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पति की आयु लम्बी एवं पत्नी पूर्ण सुहागन, यह है जानकी जयंती व्रत का प्रभाव


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 02-03-2021

दिनांक 06 मार्च 2021, दिन शनिवार को जानकी जयंती पर्व मनाया जायेगा। जानकी जयंती पर्व फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही माता सीता का अवतरण दिवस भी माना जाता है।

जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त: 05 मार्च को शाम 07 बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ तथा 06 मार्च शनिवार को शाम 06 बजकर 10 मिनट तक।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय मिथिला नगरी में अकाल एवं सूखा पड़ा, लोग त्राहि-त्राहि करने लगे, अनाज समाप्त होने लगा, मवेशी मृत होने लगे, राज्य के निवासी भी राज्य छोड़कर भागने लगे, ऐसी परिस्थिति में मिथिला नगरी के राजा जनक को उनके गुरूजनों ने ज्योर्तिषीय गणनाओं के आधार पर कहा कि यदि आप स्वयं फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किसी ब्राम्हण से खेत लेकर हल से पूरा खेत जोत डाले, तो दैव कृपा से आकाल एवं सूखा समाप्त हो जायेगा। बस अपने गुरूजनों की आज्ञा मानते हुए जनक जी अपनी पत्नी सहित पूरा खेत जोतने में लग गये, तभी अकस्मात प्रातः काल में उनके हल की नोक भूमि में किसी धातु में फँसकर रुक गयी, जहाँ उन्हें कलश दिखा एवं कलश में एक नवजात शिशु (कन्या) के दर्शन हुए, जिसको उन्होंने ईश्वरीय आशीर्वाद मानते हुए उठा लिया, जिस क्षण उस नवजात को गोद लिया, उसी क्षण ही घने बादल छा गये एवं तीव्र बारिश होने लगी, जिससे राज्य का सूखा समाप्त हो गया एवं जीवन फिर से सुचारु रूप से गतिमान हो गया।
चूंकि सीता जी का अवतरण हल के नोक (जिसे सीत भी कहते हैं) से हुआ था, जिस कारण से नवजात शिशु का सीता नामकरण हो गया। राजा जनक निःसन्तान थे, जिस कारण से उन्हेंने तत्काल ही सीता को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया। राजा जनक की लाडली व प्रथम पुत्री होने के कारण ही सीता को जनक दुलारी जानकी भी कहा जाने लगा। शास्त्रानुसार मान्यता भी है कि जानकी जयंती पर्व को यदि सीता जी को प्रसन्न कर लिया जाय, तो उन जातक का सौभाग्य जाग्रत रहता है एवं वैभव कभी कम नहीं पड़ता है। सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए जानकी जयंती मनाती हैं।
जानकी जयंती का व्रत विधान है कि ब्रह्ममुहूर्त में नित्यक्रिया से निवृत होने उपरान्त स्वच्छ वस्त्र धारण कर गंगाजल या गाय के गोबर से पूजन भूमि पवित्र कर ले एवं चार या आठ या सोलह स्तंभों का मंडप बना लकड़ी की चौकी पर माता सीता सहित भगवान राम की प्रतिमा स्थापन कराकर उनका सर्वप्रथम पंचामृत से स्नान करायें, फिर नव पीत वस्त्र सीता सहित राम जी को पहनाकर पीले फूलों की माला अर्पण कर रोली चंदन का तिलक लगायें एवं पीले नैवेद्य का भोग लगाकर सोलह सिंगार कराकर धूप, दीप, कपूर इत्यादि से प्रभु राम व माता जानकी का पूजन पाठ कर आरती करें एवं जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
संन्ध्या काल में दूध-गुड़ से निर्मित व्यंजन बनाकर अपने परिजनों एवं आस-पडोस में सबको भोग वितरित करें एवं गौ दान भी कर सकते है। तत्पश्चात दूध-गुड़ से निर्मित व्यंजन से व्रत पारण करें। दूसरे दिन नवमी तिथि को सोलह सिंगार का सामान किसी सुहागन महिला को दान कर मण्डप का पवित्र नदी में विर्सजन कर दें। शास्त्रानुसार अभिमत है कि जो भी प्राणी भगवान श्री राम एवं माता सीता की पूजा करता है, उसे सोलह महादान का फल एवं पृथ्वीदान का फल प्राप्त होता है।

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