संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 05-03-2021
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती के उपलक्ष्य पर माता शबरी की उपासना होती है। शबरी जयंती को माता शबरी का आशीर्वाद मिलने से एवं श्री राम जी की कृपा से याचक के दुख दारिद्रय एवं गृह क्लेश मिटते हैंं।भगवान राम ने अपने वनवास काल में माता शबरी से उनकी भक्ति एवं प्रेम में उनके हाथों से जूठे बेर खाकर उनकी प्रेम एवं भक्ति को चराचर जगत में अजर अमर किया था। रामायण, भागवत, रामचरित मानस, सुरसागर आदि ग्रंथों में शबरी के जूठे बेर की कथा पढ़ने को मिलती है। भारत के कई राज्यों में शबरी स्मृति यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें श्री राम भक्त अवश्य भाग लेते हैं। शबरी जयंती को सनातनियों के लिए भक्तिपूर्ण दिन होता हैं।
भारत में स्थित छत्तीसगढ़ प्रांत के खरौद नगर में (सौराइन दाई) शबरी मंदिर स्थित है। जहां पर श्रीराम एवं लक्ष्मण जी ने शबरी के जूठे बेर खाये थे, आज उसी स्थल पर शबरी मंदिर है। जिसके निर्माण काल का उल्लेख लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के शिलालेख पर मिलता है। शबरी मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम एवं लक्ष्मण धनुष बाण लिये विराजमान हैं एवं मंदिर के गर्भ-गृह प्रवेश द्वार पर विष्णु जी के होने की कल्पना कर गरुड़ जी की मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में देवी प्रतिमा भी है, यह तथ्य अज्ञात है कि देवी प्रतिमा कब एवं किसने स्थापित की। संभवत: विष्णु एवं शक्ति में सामंजस्य स्थापना के विचार से मंदिर प्रांगण में देवी प्रतिमा है।
शबरी मंदिर के इसी क्षेत्र को रामायण काल में दंडकारण्य क्षेत्र कहा जाता था। इसी दंडकारण्य क्षेत्र के वन में श्रीराम, लक्ष्मण एवं जानकी ने कई वर्ष व्यतीत किये थे एवं इसी क्षेत्र से सीता का हरण हुआ था। सीता की खोज के दौरान श्रीराम एवं लक्ष्मण शबरी आश्रम में आकर उनके जूठे बेर खाये थे। इसी प्रसंग के कारण इस स्थान को शबरी-नारायण कहा गया है, जो कि कालान्तर में बिगड़कर शिवरी नारायण कहा जाने लगा है। रामायण काल में दंडकारण्य क्षेत्र पर खर-दूषण का राज था, जिनकी श्रीराम के हाथों से मुक्ति हुई थी। कदाचित् इन्हीं तथ्यों पर आधारित यह क्षेत्र खरौद नगर के नाम से प्रसिद्ध है।
माता शबरी के भक्त मंदिरों एवं घरों में रामायण का पठन-पाठन करते एवं कराते हैं तथा भक्ति में राम का जप कर अन्न जल का दान करते हैं। पूजा स्थल पर भजन कीर्तन से खूब धूमधाम रहती है।
पुराणों के अनुसार शबरी कथा इस प्रकार हैं:- माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था। श्रमणा का जन्म शबरी ग्राम में हुआ था। श्रमणा बाल्यावस्था से ही भक्तिरस में डूबी रहती थी। भील समुदाय के राजकुमार से श्रमणा का विवाह हुआ था एवं श्रमणा अपने पति के अनैतिक व्यवहार, पशु बलि एवं उनकी दैत्य प्रवृत्ति आदि से तंग आकर गृह त्याग कर दंडकारण्य वन में आकर ऋषि मातंग के आश्रम रहने लगीं एवं भक्ति में समर्पित हो गयी। जहां उनको शबरी नाम से जाना गया। ऋषि मातंग ने अपना अंत समय निकट देख एवं शबरी की भक्ति, सात्विकता एवं सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया कि वे इसी आश्रम में विष्णु अवतार श्री राम की प्रतीक्षा करें। उन्हे केवल श्री-राम के दर्शन ही नहीं, अपितु भगवान स्वयं आकर मिलेंगे एवं तुम्हें उनकी सेवा का अवसर भी प्राप्त होगा। उसके पश्चात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में ही व्यतीत होने लगा एवं एक दिन ऐसा अवसर भी आया, जब विष्णु अवतार श्री-राम उनके पास स्वयं आकर रुके। शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें खोज रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु श्री-राम आ गए हैं। शबरी प्रभु राम के पास पहुंची एवं उन्हें घर लेकर आई एवं शबरी जंगल से प्रतिदिन भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। एक भी बेर खट्टा न हो, इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी एवं श्री राम को मीठे बेर दिए, जिसे भगवान राम ने बड़े प्रेम से खाए एवं भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को ही भगवान राम के आशीर्वाद से माता शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
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