भक्ति एवं प्रेम से निर्वहन किया जाता है।
विश्व में भारत ही सांस्कृतिक विविधता का देश है, जहां जीवन का रंग रूप भली प्रकार से दिखता है। होली पर्व भी एक ऐसा ही पर्व है, अनेकता में एकता को दर्शाता है, जिसमें मे ...
बहुरंगी होली भी कई प्रकार से मनाई जाती है। जैसे. फूलो की होली (फूलेरा दूज) रंगो की होली, धूर की होली, लड्डूवन की होली तथा लठमार होली इत्यादि इत्यादि। जैसे प्रत्येक रंग की अपनी अपनी ...
प्राचीन कथा के अनुसार बिहार के पूर्णिया से ही होलिका के मरणोपरांत होली पर्व का आरम्भ हुआ है, पूर्णिया जिले के लोग चिता से भक्त प्रह्लाद के जीवित लौटने की खुशी में रंगो से नही ...