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Ram Das Jayanti - रामदास जयंती - गुरु साहिब के अनन्य भक्त एवं सिख संप्रदाय के चतुर्थ गुरु।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 05-03-2021

07 मार्च 2021 को गुरु रामदास की जयन्ती:- सिख संप्रदाय के चौथे गुरु रामदास ने रामसर (रामदासपुर) नामक पवित्र नगर का निर्माण किया था, जिसे आधुनिक काल में अमृतसर के नाम से जाना जाता है। स्वर्ण मंदिर की नींव भी गुरु रामदास ने ही रखी थी। जिस समय ब्रिटिश शासकों द्वारा पंजाब के सभी शहरों एवं नगरों को नष्ट एवं छिन्न-भिन्न किया जा रहा था एवं सामान्यजन अपना निवास इत्यादि छोड़ कर बेसहारा सा जीवन जी रहे थे, तब गुरु रामदास बेसहारा का सहारा बनकर अवतरित हुए एवं सभी को फिर से एक सूत्र में पिरोये रखने का काम किया था। सिख सम्प्रदाय में विवाह पद्धति को सरल एवं सुगम बनाए जाने के लिए ही गुरु रामदास जी ने चार लावों (फेरों) की रचना की थी।

गुरु रामदास का प्रारम्भिक जीवन सरल नहीं था। बाल्यावस्था में 7 वर्ष की आयु में ही उनके माता-पिता दोनों का निधन हो गया। बेसहारा छोटे से रामदास जी को अपनी नानी का सहारा मिला एवं उन्होंने उनके साथ रहकर जीवन व्यतीत किया। गरीब नानी के साथ बालक रामदास ने गरीबी एवं दुर्दिनों को बहुत करीब से देखा एवं अनुभव भी किया था। बालक रामदास घर के खर्च को चलाने के लिये उबले हुये चने को गली-गली घूम कर बेचते थे, जिसकी आय के बल पर इन दोनों का छोटा सा जीवन चला। लेकिन बालक रामदास जी बचपन से ही गुणी एवं अद्भुत थे, उन्हें पठन-पाठन में अत्यधिक आनंद आता था, वे विशेषकर धार्मिक अध्ययन एवं व्याख्यानों में रुचि रखते थे।

युवावस्था मे रामदास जी की सिखों के तृतीय गुरु अमरदास साहिब जी से एक धार्मिक व्याख्यान में भेंट हो गयी, जिसमें उनको इतना आनंद आया कि जब भी थोड़ा भी समय मिलता वो गुरु अमरदास साहिब जी मिलने चले जाते थे, जिससे उनका लगाव अमरदास साहिब से बढ़ता चला गया एवं अमरदास साहिब जी उन्हें अपने साथ लगभग सभी धार्मिक आयोजनों में ले जाने लगे। रामदास की कठोर परिश्रम एवं सत्यनिष्ठ आचरण से अमरदास साहिब सदैव प्रभावित रहते थे, उनके अच्छे संस्कार एवं चरित्र देखकर ही अमरदास साहिब जी ने अपनी बिटिया बीबी भानी का विवाह रामदास साहिब से किया, जिसके उपरांत रामदास साहिब के तीन पुत्र हुए प्रथम पृथीचन्द जी (मोहन जी) एवं द्वितीय महादेव जी (मोहरी जी) और तृतीय अरजन साहिब जी।

गुरू अमरदास साहिब जी ने अपने पुत्रों को गुरु न बनाकर अपने दामाद का अच्छा संस्कार एवं चरित्र देखकर ही रामदास साहिब को अपने स्थान पर सिख संप्रदाय का अगला गुरु चयनित किया। 10 सितम्बर 1574 को गुरू अमरदास साहिब जी द्वारा गुरु रामदास जी को चतुर्थ नानक के रूप में स्थापित किया एवं गुरु रामदास साहिब ने सबसे छोटे पुत्र अरजन साहिब को सिख सम्प्रदाय के पंचम्‌ नानक के रूप में स्थापित किया। पंचम नानक जी के स्थापन के पश्चात वे गुरु रामदास साहिब अमृतसर छोड़कर गोइन्दवाल चले गये, जहां उनका भादौं सुदी-३ सम्वत्-१६३८ दिनांक १ सितम्बर १५८१ को ब्रम्हविलय हुआ।

गुरु रामदास साहिब ने गोइन्दवाल साहिब के निर्माण में बड़ी तन्मयता से सेवा की। गुरू रामदास जी ने ही चक रामदास या रामदासपुर की नींव रखी जो कि बाद में अमृतसर कहलाया और आज सिख संप्रदाय में स्वर्ण मंदिर अमृतसर का प्राण माना जाता है क्योंकि अमृतसर का स्वर्ण मंदिर गुरू रामदास का डेरा हुआ करता था। गुरु साहिब जी ने अपने गुरुओं द्वारा प्रदत्त गुरु लंगर प्रथा को आगे बढाया, जिसमें हजारों लोग लंगर का प्रसाद ग्रहण करके अपनी भूख मिटाते हैं।

गुरु रामदास साहिब अन्धविश्वास, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों के पुरजोर विरोधी थे, उनके लिए मानव कल्याण ही सर्वोपरि था।आज भी रामदास साहिब के दरबार में लोग अपनी विपत्तियाँ दूर करते हैं एवं वहाँ का पानी पढ़कर रोग को दूर किया जाता है।

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