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Shivratri - शिवरात्रि पर्व को शिव की शक्ति और, शिव भक्ति में है


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 10-03-2021

Shivratri - शिवरात्रि पर्व को शिव की शक्ति और, शिव भक्ति में है!

महाशिवरात्रि पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन महादेव शिव जी और माता पार्वती ने परिणय सूत्र में बंधकर संसार को सांसारिक गति प्रदान की थी। महाशिवरात्रि शिव के ध्यान का पर्व है। योग की उद्देश्य से देखा जाय तो ये दिन शिव अर्थात् योग व सन्यास और पार्वती अर्थात् शक्ति व संचालन के मिलन का है। जिससे यौगिक शक्ति का उत्थान होता है, इसलिये सनातन संस्कृति में शिवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है।

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। वे पारिवारिक परिस्थितियों में रहते हुए भी संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न रह सकते हैं। कई पवित्र पन्थों और सम्प्रदायों में शिव रुद्राभिषेक, शिव मन्त्र, स्त्रोत, महामृत्युंजय जप, शिवपुराण आदि का पाठ विद्वानों द्वारा किये जाते हैं। भारत के बारह ज्योतिर्लिंग के साथ अन्य मन्दिर और शिवालय में भक्तों की लंबी कतार होती है। भारत के अतिरिक्त अन्य पड़ोसी देशों में भी शिव विवाह अथवा शिव रात्रि का पर्व बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शिव रात्रि को शिवालय से शिव की बारात रूपी झांकियों का आयोजन भव्य रूप में किया जाता है। झांकी में शिव परिवार सहित अनेक देवी देवताओं के रूप में बाल कलाकारों के मनोहारी दृश्य प्रदर्शित होते हैं। झांकी के माध्यम से संस्कृति को दर्शाया जाता हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं।

कुछ पन्थ शिव का विजय रूपी दिवस भी मनाते हैं। कुछ साधकों के लिए यह दिवस शिव के कैलाश पर्वत पर एकात्म होने का दिवस मानते हुए यौगिक परंपरा में शिव को किसी देवता की तरह नहीं आदि गुरु मानते हुए अर्चन करते हैं, जिनसे ज्ञान, ध्यान और पूजा है। योगी शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। योग में किसी विशेष अभ्यास या तंत्र से असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को पाया जाता है।

शिवरात्रि को पृथ्वी उत्तरी गोलार्द्ध पर स्थित होती है, जो प्राणी की ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से सीधा जोड़ती है। जब मनुष्य आध्यात्मिक शिखर तक जाता है, तभी प्रकृति उसको और अधिक मदद करती है। इस काल का उपयोग परंपरा में एक उत्सव के समान पूरी रात्रि होता है। शिव के ध्यान और पूजन में रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए निरंतर जागकर यौगिक व अध्यात्मिक ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिलता है।

जो शिव भक्त व्रत करते हैं उनको योग और शिव शक्ति का वरदान अवश्य मिलता है। भक्तों को कहीं जाने की आवश्यकता नहीं होती है, वे मन में शिव का ध्यान कर मन को ही शिवालय बना लेते हैं। प्रातः ही स्नान आदि केे पश्चात भगवान शिव और पार्वती माता का पूजन करने से पहले स्वस्तिवाचन जरूर करें। शिवरात्रि की तिथि के उषा काल से शिवमय होकर पूरे दिन उपवास कर रात्रि के चारों प्रहर शिव को भजे।

स्वच्छ गाय के कच्चे दूध से ॐ ह्रीं ईशानाय नमः मन्त्र का जप करते हुये शिव का अभिषेक कर, फिर दही से ॐ ह्रीं अघोराय नमः मन्त्र जपते हुए स्नान करायें, तत्पश्चात गाय के घी से ॐ ह्रीं वामदेवाय नमः मन्त्र जप से स्नान कराकर शहद से ॐ ह्रीं सद्योजाताय नमः का जप करते हुए स्नान के बाद भस्म का स्नान करवाये। भस्मधारी शिव याचक के कुटुम्ब अथवा परिवार पर संकट नहीं आने देते हैं।

भस्मधारी शिव के लिये भस्म को घर में ही तैयार किया जा सकता है। गाय के गोबर का उपला, चंदन की लकड़ी जला कर राख बना, छननी से छान, भस्म की सूती कपड़े की पोटली बना ले उससे शिव को भस्म का स्नान कराये, हर हर महादेव, बोलते रहे मन ही मन शिव चित्रण को याद करें। उसके बाद जल स्नान कराये। कुश या किसी भी स्वच्छ आसन पर बैठकर। इस दिन माथे पर त्रिपुंड तिलक जरूर लगाये। रुद्राक्ष की माला धारण करें। शिवरात्रि के दिन शिव पूजन प्रदोष काल में ही होना चाहिए या फिर निषिद्ध काल में। इसी समय पूजा करना अति उत्तम है।
फूल, बेलपत्र कटे फ़टे कीड़ा खाये न हो, भाँग, बेर, धतूरा, आम की मंजरी या आम के पत्ते, मंदार के पुष्प, गाय का कच्चा दूध, पांच फल, इत्र, गन्ने का रस, मंदाकिनी नदी का जल संभव हो तो नही तो गंगा जल या नर्मदा नदी का जल भी ले सकते हैं चन्दन लाल या सफेद, मौली, जनेऊ, पन्च मेवा, काले तिल, माता पार्वती को 16 शृंगार की पुड़िया और सिंदूर। भोलेनाथ संग माता पार्वती को चढ़ायें जिनको जो प्रिय हैं वो चढ़ाना चाहिए। शिव चालीसा पढ़ें। शिवपुराण का पाठ कर सकते हैं। शिवरात्रि कहानी को श्रवण करें। पिता शिव माता पार्वती की आरती करें धूप, कपूर,घी का दीपक आदि से।

शिवरात्रि व्रत के पारण मुहूर्त जानने के बाद ही व्रत खोलें। शिवरात्रि के दिन ही व्रत न खोलें नही तो व्रत का फल निष्फल हो जायेगा।

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