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ब्रह्मांडीय ऊर्जा नियंत्रित करने का वैज्ञानिक प्रयोग कलश स्थापन।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 05-03-2021

सनातन संस्कृति वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित हैं। सनातनी ऋषि मुनियों ने हर कार्य के पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को गहराई से परखने के बाद विधि-विधानों की रचना की है। इन्हीं वैज्ञानिक तथ्यों के कारण सनातन संस्कृति समूचे विश्व मे अपना लोहा मनवा रही है। सनातन संस्कृति को लेकर सभी नतमस्तक हो जाते है। इसी संस्कृति में पूजा स्थल पर कलश स्थापना के पीछे भी गहरे वैज्ञानिक तथ्य छुपे हैं। बड़े अनुष्ठान-यज्ञ आदि में सृजन और मातृत्व दोनों की पूजन स्वरूप पुत्रवती विवाहित स्त्रीया बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभा यात्रा में निकलती हैं। पूजन विधि विधान मे भक्ति एवं वैज्ञानिक तथ्यों के समावेश से घट स्थापना सही प्रकार से किया जाये, तो घर से नकारात्मक ऊर्जा व विकार नष्ट होते हैं, एवम सुख समृद्धि बढ़ती है तथा धन लाभ भी होता हैं।

इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि घट स्थापन द्वारा ब्रह्माण्ड दर्शन मिलता है एवं शरीर रूपी घट से तार्तमय बनता है। ताँबे के पात्र का जल चुम्बकीय विद्युत ऊर्जा को आकर्षित करता है एवं ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का संवाहक बन जाता है। अर्थात जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बैटरी या कोषा होता है ठीक वैसे ही कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास वितरित कर वातावरण को दिव्यता प्रदान करता है। कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वलय ऊर्जावलय को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचारित करता है। संभवतः सूत्र (बाँधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्माण्डीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है।

कलश स्थापना का आध्यात्मिक महत्व यह है कि कलश को भू-पिंड एवं ब्रह्माण्डिय स्वरूप मानते हुए ब्रह्मा सहित 33 करोड़ देवी देवताओ के निवास का केंद्र माना जाता है। कलश को जल के देवता वरुण देव का प्रतीक माना जाता हैं। कलश का मुख विष्णु एवं कंठ पर भगवान शिव एवं मध्य में देवीशक्ति उसके मूल यानी निचली तली में ब्रह्मा जी का निवास एवं घट पर स्थापित नारियल या दीप को लक्ष्मी का प्रतीक माना हैं। कलश के जल में सभी देवी देवताओं का समावेश मानते हुए एक ही स्थान पर सभी देवी देवताओं का पूजन संभव होता है। जब ब्रह्माण्डिय रूपी कलश में सृष्टि के निर्माणकर्ता, पालनकर्ता, दुःखहर्ता त्रिदेवता, आदि शक्ति अन्य 33 करोड़ देवी देवताओं सहित विराजते हैं, तो उनके समावेश से घर की बड़ी से बड़ी विपत्तियों से छुटकारा मिलता हैं एवं अकस्मात मृत्यु योग भी टाला जा सकता हैं।

कलश स्थापना को लेकर भक्तों में नाना प्रकार की दुविधा होती है। जिसमें प्रमुख है कि विशेष पूजा के समय ही कलश स्थापना हो अथवा सदैव कलश भरकर पूजा स्थल पर रख सकते हैं।

इसके अतिरिक्त दीप कलश एवं श्री कलश में क्या भेद हैं।

सनातन संस्कृति में कलश को वैभव एवं सुख, शांति, समृद्धि का प्रतीक माना गया है। कलश दो प्रकार से रखें जाते हैं -

1.दीप कलश

2.श्री कलश

दीप कलश का स्थापना देवताओ के पूजन के लिये प्रयोग किया जाता है एवं श्री कलश का स्थापना देवियों के पूजन में किया जाता है। कलश रखने से पूर्व विशेष समय पर कोई पवित्र तिथि (जैसे एकादशी तिथि, पुष्प नक्षत्र, नवरात्र उत्सव, गणेश उत्सव आदि) को घट स्थापना कर सकते हैं। कलश में पानी भरकर आम / अशोक / जामुन / बड़ के पत्ते लगाकर पूर्णपात्र सहित पानी वाले नारियल पर मौली बाँधकर लाल कपड़े में ढककर कलश में तांबे का सिक्का, सुपारी, दूध डाल कर रखना चाहिए। तांबे का सिक्का से सात्विक गुणों का विस्तार होता हैं। सुपारी डालने से उत्पन्न हुयी तरंगे मनुष्य के रजोगुण समाप्त करती हैं। कलश में दूध डाला जाये तो मनुष्य का मन खुश व उत्साहित होता हैं।

कलश के सम्बन्ध मे प्रमुख बिन्दु -

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