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Makar Sankranti - मकर संक्रान्ति: खान-पान, प्रथाएं और परंपराएं


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 18-01-2021

भारत त्योहारों और पर्वों का देश है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारें देश से ज्यादा किसी भी देश इतने त्योहार या पर्व मनाए जाने की परम्परा हो। सूर्य का उत्तरायण में आना भी एक त्योहार या पर्व है, ये भारत वर्ष में आकर ही पता लगता है। मकर संक्रान्ति का पर्व लौकिक होने के साथ ही शास्त्रीय भी है। यह ऋषि और कृषि दोनों का त्यौहार है। पूरे देश में अलग-अलग नामों से यह त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति पर तिल के लड्डू बनाए और खाए जाते हैं। मकर संक्रान्ति का त्यौहार पतंगों के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। खिचड़ी, तिल-गुड़ तथा पतंग भी इस त्यौहार की पहचान हैं। सूर्य की आराधना, दान और गंगा स्नान का इस त्यौहार में बहुत महत्व है। शास्त्रों की मानें तो, इस दिन स्नान, दान, तप के परिणाम स्वरूप मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश के साथ ही धीरे-धीरे सर्दी कम होने लगती है। रातें छोटी और दिन बड़े होने से मोसम में बदलाव दिखना शुरू हो जाता है। दिन के वातावरण में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और वातावरणीय बदलाव से प्राणियों में नई ऊर्जा का संचार शुरू होता है। पवित्र नदियों में स्नान के साथ ही ढोल-नगाड़े, गायन, नृत्य और पतंगबाजी जैसे विभिन्न आनंद दायक कार्यों के साथ सनातनी इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं।

मकर संक्रान्ति किसानों के लिए कृषि पर्व भी कहा जाता है। इस पर्व को फसलों से जोड़कर भी देखते है। खरीफ की कटाई और रबी की फसल का खेतों में लहराना किसानों के लिए विशेष आनंद का अवसर है यह पर्व। कुछ स्थानो पर किसान बैलों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। खेती के काम में मदद करने वाले बैलों और खरीफ की अच्छी पैदावार के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हुए किसान इस पर्व को मनाते हैं। 

तिल मकर संक्रान्ति का मुख्य खाद्य है। इसके बहुत से मौसमी, पौराणिक तथा स्वास्थ्य संबंधी कारण बताए गए हैं। पुराणों के अनुसार रूठे पिता सूर्य जब पुत्र शनि के घर गए, तो शनि ने उनकी काले तिलों से पूजा की थी। मान्यता है कि शनि को काला तिल बहुत प्रिय है, पिता के आगमन के समय उनके पास, उस दिन कुछ नहीं था। काले तिलों से प्राप्त आतिथ्य से सूर्य भी प्रसन्न हुए थे, जिसके परिणाम स्वरूप शनि देव को पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई। सूर्य ने उन्हें आशीष दिया कि उनका दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन-धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका खोया हुआ वैभव प्राप्त हुआ, तभी से इस अवसर पर सूर्य की तिलो से पूजा का महत्व है और तिल खाने का भी।

मकर संक्रांति पर्व पर तिल और गुड़ से बनी चीजों का भी सेवन किया जाता है और तिल, गुड़़ से बनी चीजों को दान एवं भोग के रूप में भी दिया जाता है। मान्यता है कि तिल और गुड़ से बनी चीजों का दान करने से ग्रह दोषों से मुक्ति होती हैं ।

मकर संक्रान्ति पर तिल और गुड़ से कई तरह के व्यंजन, जैसे-गज़क, लड्डू, तिलकुट इत्यादि बनाने और खाने की परंपरा हैै, इसमे स्वास्थ्य संबंधी कारण हैं। तिल में तेल की प्रचुर मात्रा के साथ आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन, वसा और विटामिन भी प्रचुर मात्रा होती हैं और तिल की तासीर गर्म होती है और गुड़ की भी तासीर गर्म। सर्दी में इनके सेवन से शरीर को आवश्यक ऊष्णता प्राप्त हो जाती हैं। अतः इस पर्व में तिल और गुड़ का बहुत महत्व है। इन वस्तुओं का सेवन करने से प्रतिरोधक क्षमता भी दृढ़ होती है। 

तिल गुड़ के साथ ही इस पर्व पर खिचड़ी (नये चावल और दालो से बना तरल खाद्य) सेवन को विशेष महत्व दिया जाता है। खिचड़ी में उड़द की दाल, घी, चावल और अन्य सब्जियों को सामग्री मिलाया जाता हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक होता हैं और शरीर ऋतु परिवर्तन के दुप्रभाव को दूर कर निरोगी बनाता है।

मकर संक्रांति को खिचड़ी और तिल खाने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी है। मकर संक्रांति के समय वर्ष की सबसे ज्यादा ठंड होती है और सूर्य का एक से दूसरी राशि में प्रवेश करने से ऋतु परिवर्तन से कई विकारों और बीमारियों का भय बढाता है और खिचड़ी एक हल्का भोजन है और इसमें वे सभी पोषक तत्व मिलते हैं जो शरीर की ऊष्मा को बनी रहती है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। यही मूल तथ्य है कि इस त्योहार पर तिल-गुड़ की चीजें और दाल, सब्जी वाली खिचड़ी खाई एवं खिलाई जाती है।

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