Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

Amavasya (Amawas) - शनिवार और अमावस्या का योग, रखे निरोग और दूर करे जीवन से रोग।


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 12-03-2021

सामान्यतः वर्ष के प्रत्येक माह में अमावस्या आती हैं और अधिमास अथवा खरमास होने से एक अमावस्या की संख्या और बढ़ जाती हैं, लेकिन फाल्गुन शनिश्चर अमावस्या हर बार नही आती है। वर्ष 2014 में यह संयोग हुआ था। सात वर्षो के बाद पुनः फाल्गुन शनिश्चर अमावस्या पर्व आया है, जो एक विशिष्ट संयोग है। जिसे सनातनी संस्कृति में अतिमहत्वपूर्ण संयोग कहा जा सकता है। अमावस्या तिथि को शनिवार का संयोग होने से ही शनिश्चर अमावस्या पर्व की संरचना होती है।

सनातन पंचाग अनुसार जब किसी एक राशि में सूर्य और चंद्र साथ होते हैं तब अमावस्या तिथि का निर्माण होता है। शास्त्रानुसार चन्द्रमा की अंतिम कला को अमा कहा जाता है और चन्द्रमंडल के अमा की स्थिति में चन्द्रमा 16 कलाओं की शक्ति से पूर्ण होता है। चन्द्रमंडल में अमा की इन 16 कलाओ से महाकला बनता है, जिसका न कोई उदय है और न ही क्षय होता हैं। शास्त्रों में अमा को कई नामों से भी जाना गया है जैसे अमावस्या, सूर्य.चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं और तर्पण इत्यादि कर्म से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अमावस्या तिथि को गंगा स्नान कर पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म और दान इत्यादि किया जाता है।

सनातन शास्त्रानुसार प्रति वर्ष उत्तरायण से और माह के शुक्ल पक्ष से दैव आत्माएं सक्रिय व दैवीय शक्तियाॅ वास करती हैं और दक्षिणायन से और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय होती हैं। प्रत्येक मास में तीस तिथियाॅ होती हैं, जिसमें प्रथम पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष और शेष पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के होते हैं। शुक्लपक्ष के दिनों में प्रकृति में चन्द्र अपनी रोशनी की 16 कलाओं के माध्यम से तीनों लोकों को प्रकाशमान करता है और दिन प्रति दिन चांद तिल तिल बढ़ता है। शुक्लपक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि को चन्द्रमा पूर्ण अवस्था मे रहता हैं।

और कृष्ण पक्ष में दिन प्रति दिन चांद तिल तिल कर घटता है और अमावस्या तिथि को चन्द्रमा रूप से आकाश से विलुप्त हो जाता हैं। आकाश मण्डन में घोर काला अंधेरा दिखता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय होती है। अमावस्या में तांत्रिक, अघोरी, काला जादू करने वाले उन नकारात्मक ऊर्जाओं को तपबल पर अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर सिद्धि प्राप्त करते हैं। अमावस्या की रात अघोर तन्त्र के लिये अत्यंत सर्वोत्तम माना जाता हैं।

चन्द्रमा मन की शक्ति का कारक होता हैं, जो चन्द्र के घटने और बढ़ने से मनुष्य के मन को प्रभावित करता है और शनि न्याय, परिश्रम और पाप कृत्यो के लिये दण्डाधिकारी के देवता प्रतीक है। फाल्गुन शनिश्चर अमावस्या को सभी नकारात्मक शक्ति से प्रायश्चित कर पितृगणो से कुटुम्ब एवं परिवार के लिये आशीष प्राप्त होता हैं एवं भावी जीवन के क्लेश से मुक्ति प्राप्त किया जा सकता है।

फाल्गुन शनिश्चर अमावस्या को शनि मंदिर में अथवा घर में शनिदेव की प्रसन्नता के लिये पूजन अर्चन और ध्यान और जप, मंत्र करना अतिलाभकारी होता है। शनिदेव को व्रत कर पीपल पेड़ के नीचे काला तिल, सरसों तेल के साथ एक लोहे की कील या एक सिक्का चढ़ा, सरसों तेल का दिप जलाये और गाय और काले कुत्ते को रोटी खिलाने से जीवन के बुरे फल से मुक्ति की सम्भावना बढ़ती है।  शनैश्चरी अमावस्या को पूजन अर्चन से शनि के साढ़ेसाती ढैय्या का बुरा प्रभाव कम होता है और रोग दोष से भी मुक्ति होती है। शनैश्चरी अमावस्या को शिव भगवान की भी पूजा सर्वमान्य है।

शनैश्चरी अमावस्या को गंगा स्नान कर दान पुण्य का विशेष महत्व है। गंगा स्नान या स्वच्छ जल से स्नान करके अमावस्या तिथि को नदी के घाट पर सूर्य देव को साक्षी मानकर जल में तिल, गुड़ मिलाकर पितरों को तर्पण कर काला तिल, गुड़ और गूदे हुये आटे को मिश्रित कर पिंडदान करना चाहिए। गाय को घास, कुत्तें को रोटी, चीटियों को मीठा या आटा खिलाने से पितृ देवता खुश रहते और उनको आत्मतृप्ति और शांति मिलती हैं।

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम, छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम। ॐ शं शनिश्चराय नमःॐ प्रां प्रीं प्रौं सरू शनये। इस मन्त्र का जप करने से स्वयं के मन और आत्मा की शान्ति और सुख प्राप्त किया जा सकता है।

पंडितजी पर अन्य अद्यतन