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कठौती में गंगा, माघी पूर्णिमा को जन्मा रविदास (रैदास) जैसा बंदा


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 27-02-2021

गुरु रविदास जयंती, माघ महीने में पूर्णिमा (माघ पूर्णिमा) के दिन पर मनाई जाती है। संत रविदास के जन्मदिवस को रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। संत रविदास का नाम रैदास था।
माना जाता है कि गुरु रविदास (रैदास) का जन्म काशी के सार गोवर्धन गाँव में माघ पूर्णिमा के दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। उनके जन्म के बारे में एक दोहा प्रचलित है। 

"चौदह से तैंतीस की माघ सुदी पन्दरास""

दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।''

अर्थात् संत रविदास दूसरों के दुख दूर करने के लिये धरती पर आये थे। काशी में आज भी रैदास के जन्मस्थान सार गोवर्धन में धूमधाम से रविदास जयंती मनायी जाती है,जुलूस निकाला जाता है, रैदास के दोहे पढ़े जाते हैं। सिख समुदाय के लाखों भक्त काशी में आते हैं। दो दिन पहले से ही कीर्तन भजन से भक्त भक्ति में लीन हो जाते हैं। बचे हुये समय में भगवान की भक्ति भजन करते थे। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व हैं।
जगत गुरु रविदास साधु संगति में रहते थे। कबीर दास उनके घनिष्ठ मित्र थे।कबीर दास के कहने पर उन्होंने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया था।  जगतगुरु रविदास ने जात पाँत ऊँच नीच का विरोध किया था। ये दोहा प्रचलित हैं।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

रविदास ने ईश्वर की भक्ति को मन से जोड़ के देखा उन्होंने बोला है अपने दोहे में।

मन ही पूजा मन ही धूप,मन ही सेऊँ सहज सरूप।

रविदास ने अपने गुरु से व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया और समाज में नैतिक विचार फैलाये। उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके भक्त बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।
रविदास कहते थे कि मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा।
माना जाता हैं कि भारत देश में मुगलों के आक्रमण से पहले चमड़े का कार्य नहीं होता था। इस्लाम धर्म न कबूल करके सन्त रविदास ने चमड़े का कार्य किया। लेकिन अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया। इसके पीछे इतिहास में एक कहानी उल्लेखनीय हैं।संत रविदास भारत के प्रथम क्रांतिकारी थे। भक्ति आंदोलन में अपना समर्थन दिया था। मुगलों के द्वारा जब भारत की जनता को गुलाम बनाया जा रहा था। संत रविदास ने सर्वप्रथम मुगलों का विरोध किया था।
भारत में वर्ण व्यवस्था जात पाँत ऊँच नीच जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन जब भारत में मुगलों का आगमन होने लगा उसके बाद भारत में जात पाँत, ऊँच नीच जैसी व्याथि का बोलबाला शुरू हो गया।
सन्त रविदास ने इन कुप्रथाओं का विरोध किया। रविदास की ख्याति भारत में फैलने लगी तब संत रविदास की लोकप्रियता को देखकर मेवाड़ के राजा महाराणा सांगा ने उन्हें अपने दरवार में संत गुरु विद्वान की उपाधि दी।
सिंकदर लोदी को जब रविदास की लोकप्रियता के बारे में पता चला, तब गुरु रविदास को सतना कसाई के माध्यम से इस्लाम धर्म कबूल करने तथा मुस्लिम बनने के लिये कहा। कवि रैदास ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर ठुकरा दिया।
रविदास चवँर वंश का राज गुरु थे । कहा जाता है कि रैदास पेशे से चमड़े के जूते बनाते थे। इसके पीछे की कथा है। कहा जाता हैं कि सिकन्दर लोदी के शासन में जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाया जा रहा था उसने सनातनियों के लिये दो शर्तें रखी थीं । प्रथम की इस्लाम धर्म कबूल करें। दूसरी इस्लाम न कबूल करने पर चमड़े का कार्य करें। इस्लाम धर्म न कबूल करना पड़े इसलिये सन्त रविदास और चवँर वंश के अन्य लोगों ने चमड़े का कार्य करना शुरू किया।

रैदास ने ऊँच:-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।

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