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Ganesh Chaurthi - विनायक या वरद अथवा तेजश चतुर्थी को बौद्धिक प्रखरता का वर प्राप्त होता है।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 17-03-2021

सनातनी याचक को प्रत्येक मास में दो बार ज्ञान, विज्ञान, विवेक, बुद्धि एवं आत्मचेतना के देव गणेश जी की कृपा प्राप्त करने का सुअवसर मिलता हैं, जिसमें शुक्ल पक्ष में चतुर्थी को विनायक चतुर्थी एवं कृष्ण पक्ष में चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। अनादिकाल से ही गणेश महाराज को बुद्धि के देवता एवं प्रथम देवता के रूप में स्थान मिला हुआ है। विनायक चतुर्थी पाठको, शिक्षार्थियों, ज्ञान-विज्ञान से जुड़े एवं बच्चों के लिए महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि गणेश महाराज की कृपा से यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, तेजस्विता, प्रखर बुद्धि, विवेक, विद्या एवं ज्ञान में शुभता एवं वृद्धि मिलती है। प्राचीन काल में विनायक चतुर्थी तिथि को शुभ मुहूर्त में बच्चों से विद्या अध्ययन आरंभ करवाया जाता था। विनायक चतुर्थी के दिन से बच्चों पर गणेश भगवान का आशीष बना रहता है एवं व्रत पूजन करने से भक्तों के संकट नष्ट होते हैं व उन पर भगवान गणेश की असीम कृपा रहती हैं।

फाल्गुन मास की विनायक चतुर्थी से पाठको, शिक्षार्थियों, ज्ञान-विज्ञान से जुड़े एवं बच्चो मे ज्ञान-विज्ञान को नया संचार मिलता है, तथा पूर्ण वर्षभर की दोष पूर्ण या अधूरी शिक्षा एवं ज्ञान में पूर्णता मिलती है। सम्भवतः इन्हीं तथ्यों के अनुरूप ही फाल्गुन विनायक चतुर्थी में गणेश को विद्यावारिधि, शुभगुणकानन, गुणिन, बुद्धिप्रिय, बालगणपति इत्यादि नामों से पुकारा जाता है एवं विनायक चतुर्थी को वरद अथवा तेजश चतुर्थी के नाम से भी प्रचलित हैं।

फाल्गुन मास मूलतः त्याग, दान एवं मानवीय प्रायश्चित का मास है। संस्कृति भी प्राकृतिक नियमों के अधीन ही पूरे वर्ष के सभी निन्दित कर्म एवं विचारों को त्याग कर नववर्ष का आरंभ करती है। अमावस्या के पश्चात की चतुर्थी का सीधा सम्बंध मन की नवचेतना से हो जाता है एवं पूर्णिमा तक पहुँचते-पहुँचते मन की गति उर्धअवस्था तक आ जाती है। इसीलिए मन भी नयी क्रियों, विषयों एवं नव सृजन की ओर जाने लगता है। जिसके लिए विद्या एवं बुद्धि के देव गणेश जी का आवाहन एवं पूजन कर बौद्धिक प्रखरता का वर पाया जा सकता है।

गणेश जी का पूजन अत्यधिक सरल भाव से करने पर वे ज्यादा प्रसन्न हो जाते है। विनायक चतुर्थी के दिन पूजा स्थल पर एवं चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माटी या शक्कर या गोबर से निर्मित गजपति जी की मूर्ति एवं नये लोटा या कलश को नियमानुसार स्थापित कर गंगाजल से अभिमंत्रित करने के उपरांत जनेऊ, सुपारी, पान, लोंग, ईलायची, दूर्वा, मोदक या लड्डू का भोग लगाने के पश्चात गणेश मंत्रो से आवाहन पूजन पूर्ण कर गणेश बीज मंत्र (ॐ श्री गंगणपतये नम:) का जाप करें एवं अंत में उचित मुहूर्त में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत भी समाप्त करना चाहिए। यथासंभव पूजन समाप्ति के पश्चात भोग या प्रसाद अवश्य बांटे।

कष्टों के निवारण हेतु निम्न उपाय भी कर सकते है- घर में किसी भी प्रकार के काम में कोई बाधा आ रही हैं, तो गाय के गोबर से बने उपले की राख को अच्छे से छान लें गणेश जी की मूर्ति जहाँ स्थापित करेंगे उस राख को उस स्थान पर डाल दें एवं उस पर गणेश भगवान को स्थापित कर दे। इस उपाय से बिगड़े काम अपने आप बनने लग जायेंगे। ये क्रिया आप किसी भी विनायक चतुर्थी को कर सकते है।

भगवान विनायक चतुर्थी में पूजन-पाठ व व्रत-उपासना का क्या लाभ मिलता है, इस तथ्य की जानकारी किसी भी सनातनी को भावी जीवन में सफलता के शीर्ष तक लेकर जा सकती है। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए यथासंभव माटी या शक्कर या गोबर से बनी प्रतिमाएं एवं मूर्ति प्रयोग करने से प्रकृति को भी नुकसान या प्रदूषण नही होता है, बल्कि गणेश विसर्जन से प्रकृति को भी भोजन दिया जा सकता है।

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