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शक्ति संतुलन की देवी माता चन्द्रघण्टा चित्रवाहिनी रूप में विराजमान है।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 07-04-2021

तृतीयं चन्द्रघण्टा स्तुति –

या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्य नमसतय नमस्तस्य नमो नमः ।

ॐ पिण्डज प्रवरा रुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।| प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।।

नवरात्र के तीसरे दिन (तृतीया) को माँ भगवती के चन्द्रघण्टा रूप की पूजन होती है। मां चन्द्र घण्टा साक्षात विद्या प्रदान करने वाली देवी हैं। विद्यार्थियों के लिए नवरात्र के ये दिन बहुत शुभ होते हैं। देवी चन्द्रघण्टा को चित्र घण्टा भी कहा जाता है। माँ चन्द्रघण्टा दस भुजाओ सहित, स्वर्णिम, चमकीली आभा वाली देवी हैं, जिनके माथे पर घण्टाकार अर्धचन्द्र है एवं गरजते हुये सिंह पर सवार, एक हाथ में कलश एवं दुसरे हाथ में कमण्डल है। नवरात्र की तृतीया तिथि को साधक अपने मन को 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट कर माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक दर्शन प्राप्त करते हैं। ध्यान मुद्रा में बैठकर माता चन्द्रघण्टा को चित्त व ध्यान में लाने से दिव्य सुगंधियों तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियों की अनुभूति होती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने का होता हैं।

शास्त्रीय मान्यताओ के अनुसार माँ चन्द्रघण्टा के दर्शन एवं पूजन मात्र से ही नरक भोग से मुक्ति मिलती है एवं साथ ही सुख, समृद्धि, विद्या, सम्पत्ति इत्यादि से घर-परिवार भरा रहता हैं। भक्तों को सूकून देने वाला ये रूप दैत्यों के मन मे कम्पन पैदा करने वाला होता हैं अर्थात विद्यादात्री माँ चन्द्रघण्टा दैत्यों के विनाश के लिये तत्पर हैं।

अति प्राचीन नगरी काशी के चौक क्षेत्र के लक्खी चौतरा के पास की गली में पक्के महल में चन्द्रघण्टा मन्दिर स्थित है। नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के दर्शन करने के लिये ब्राह्मूर्त के 3 बजे से ही भक्तों की लंबी कतार लगने लग जाती हैं।

माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति कथा अत्यन्त रमणीय है :- भगवती जी ने शिव को पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर देवी देवताओं ने पार्वती माता को आशीर्वाद दिया कि शिव भगवान को वर रूप में अवश्य प्राप्त करेंगी। इसके पश्चात् संयोगवश पार्वती जी की माता मैना एवं पिता हिमालय भी शिव एवं पार्वती के विवाह के लिये सहमत हुये। माता पार्वती से विवाह के लिए शिव जी मुण्डमाला धारी के रूप में स्वयं भस्म लगाये एवं देवी-देवताओ, दैत्यों, भूतो, गणों के साथ हिमालय के निवास स्थल पर आ पहुचे, जहाँ शिव का भयावह एवं डरावना रूप को देखकर पार्वती के माता-पिता व अन्य अतिथिगण अचंभित एव भयभीत होने लगे तथा पार्वती की माँ मैना देवी शिव के भयावह रूप को देखकर मूर्छित ही हो गई।

माँ मैना को मूर्छा से बाहर निकालने के लिए देवी पार्वती ने तत्क्षण ही चंद्रघंटा का रूप धारण कर माँ एवं सभी अतिथिगण को शिव जी का मह्त्मय समझाया एवं बताया, चराचर जगत के सभी जीव आत्माओं के स्वामी शिव ही है, एवं इनसे ही जीवन चक्र गतिमान है, जिनसे शिव जी कदापि अलग नहीं है, अतएव इनका ऐसा स्वरुप प्रतीत हो रहा है। इसके पश्चात भगवन शिव से विनम्रता से बोली, प्रभु! आपके इस अनोखे रूप को देखकर सभी अतिथि में भय व्याप्त है, कृपया कर अपना मन को मोहित करने वाला रूप सभी अतिथि के समक्ष रखें। इस प्रकार माँ चन्द्रघण्टा (पार्वती) के आग्रह पर भगवान शिव जी ने सहमति दर्शाते हुए स्वयं का रूप एक आकर्षक एवं मनमोहक राजकुमार के रूप में परिवर्तित कर लिया। जिसे देखकर माँ मैना व अन्य अतिथिगण मंत्रमुघ्ध हो गए।  इसके पश्चात पार्वती ने अपने परिजनों को संभाला एवं सभी के मष्तिष्क से अप्रिय स्मृतियों को हटा दिया एवं फिर प्रसन्तापूर्वक विवाहोत्सव पूर्ण हुआ। इसके पश्चात से ही चंद्रघंटा अवतार रूप में देवी पार्वती के शांति एवं क्षमा के रूप का पूजन-अर्चन किया जाता है।

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