संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 13-03-2021
फुलेरा दूज-
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को फुलेरा दूज पर्व (अर्थात फूलों की होली) मनाया जाता है। सनातनी वार्षिक समापन के अन्त में पहले बसंत पंचमी फिर फुलेरा दूज और अन्तिम बड़ा त्योहार होली है। होली के समान ही फुलेरा दूज भी रंग बिरंगा पर्व है, जिसमें रंगों के स्थान पर फूलों का उपयोग किया जाता है। फुलेरा दूज पर्व पूरी तरह से भगवान कृष्ण और राधारानी को समर्पित है।
फुलेरा दूज को अबूझ मूहूर्त कहा जाता हैं। इस दिन चंद्रमा मीन राशि में विराजमान रहता है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य को करने अथवा आरम्भ करने के लिये पंचाग देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, बिना पंचांग देखे ही शुभ कार्य व शुभ विवाह किया जा सकता है। इस तिथि पर्व को विवाह की लग्न बहुत जोरों की होती हैं।
भारत के उत्तरी भाग पर स्थित मथुरा के ब्रज भूमि पर इस पर्व को विशेष तौर तरीकों से मनाया जाता है। ब्रजवासियों के लिए फुलेरा दूज से होली उत्सव आगमन होता है और इस पर्व का संम्बन्ध वसंत ऋतु से जुड़ा हुआ है। फूलेरा दूज को ब्रजवासी राधा कृष्ण के मन्दिरों को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर गुलाल और अबीर पहले ईश्वर को अर्पित करते हैं और फिर भगवान संग पुष्पों की होली खेलने का आनन्द लिया जाता है। ब्रज सहित पूरा मथुरा भक्तिमय और कृष्णामृत के रस में डूब कर भक्ति के एक नये शिखर को छूता है और आनंद रस की गाथा गाता है।
सनातन संस्कृति में श्री कृष्ण और राधा रानी की जोड़ी प्रेम का प्रतीक भी है और मान्यतानुसार राधा रानी और गोपियों के संग श्री कृष्ण ने होली इसी दिन से खेली थी। पारिवारिक व वैवाहिक जीवन में समरसता, सरलता और मिठास लाने के उद्देश्य से यह पर्व मनाया जाता है। जिनके जीवन में प्रेम मधुरता की न्यूनता होती है और जीवन रसविहीन फीका-फीका सा लगता हो, उन्हें इस पर्व को पूरे श्रद्धा से अवश्य मनाना चाहिये। परिवार के स्त्री व पुरुष वर्ग दोनों के लिए यह पर्व अतिविशिष्ट हो जाता है, क्योंकि महिला पूरे परिवार और कुटुम्ब को एक सूत्र में जोड़कर रखती है, और पुरुष सूत्र को आगे ले जाता है अथवा परिवार को शक्ति प्रदान करता है, जिसके लिये प्रेम, सरलता, समरसता और मधुरता की सदैव आवश्यकता रहती है। एक समृद्ध और सुख शान्ति पूर्ण पारिवारिक जीवन के लिये यह पर्व चमत्कारिक और आलौकिक अनुभूति का क्षण होता है, जिससे पूरे वर्ष भर कुटुम्बजनों का विरोध वैमनस्यता समाप्त हो जाती है।
फुलेरा दूज को सभी परिवारजन स्नानादि के पश्चात स्वच्छ सुंदर पीले या लाल या गुलाबी वस्त्र धारण कर लें और घर की स्त्रियाँ पूर्ण रूप से 16 श्रृंगार से सजा ले। श्री कृष्ण और राधा रानी की प्रतिमा या चित्र के स्थल को पवित्रकर पीले लाल गुलाबी फूलों से श्रृंगारित कर श्रीकृष्ण को मोर मुकुट, मोर पंखी, बाँसुरी, माला से और राधा रानी को 16 श्रृंगार पूर्ण साज-श्रृंगार करायें और मिश्री, माखन या सफेद नैवेद्य का भोग लगा राधा कृपा कटाक्ष, मधुराष्टक का पाठ करें अथवा राधेकृष्ण राधेकृष्ण का जप भी कर सकते है। धूप-दीप, पूजन अर्चन कर आरती करें, भोग ग्रहण कर घर में सभी को बाँटे दे। भगवान के ऊपर गुलाल व पुष्पों की वर्षा कर उनसे परिवार जनों के लिये आशीर्वाद मांगकर फिर इस पर्व को परिवारजनों के साथ होली के त्योहार के समान ही फूलों और अबीर गुलाल से हर्षोउल्लास से मनाया जाता है, जिसमें एक दूसरे पर फूलों और अबीर गुलाल की वर्षा की जाती है। कृष्ण जी से जुडे़ गीत और भजन भी होते हैं।
फुलेरा दूज पर्व को मनाये जाने का लाभ यह होता है कि परिवार में अशान्ति, रोष, क्रोध और आपसी मनमुटाव नष्ट होते हैं। इस पर्व का ऐसा प्रताप है।
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