संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 18-01-2021
सनातनी संस्कृति अंतरिक्षीय, ब्रह्माण्डिय और प्राकृतिक तत्वो पर अध्ययन कर जीवन के सूत्रो मे पिरोया हुआ अनुसंधानीय संस्कार है, जिसमे प्रकृति जीवन का एक अहम् हिस्सा है। प्राकृतिक औषधि, यानी ऐसे पेड़-पौधों का प्रयोग शरीर को निरोगी रखने में किया जा रहा है। पेड़-पौधों का प्रयोग किसी न किसी प्रकार से मनुष्य के लिए उपयोगी हैं। इन्ही औषधि और पेड़-पौधों में मूली (मूलकम) भी एक है। भारत व चीन में यह प्राचीन समय से ही भोजन बनाने के रूप में उपयोग की जाती रही है। कुछ शोधकर्ता मूली की उत्पत्ति पश्चिमी चीन और भारत में मानते है, लेकिन कुछ शोधकर्ता इसकी उत्पत्ति या जन्म स्थान दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप मानते है। प्राचीन समय में चीन और यूनानी व्यंजनों में सबसे पहले मूली को खाने में परोसा जाता हैं। कुछ देशों में कृषक वैज्ञानिको द्वारा मूली को भूख बढ़ाने के टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
पूरे भारतवर्ष में जड़ों वाली सब्जियों में मूली एक प्रमुख फसल है। भारत में मूली की खेती बड़ी तादाद में किया जाता है। मूली (मूलकम) सब्जी के साथ-साथ सलाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। मूली के व्यंजन को बहुत शौक से खाया जाता है। (जैसे - मूली के पराठे, सब्जी, मूली का सलाद, मूली का आचार इत्यादि।) मूली जितनी स्वादकारी है, उतनी ही स्वास्थ्यप्रद भी है। माना जाता है कि मूली को खाने के बाद भूख बढ़ती है। स्वास्थ्य के लिये मूली (मूलकम) के साथ साथ इसके पत्ते भी गुणकारी है। मूली के नए पत्ते देखने में सरसों के पत्तों जैसे दिखते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और देखने में सरसों के फूलों की तरह ही होते हैं। इसके बीज और जड़ से सफेद रंग का तेल निकाला जाता है। रंगों के अनुसार मूली दो प्रकार की होती है। 1- सफेद मूली 2- लाल मूली
मूली (मूलकम) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस और लौह का अच्छा स्रोत है। जिस कारण से कई रोगों में रामबाण दवा की तरह मूली का उपयोग किया जाता है।
मूली के औषधीय तत्व के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य :-
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