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बुध प्रदोष पारिवारिक विपत्तियों का सटीक उपाय व उपचार भी है


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 24-02-2021

24 फरवरी 2021 दिन बुधवार को माघ प्रदोष व्रत का दिन हैं। वैसे तो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी तिथि आती है। इस प्रकार से प्रत्येक मास मे दो बार त्रयोदशी मिल जाती है। त्रयोदशी तिथि को ही संक्षेप में प्रदोष कहा जाता है। सनातन संस्कृति में महादेव शिव जी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत से सुंदर और उत्कृष्ट कोई प्रावधान नहीं है। जीवन के सभी ज्ञात-अज्ञात दोष, पाप और संताप का निवारण प्रदोष व्रत से होता है, प्रदोष इन्हीं तथ्यों पर आधारित है कि सनातन संस्कृति में महादेव शिव जी को जीवन रक्षक और सद्गति प्रदाता मानते हैं। मान्यता है कि प्रदोष के दिन महादेव शिव जी का निवास व विचरण कैलाश पर्वत पर होता हैं। यदि प्रदोष की सन्ध्या काल में शिव संग पार्वती जी की स्तुति, वन्दना, पूजन पाठ या जप-तप किया जाता है, तो उसे शिव जी स्वीकार करते हुए याचक का कष्ट, दोष, पाप, संताप और विपदाओं का निवारण करते है। सर्वमान्य है कि शिव जी एक ऐसे देवता है, जिन्हें देव-दानव समान रूप से मानते हैं और जिनकी सिर्फ कृपा मात्र से ही सरलता से जीवन के सभी रोग, दोष, दुख, चिंता और भय से मुक्ति हो जाती है। इन्हीं प्रभावों से भगवान शिव को महादेव उपनाम सम्बोधन से बुलाया जाता है।

प्रदोष तिथि को बुधवार हो जाने से व्रत का प्रभाव परिवर्तित होता है और भक्त को बुध ग्रह के दोष का निवारण और प्रदोष व्रत का प्रभाव साथ-साथ मिल जाता हैं। बुधवार और प्रदोष का संयुक्त व्रत पूर्ण कर शिव ताण्डव स्रोत का पाठ करने से व्यक्ति की कोई कामना अधूरी नहीं रहती है। सामान्यतः विशेष मनोरथ पूर्ति की कामना से बुधवार संयुक्त प्रदोष का व्रत किया जाता हैं। 

सांसरिक जीवन में नाना प्रकार के भोग और परिदृश्य मिलते हैं। सांसरिक जीवन में गृहस्थ जीवन ही सबसे क्लीष्ट माना गया है, जिसमें सभी प्रकार के कर्तव्यों का पालन करना होता है, जो सारे रोग-व्याधि, दुख-तकलीफ, दोष, चिंता और भय से युक्त होता है। संकट या दुख निम्न प्रकार से जीवन में दिखते है जैसे -

:- परिवारिक परिदृश्य में समानता का ना होना, घर व परिवार में क्लेश, कलह, अशांति फैलाता है, जिसमें आर्थिक तंगी  सबसे बड़ा कष्ट बन करके उभरता है।

:- शिशुओं या संतान का मन एकाग्र ना होने के कारण शिक्षा-दीक्षा से मन भागता है, जिससे अंक तालिका में प्रप्तांक का अंक न्यूनतम प्राप्त होना।

:- स्वयं में संशय की स्थिति उत्पन्न हो जाने से उच्च पद प्राप्ति बाधित हो जाना और सफलता का कोसों दूर दिखने लगना।

:- उच्च शिक्षा में दैवीय प्रभावों से बार बार बाधाएं उत्पन्न होती रहें, जिससे सफलता बार बार बाधित हो जाए।

ऐसे कई प्रकार के कष्ट हैं, जो बताए जा सकते हैं। इस प्रकार की सभी परिस्थियों में बुधवार संयुक्त प्रदोष व्रत करना, एक अच्छा उपाय व उपचार सिद्ध होता है। बुध प्रदोष को व्रत-नियम, जप-तप ,दान-पुण्य करने से परिवार पर आया किसी भी प्रकार का संकट कम या समाप्त हो जाता है। बुध प्रदोष को सम्भव हो, तो शाम में देवालय में धूप दीप अक्षत तिल धतूरा इत्यादि समग्रियों से शिव पार्वती की प्रतिमा के समक्ष पूजन करें और पूजनोपरान्त नंदी के सींग, पूँछ को स्पर्श और प्रणाम कर उनके कान में सच्चे मन से अपने दुख बताने से शिव-पार्वती जी तक प्रार्थना या निवेदन पहुंचता है,ऐसी मान्यता है। मन्दिर न जा सकें, तो भी शाम के समय घर में पूजन स्थल पर स्वच्छ होकर शिव पार्वती जी को घी शक्कर का भोग लगाकर आठों दिशाओं में दिया प्रज्वलित करना शुभ होता है। मान्यता यह भी है प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा व व्रत करने से जीवन काल में किए गए सभी पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

पुराणों अनुसार दो गायों के दान से जितना फल मिलता है, उतना पुण्य मात्र एक प्रदोष व्रत का फल होता है। प्रदोष व्रत अन्य दूसरे व्रतों से अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। वेदों के महाज्ञानी सूत जी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों के समक्ष प्रदोष व्रत के महत्व का व्याख्यान किया था। उक्त व्याख्यान में सूत जी ने पहले से ही सूचित कर दिया था कि कलियुग में अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अधर्म और अन्याय की राह पर जायेंगे, उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा, जिसके द्वारा मानव शिव की अराधना कर पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।

शास्त्रानुसार भगवान शिव जब माता सती को सांसरिक ज्ञान से अवगत करा रहे थे, उसी समय प्रदोष व्रत का महात्मय भी बताया था, जिसका वर्णन महर्षि वेदव्यास जी ने सूत जी के समक्ष किया था, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा शौनकादि ऋषियों के समक्ष बताई और उसका बखान भी किया। उसके उपरांत ही सांसरिक व्रत उपासनाओं में प्रदोष व्रत का प्रचलन हुआ। इस व्रत को सबसे पहले चंद्रदेव ने रखा था। जिसके बाद भगवान शिव की कृपा से वह क्षय रोग से मुक्त हो गए थे। दक्षिण भारत में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है और वहाँ यह प्रदोष व्रत प्रदोषम् नाम से प्रचलित है।

बुध प्रदोष मुहूर्त - 24 फरवरी को माघ माह शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि शाम 6 बजकर 5 मिनट से आरम्भ और 25 फरवरी की शाम 5 बजकर 18 मिनट तक समापन होगा।

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