संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 18-03-2021
दक्षिण भारत में शिवभक्त दीवाली जैसा ही कार्तिगाई दीपम पर्व मनाते हैं। सनातन परम्परा अनुसार कार्तिगाई दीपम पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। भारत के तमिलनाडु प्रांत में लोग अपने घरों के आस-पास, गली-मोहल्लों, देव स्थलों एवं मन्दिरों में दीपक को पंक्ति बद्ध तरीके से बडे पैमाने में सजाते है। इसे दीपों का पर्व कहा जाता हैं। कृतिका नक्षत्र के नाम से कार्तिगाई दीपम पर्व को जाना जाता है। कार्तिगाई दीपम पर्व तिथि को कृतिका नक्षत्र मे चंद्रमा प्रबल होता है। इस दिन भगवान शिव का दिव्य ज्योति के रूप पूजन होता है। मान्यता है कि कार्तिगाई दीपम पर्व को तिथि को ही भगवान शिव द्वारा ही प्रकाश की जोत प्रकट हुई थी।
कृतिका नक्षत्र में चंद्रमा स्थित है, इस दिन सूर्यास्त के बाद दीप व ज्योत जलाकर प्रकाश की लौ में शिव के रूप का पूजन अर्चन किया जाता है। दीपक के प्रकाश से बनी में आकृति को साक्षात शिव माना जाता है, इसीलिए इतना प्रकाश किया जाता है कि जिसके प्रकाश से तीनों लोक जगमगा जाये। सनातन संस्कृति के प्रत्येक पर्व में आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण अवश्य होते हैं। यह पर्व सकारात्मक दृष्टिकोण से थकी हुई चेतना में समूहिक रूप से प्रकाश कर आत्मचेतना एवं उत्साह जगाने का अध्यात्मिक प्रयास है। कार्तिगाई दीपम पर्व प्रकृति में स्फूर्ति का संचार कर अंधरे अर्थात विरक्ति से उजाला अर्थात चेतना के तरफ बढ़ने का प्रयास हैं।
आज भी भक्त श्रद्धा भाव से तिरुवन्नामलई की पहाड़ी पर एक विशाल दीप जलाते है। यह दीपक इतना विशाल होता है कि इसे दूर-दूर से देखा जा सकता है। इस दीपक को गढ़ महाद्वीपों के नाम से जाना जाता है। तिरुवन्नामलई की पहाड़ी पर बड़ी तादाद में लोग इस दीपक को देखने आते हैं।
मान्यता है कि कार्तिगाई के दिन अगर शिवलिंग के सामने आटे से बना सुगंधित तेल का छह मुखी दीपक जलाया जाए तो परब्रम्ह शिव प्रसन्न होते है एवं शिव की प्रसन्नता से भक्त एवं उसके परिवार को दुख, दोष, पाप, संताप, वेदना एवं संकट से मुक्ति मिलती है। परब्रहम शिव को प्रसन्न करने के लिये भक्त व्रत- उपवास, पूजन पाठ के साथ सूर्यास्त के पश्चात दीपावली के समान ही दीपक एवं दियों से घर-आँगन गली-चौबारे, देव मन्दिर आदि सजाये एवं प्रकाशित किए जाते है।
कार्तिगाई दीपम पर्व तिथि को भगवान शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा के समक्ष अनंत ज्योति के रूप में प्रकाश प्रकट हुआ था, जिसकी पौराणिक कथा भी है -
भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई कि उन दोनों में कौन अधिक श्रेष्ठ है? विवाद बढ़ते-बढ़ते अनादि गुरु परब्रहम शिव तक पहुच गया, शिव जी ने विवाद का अंत होता हुआ न देख स्वयं को एक विशाल ब्रह्माण्डिय ज्योति पुंज मे परिवर्तित कर लिया एवं दोनों देवों से कहा कि आपको इस अनंत ज्योति का आदि एवं अंत (सिर और चरण) ढूंढना है। यह सुनते ही दोनों देव अनंत ज्योति पुंज की खोज में निकल गए, किंतु शीग्र ही भगवान विष्णु वापस लौट आए एवं शिव के समक्ष स्वीकार कर लिया कि परब्रम्ह शिव का ना ओर है, एवं न कोई छोर है, ना आदि है,ना ही अंत है। अनंत ज्योति पुंज ही परब्रहम एवं परब्रहम शक्ति है अर्थात ईश्वरीय प्रकाश पूंज है।
इसके बाद भगवान ब्रह्मा लौटे एवं बताया की उन्हें शिव जी का सर देखने को मिला है, किंतु यह बात पूरी तरह से मिथ्या (झूठ) सिद्धि हुई। इस मिथ्या से भगवान शिव ने क्रुद्ध होकर ब्रह्मा को श्रापित कर दिया की भगवान ब्रह्मा का पृथ्वी पर ना ही कोई मंदिर बनेगा और ना ही किसी तरह की उनकी पूजा ही होगी। इस तरह से भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा के श्रेष्ठता का विवाद भी समाप्त हो गया। भगवान शिव के विशाल ब्रह्माण्डिय ज्योति पुंज को अवतार मानते हुए मासिक कार्तिगाई के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है।
इन उपायों से शिव भक्तो की परेशानियां दूर होती हैं एवं घर में सुख शांति प्राप्त की जाती है।
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