संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 14-01-2021
आज के आधुनिक युग में रुद्राक्ष की पहचान विश्वव्यापी है और रुद्राक्ष के प्रति विश्व के सभी धर्मो और पंथो की आस्था और श्रद्धा समान रूप से दिखती है। रुद्राक्ष पर विश्व की कई प्रयोगशालाओं मे अनुसंधान हो रहे है, कि एक पेड़ के फल कं बीज मानवीय चेतना को कैसे नियंत्रित करता है। अभी तक उन तथ्यों पर अनेकों चर्चाएं मिलती है, परंतु शोधपरत तथ्य न्यूनतम है।
रुद्राक्ष को सनातन संस्कृति में देवो में देव महादेव शिव जी से जोड़कर देखा जाता है अर्थात् इस सृष्टि के आरम्भ से ही सांसारिक जगत में रूद्राक्ष स्थित है, सभ्यताओ के विकास के साथ ही इसके गुणों को भी पहचान मिलती गई और धर्म निर्माण के साथ ही कई संस्कृतियों में रुद्राक्ष को अपना आदरणीय स्थान मिलता चला गया। रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है - रुद्र + अक्ष। रूद्र का अर्थ शिव और अक्ष का अर्थ आँख है। भगवान शिव का एक अन्य नाम रूद्र भी है। सनातन परम्परा में ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष भगवान शिव की आँख से गिरा हुआ अश्रु है । हालांकि प्राकृतिक सत्य यह है कि रुद्राक्ष फल से निकलने वाला बीज है, किंतु इसके पीछे पौराणिक कथाएँ और किंवदंतियाँ अनेक हैं।
प्रथम - शिव पुराण के कथानुसार शिव जी ने संसार के कल्याण की कामना से हज़ारों वर्षों तक कठोर तप किया। तपस्या के मध्य ही उन्हें अनायास भय महसूस हुआ और गहन समाधि से जब उन्होंने अपनी आँखें खोली, तो उनकी आँखों से अश्रु पृथ्वी पर जा गिरे। जिन जगहों पर ये अश्रु गिरे, वहां पर पेड़ उग आए और फिर संसार को रुद्राक्ष रूपी वरदान मिला।
द्वितीय कथानुसार माता सती के आत्मदाह के पश्चात् क्रोधित और दुःखी शिव जी ने ताण्डव किया और उसी दुख के क्षणों में उनके आंखो से अश्रु निकल कर ईधर-उधर पृथ्वी पर गिरते गए और प्रकारान्तर में पहले वृक्ष और फिर फल और फलों से ही रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।
भौगोलिक रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी एवं पश्चिमी घाट में रुद्राक्ष के मध्यम आकार के वृक्ष पाए जाते हैं। रूद्राक्ष के घने वन नेपाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बंगाल, बिहार, असम, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में मिलते है। शेष भारत के अन्य प्रांतों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं तथा भारत के कई भागों में रुद्राक्ष वृक्ष को छाया एवं शोभाकारी वृक्ष के रूप में भी उगाते हैं। रुद्राक्ष वृक्ष की पत्तियाँ आयताकार-भालाकार होती हैं। मई-जून में इसके श्वेत पुष्प खिलते हैं और नवंबर से दिसंबर तक इसके फल पक जाते हैं। इसका फल हल्का नीलापन लिए बैंगनी रंग का अष्ठी फल होता है, जिसमें गूदा व गुठली होती है जो कड़ा, गोल व अंडाकार हो ता है। यह प्रायः पंचकोषीय होती है किंतु कभी-कभी प्रकृति में एक से सात कोषीय गुठलियाँ भी मिलती हैं।
रुद्राक्ष वृक्ष को विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। इसे बंगाल में रुद्राख्या, उड़ीसा में रुद्राख्यों, हिंदी में रुद्राकी, असमी में रुद्रई, तोहलंगसेवई, लटोक, उद्रोक तथा मराठी, तेलगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, संस्कृत में रुद्राक्ष नाम से पुकारा और पहचाना जाता है। वैसे इसका वैज्ञानिक नाम ‘इलियोकार्यस स्फेरीकस’ है।
भारत व अन्य हिमालयी क्षेत्रों के जिन हिस्सों में रुद्राक्ष के वृक्ष पाए गए, वहाँ अन्य प्राकृतिक वस्तुओं के साथ ही रुद्राक्ष भी श्रृंगार साधनों के रूप में अपनाया गया। प्रकृति के सानीहघ में जीने वाला मनुष्य प्राकृतिक वस्तुओं से श्रृंगार कर अपनी सौंदर्य की इच्छा को पूर्ण करता रहा है। सनातन परंपराओं और आध्यात्मिक अभ्यासों के पालकों को यह बीज बहुत भाया। वैदिक मतावलंबी अर्थात् वर्तमान में सनातनी कहलाए जाने वाला समुदाय इसे एक आभूषण, संरक्षक, ग्रहों की शांति और आध्यात्मिक लाभ देने वाली वस्तु मानते हुए प्रयोग करते हैं। चूंकि इसका प्रयोग आध्यात्मिक प्रक्रियाओं में ज्यादा होता है, सो इसे अत्यधिक पवित्र माना गया है। रूद्राक्ष को युक्ति व मुक्ति देने वाला भी मानते है। मनुष्य प्रकृति से अलग नहीं है। अतः प्रकृति के प्रभाव से मनुष्य अछूता नहीं रह सकता है। जैसा वो बाहर है, वैसा ही वो अंदर भी है, यानी मानव का सब कुछ प्रकृति अधीन है, सो रुद्राक्ष के प्रभाव को भी मनुष्य ने अपनी चेतना व ध्यान शक्ति में अनुभूत किया और रुद्राक्ष को एक ऐसे आभूषण के रूप में धारण किया, जो न सिर्फ मानव की मानसिक और भावनात्मक हलचलों को शांत करता है, बल्कि कालांतर में यह सन्यासियों, ऋषियों, मुनियों और संतों की पहचान भी बन चुका है। रुद्राक्ष केवल एक आध्यात्मिक चर्चाओं में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु नहीं थी, बल्कि यह कुछ मनुष्य की भीतरी शारीरिक अक्षमताओं को संभालने में भी मदद करने लगी।
रुद्राक्ष एक प्राकृतिक वस्तु है। क्षेत्रीय धार्मिक मान्यताओं के कारण ही इसका धार्मिक महत्व तो है ही, वरन् इसका वैज्ञानिक महत्व भी है, जो निम्नवत है : -
1. धार्मिक महत्व की दृष्टि से मान्यता है कि शिव जी को रुद्राक्ष बहुत प्रिय हैं। इसलिए जो भी मनुष्य रूद्राक्ष धारण करता है वह भगवान शिव को भी प्रिय होगा और उस पर शिव जी की सदैव अनुकंपा रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि इसे धारण करने वाले व्यक्ति के मन से सभी तरह की नकारात्मकता दूर रहती है और उसे किसी भी तरह के डर या भय से छुटकारा मिल जाता है।
2. रुद्राक्ष का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड तरंगों और स्पंदनों से युक्त है ,जिसे गहन वन प्रांतरों में जाकर महसूस किया जा सकता है। योगी और ऋषि तप के लिए गहन वन प्रान्तरों में ही जाते रहे हैं, जहां विशुद्ध प्रकृति आच्छादित हैं और ब्रह्माण्डीय तरंगों का अनुभव अधिक आसानी से होता है। रूद्राक्ष को चेतना संचालक मानते है, इसी कारण तप और समाधि कि स्थिति में रूद्राक्ष धारण के बाद योगी और ऋषि प्रकृति अथवा ईश्वर के निकट जल्दी पहुंचते हैं।
3. रुद्राक्ष में मनुष्य के शरीर पर स्पंदनिक प्रभाव डालने की शक्ति है। रुद्राक्ष के रोम छिद्रों में एक अलग तरह का स्पंदन होता है जो हृदय पर प्रभाव डालता है
4. मान्यता है कि रुद्राक्ष से विशेष तरंगें निकलती हैं, जो मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव डालती हैं और रुद्राक्ष को धारण करने वाला तनाव, चिंता और अवसाद से दूर रहता है।
5. मान्यता है कि रुद्राक्ष को पहनने से ब्लैडर संबंधी रोग, स्मृति क्षय, श्वास, हृदय, यकृत, स्तन संबंधी रोगों तथा रक्तचाप से मुक्ति मिलती है। रुद्राक्ष में एक मैग्नैटिक (चुम्बकीय) प्रभाव होता है जो धमनियों और शिराओं में रक्तसंचरण के अवरोध को खत्म करके मानव शरीर में रक्त प्रवाह को सुगम करता है। (हालांकि यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि यह किसी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का विकल्प नहीं है, केवल उसमें सहयोगी है )
रुद्राक्ष के इन घोषित-अघोषित प्रभावों को देखते आधुनिक चिकित्सा तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इस पर समय समय पर विभिन्न शोध भी होते रहे हैं, किंतु अभी तक वे पूरी तरह आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में शामिल नहीं हुए हैं। इसके लाभों में अधिकतर अनुभूत हैं। अतः रुद्राक्ष को धार्मिक, ज्योतिष तथा ऊर्जा संबंधी चिकित्सा विधियों में विशेष स्थान प्राप्त है और रुद्राक्ष के मुख के आधार पर उनके धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है और यह भी पता लगाया जा सकता है कि वह कितने मुख का रुद्राक्ष है। संस्कृत में मुखी का अर्थ चेहरा होता है इसलिए मुखी का अर्थ रुद्राक्ष का मुख है। रुद्राक्ष का अर्थ होता है भगवान शिव का एक अंश क्योंकि मान्यतानुसार यह भगवान शिव के अश्रुओं से बना है अतः भगवान शिव के अंश के रूप में यह साधकों के लिए परम पूज्य और पवित्र है। रुद्राक्ष विभिन्न आकारों में पाया जाता है। अधिकांशतः लोग इसके आकर को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। रुद्राक्ष के चुनाव को लेकर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके मुख या केंद्र के पास दरार न हो। रुद्राक्ष के आकार को हमेशा मिलीमीटर में ही मापा जाता है। रुद्राक्ष भी मटर की तरह ही छोटे से बड़े आकार के होते हैं। कुछ रुद्राक्ष तो अखरोट के आकार तक बड़े हो जाते हैं। इसलिए इसकी सही पहचान करनी चाहिए, तब ही यह अपने वास्तविक स्वरूप में अधिक प्रभावशाली हो पाएगा।
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