संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 02-03-2021
3 मार्च 2021 को 'हरे कृष्ण, हरे राम' का जाप पूरे विश्व में फैलाने वाले बाबा सीतारामदास ओंकारनाथ की जयंती है। 'हरे कृष्ण, हरे राम' को सर्वव्यापी तारक ब्रह्म नाम के रूप में माना जाता है जो कलियुग में आत्मा का उद्धार करता है एवं मोक्ष या जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्रदान करता है। बाबा सीतारामदास ओंकारनाथ जयन्ती को ओंकार जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। इनका मूल नाम प्रबोध चंद्र चट्टोपाध्याय था, जो कालान्तर में भक्तों द्वारा परिवर्तित कर सीतारामदास ओंकारनाथ कहा जाने लगा। कलयुग में सनातनी संस्कृति से परे राम एवं कृष्ण को मन्दिर प्रांगणों के शंख घण्टों एवं घडि़यालों से जनचेतना मे पहुँचाने का श्रेय महाविद्वान सन्त सीतारामदास ओंकारनाथ का है। भारत राष्ट्र के पञ्चिम बंगाल में फाल्गुन माह कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि को श्री श्री सीतारामदास ओंकारनाथ का जन्म हुआ था एवं 90 वर्ष की आयु में 6 दिसम्बर 1982 को इनकी मृत्यु भी हो गयी।
बाबा ओंकारनाथ कलिकाल के उन साधक-सन्तों में से थे, जिन्होंने सरल भाषा में वर्णित कर भक्ति को सामान्य जन तक पहुँचाया है, जिसमें उनका 'हरे कृष्ण, हरे राम' का जप अत्यधिक प्रचारित प्रसारित हुआ। जो आज भी लोगों में भक्ति करने के समय मुँह से हरे कृष्ण, हरे राम जप स्वतः ही आने लगता है। बाबा ने राम नाम का प्रचार किया एवं हर प्रचार में बोला कि साधना करने के लिए घर से कहीं दूर एकांत ढुढने की आवश्यकता नहीं होती है। घर में रहकर भी एकांत भाव से भगवान को प्रसन्न किया जा सकता हैं। बस घर बैठकर सच्चे मन से हरे कृष्ण, हरे राम का जप भजन कीर्तन करें, भगवान स्वयं आयेंगे।बाबा ओंकार जी के जीवन का अध्ययन किया जाय, तो ज्ञात होगा कि उनका पूरा जीवन कई अद्भूत चमत्कारों से भरा हुआ है। उनके सभी भक्तों का मत है कि बाबा कलियुग में साक्षात दैव रूप में विद्यमान हैं एवं ओंकार बाबा जी के अंदर भगवान का अंश था। किंवदन्ती है कि बाबा ने शिव जी के दर्शन प्राप्त किये हैं एवं बाबा के दर्शन मात्र से ही कवि नरेंद्र जी स्वस्थ हो गये थे। जब बाबा की बाल्यावस्था में शिक्षा दीक्षा आरम्भ हुई थी, तभी से ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने भगवान का नाम जपना प्रारम्भ कर दिया था, एवं शनै: शनै: भक्ति रस में डूबते गए। भगवान के नाम मनः रूप से इतने तल्लीन हुए कि भक्तों द्वारा उनका नाम श्री प्रबोध चंद्र चट्टोपाध्याय से सीतारामदास ओंकारनाथ पुकारा जाने लगा।
बाबा जी पर छोटा सा दृष्टान्त है कि ओंकारेश्वर मन्दिर के दर्शन हेतु बाबा सत्संग मंडली के साथ जा रहे थे, किसी कारण से मध्य प्रदेश के खंडवा स्टेशन पर पहुँच कर पता चला कि ट्रेन तो छूटने वाली है। उस सत्संग मण्डली में रेल विभाग के कुछ कर्मचारी भी थे। उस समय ब्रिटिश शासन था तब समय नियम अधिक कड़े थे एवं उस मण्डली में कुछ अतिवृद्ध लोग भी थे, जो जल्दी से रेल के डिब्बे में नहीं चढ़ सकते थे, जिसके लिए रेल विभाग के कर्मचारी ड्राइवर के पास जाकर बाबा एवं सत्संग मण्डली का परिचय देते हुए बोले कि कुछ क्षण पश्चात रेल चलाये जाने का अनुरोध किया, जिसे चालक ने विभागीय कड़े नियम से लाचार होकर अस्वीकृत कर दिया एवं फिर बाबा से बोला कि आप लोगों को अब दूसरी रेल से चलना होगा, जिस पर बाबा अपनी सत्संग मण्डली को सम्बोधित कर बोले कि रेल को चलने दो, आप सभी घबराये नहीं हम सब इसी रेल से चलेंगे। अत्याधिक समय व्यतीत होने के पश्चात रेल चालक द्वारा रेल चलाने का भरपूर प्रयास कर लिया गया परन्तु चालक अधिक परेशान होने के पश्चात भी रेल नहीं चला सका, तकनीकी परीक्षण के बाद भी रेल नहीं चल सकी। इसके पश्चात उसी सत्संग मण्डली के एक सज्जन ने चालक को जाकर कहा कि उन बाबा से माफी मांगो एवं विनती करो, रेल अभी चल पडेगीं। उन सज्जन की बात मान चालक ने हाथ जोड़ बाबा से कहा कि आप सभी इसी ट्रेन में चलेंगे मुझे माफ कर दें। जिसके बाद बाबा की आज्ञा पाकर सभी भक्तों ने समान सहित अपना अपना स्थान ग्रहण कर पूरे मनोयोग से रेल में ही भजन कीर्तन आरम्भ कर दिया एवं यकायक रेल के सभी यन्त्र अपने आप चल पडे एवं रेल दौड़ने भी लगी।
बाबा ने सभी को यही विचार दिए हैं कि तुम अपने नित्य दिनचर्या में भगवान का नाम जपो। भक्ति में रहो या अभक्ति में, सूची में रहो अथवा असूची में, उठते-बैठते, सोते-जागते सिर्फ 'हरे कृष्ण, हरे राम' के जप से भगवान का नाम लो एवं कुछ मत करो, यही नाम ही तुमसे सब कुछ करा लेगा एवं तुम भवपार हो जाओगे। इसी बीज मन्त्र से उन्हें भी सिद्धि प्राप्त हुई थी। इसके बाद एक दिन देखना तुम क्या थे एवं वर्तमान में क्या हो। बाबा सभी को यही सलाह देते थे यह मन्त्र सब मन्त्रों में अत्याधिक बड़ा एवं अत्याधिक सरल हैं, कलयुग में सिर्फ भगवान का यह मन्त्र मोक्ष दिला सकता हैं।
शायद इसी वजह से सनातन संस्कृति में जब हम किसी से मिलते हैं तो राम-राम, या 'जय श्री कृष्णा', बोलते हैं। ये परंपरा शुरू करने बाले बाबा श्री श्री सीतारामदास ओंकारनाथ थे, जिनको आज शत शत नमन है।
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