संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 09-03-2021
देवघर भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों में एक है और बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के कारण पवित्र स्थल माना गया हैं। देवघर, झारखंड राज्य में स्थित बौद्ध मठों और खण्डहरों से घिरा एक नगर है, जहाँ बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती अलग-अलग स्वरूपों में विराजे हैं। पूजनीय 12 ज्योतिर्लिंगों में से बाबा बैद्यनाथ धाम 9वें ज्योतिर्लिंग स्वरूप सिद्धपीठ हैं और माता सती 52वीं शक्तिपीठों के रूप में शिव के साथ स्थापित है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है, जिस कारण से बैद्यनाथ धाम को कामना लिंग भी कहा जाता हैं।
देवघर का तात्पर्य देवताओं का निवास या घर होता है, यहाँ बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के अलावा माता सती के शक्तिपीठ के साथ छोटे बड़े मन्दिर हैं। कुछ विशेष तथ्यों की वजह से बाबा बैद्यनाथ का ज्योतिर्लिंग अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग है। सामान्यतः भगवान शिव के सभी मंदिरों के गुम्बद के ऊपर त्रिशूल होता है, लेकिन इस बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग में सभी देवी देवताओं के मंदिर के छत पर पंच शूल लगे हुए हैं।
शिवरात्रि के दिन इन पंच शूल को छूने व दर्शन करने की भक्तों में होड़ सी लगी रहती है। महा शिवरात्रि के 2 दिन पहले से (अर्थात विजया एकादशी को) यहाँ प्रतिवर्ष माँ पार्वती व लक्ष्मी नारायण के मंदिरों से पंचशूल को मंदिर के गुंबद से उतार लिया जाता है और भक्तों के दर्शनार्थ मंदिर में अस्थाई रूप से स्थापित कर दिया जाता है। भक्त महा शिवरात्रि के दिन इन्हें छूने और दर्शन कर लेने से ही अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं। महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व सभी पंचशूलों की विशेष रूप से पूजा की जाती है और सभी पंचशूलों को यथास्थान स्थापित कर दिया जाता है। शिवरात्रि के दिन माता पार्वती और शिव के गठबंधन को खोलकर नया गठबंधन बाँध दिया जाता है। गठबंधन के कपड़े को भक्तों में बांटा जाता है, इसके लिए हजारों की भीड़ मंदिर में लगी रहती है।
सनातनी सम्यता में शिवलिंग को भगवान शिव की ऊर्जा का रूप माना जाता है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि लिंग का तात्पर्य स्त्री अथवा पुरूष की जाति का विश्लेषात्मक प्रतीक बिलकूल भी नहीं है।
शैव सम्प्रदाय में लिंग को तीन भागों में माना गया है:-
1. पराशिव- यहाँ पर शिव शिवलिंग का ऊपरी अंडाकार भाग को माना जाता है, जिसे परम वास्तविक, परिपूर्णता में शिव को निराकार, शाश्वत और असीम विशेषताओं का प्रतिनिधि कहते हैं।
2. पराशक्ति- यहाँ पराशक्ति निचला हिस्सा यानी पीठम् को माना जाता है, जिसे सर्वव्यापी, शुद्ध चेतना, शक्ति और मौलिक पदार्थ के रूप में उपस्थित को कहते हैं।
3. परमेश्वर- यहाँ परमेश्वर मध्य भाग को माना जाता है, जिसे परिपूर्णता में भगवान शिव का पूर्ण आकार या स्वरूप कहा गया है। अर्थात परमेश्वर परम वास्तविक, निराकार, शाश्वत, असीम, शुद्ध चेतना, शक्ति और मौलिक पदार्थ के रूप में सर्वव्यापी है, जिसे सिर्फ अनुभूत ही किया जा सकता है।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के लिंग की स्थापना का इतिहास लंका के राजा रावण से आरम्भ होता है। कालान्तर में शिवजी की प्रसन्नता के लिए लंकेश हिमालय पर जाकर घनघोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किये जाने हेतु अपने दस सिरों में एक-एक सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये और नौ सिर चढ़ाने के पश्चात जब दसवाँ सिर भी काटने को थे कि शिवजी ने रावण को प्रकट होकर दर्शन दिये व रावण के दसों सिर ज्यों के त्यों कर आशीष स्वरूप वरदान माँगने को कहा। तब रावण ने वरदान मांगा कि इस लिंग में आपका वास रहे और आप मेरे साथ लंका में स्थापित रहे, जिससे लंका अभेद्य और अजेय हो जाये। शिवजी ने चेतावनी के साथ अनुमति दे दी कि इस लिंग को पृथ्वी पर जहाँ पर भी रख देगा, वहीं यह लिंग अचल हो जाएगा।
इसके बाद देवताओं में हड़कम्प मच गया कि यदि रावण की योजना सिद्ध हो गयी, तो वह समस्त लोकों पर अधिपत्य ग्रहण कर लेगा। तब देवताओ के आग्रह पर विष्णु जी ने हट्टे-कट्टे ग्वाले का वेष धारण किया और रावण के पास पहुचकर लीला रच दी। रावण वेगगति से लंका की ओर जा रहा था, तभी मार्ग में एक चिताभूमि आने पर रावण को लघुशंका से निवृत्ति की आवश्यकता हुई, जहाँ पर वह शिवलिंग को लेकर इधर-उधर लघुशंका हेतु विकल्प ढूंढने लगा, तभी ग्वाल रूपी विष्णुजी को देखा, जिसने अपना नाम बैजनाथ बताया था, उन को शिवलिंग थमाकर लघुशंका से निवृत्ति होने चला गया और मौके के लाभ उठाते हुए बैद्यनाथ ने शिवालिंग को पवित्र स्थान ढँककर स्थापित कर दिया, लौटने पर रावण ने पूरी शक्ति झोंक दी, परन्तु उस शिवालिंग को उखाड़ न सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ा उसे भूमिगत कर लंका को वापस चला गया। इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग पूजन अर्चन कर उनकी फिर से प्राणप्रतिष्ठा की, जिससे पुनः सभी देवी देवताओं को शिवजी के दर्शन लाभ हुआ और शिव-स्तुति करते हुए सभी वापस स्वर्ग को चले गये। जनश्रुति व लोक मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनोवांछित फल देने वाला है।
प्रत्येक वर्ष की महा शिवरात्रि से 2 दिन पहले ही विजया एकादशी मनाई जाती है। सनातनी शास्त्रानुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने स्वयं लंका पर विजय प्राप्ति के उद्देश्य से विजया एकादशी का व्रत किया था, ...
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