संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 18-12-2020
सनातन संस्कृति में प्रकृति को पूजनीय माना गया है। आदिम युग से सभ्य मनुष्य में बदलने की यात्रा के दौरान प्रकृति ने मनुष्य की बहुत सहायता की और उसने प्रकृति से बहुत सीखा भी। भारत में तो प्रकृति मनुष्य के जीवन का अनिवार्य अंग बन गई। तमाम वनस्पतियाँ और वृक्ष उसके लिए पूज्य और ज़रूरी हो गए, न सिर्फ भोजन बल्कि स्वास्थ्य को समृद्ध करने में भी । भारत में मनुष्य प्रकृति के साथ रहा और उसकी पूजा करता रहा। सभ्यता के विकास के दौर में हालांकि बहुत कुछ बदला पर प्रकृति कुछ परंपराओं के तौर पर अब भी उसके साथ है। जंगल के उपयुक्त औषधीय वृक्षों, झाड़ियों, लताओं तथा पौधों ने क्रमशः उसके घर में स्थान बनाया और किसी न किसी बहाने उसके दैनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बने। इनमें से एक महत्वपूर्ण पौधा है- तुलसी। तुलसी सिर्फ एक पौधा ही नहीं है, इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है।
भारत में प्रत्येक हिंदू परिवार में तुलसी एक अनिवार्य पौधा है। इसका धार्मिक महत्व भी है। तुलसी को घर के आंगन में पूजनीय स्थान दिया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से तुलसी को लेकर वैदिक ग्रंथों और पुराणों में अनेक पौराणिक कथाएँ व व्याख्यान मिलते हैं । यह इसका एक पक्ष है। वास्तव में इस वनस्पति का औषधीय प्रभाव अत्यधिक है। संभवतः इसीलिए इसे धार्मिक कर्मकाण्डों और कथाओं के माध्यम से संरक्षित करने का प्रयास किया गया हो। सत्य तो यह है कि हम वृक्षों को पूजते हैं क्योंकि हम उन्हें बचाए रखना चाहते थे, बचाए रखना चाहते हैं।
हमारे ऋषियों को लाखों वर्ष पूर्व तुलसी के औषधीय गुणों का ज्ञान था इसलिए इसको दैनिक जीवन में प्रयोग हेतु इतनी प्रमुखतः से स्थान दिया गया है। आयुर्वेद में भी तुलसी के फायदों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। वास्तव मेंतुलसी एक औषधीय पौधा है जिसमें विटामिन (Vitamin) और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सभी रोगों को दूर करने और शारीरिक शक्ति बढ़ाने वाले गुणों से भरपूर इस औषधीय पौधे को प्रत्यक्ष देवी कहा गया है क्योंकि इससे ज्यादा उपयोगी औषधि मनुष्य जाति के लिए दूसरी कोई नहीं है। तुलसी की कई प्रजातियां मिलती हैं। जिनमें श्वेत व कृष्ण प्रमुख हैं। इन्हें राम तुलसी और कृष्ण तुलसी भी कहा जाता है।
चरक संहिता और सुश्रुत-संहिता में भी तुलसी के गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन है। तुलसी का पौधा आमतौर पर 30 से 60 सेमी तक ऊँचा होता है और इसके फूल छोटे-छोटे सफेद और बैगनी रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से अक्टूबर तक होता है।
तुलसी का वानस्पतिक नाम Ocimum sanctum Linn. (ओसीमम् सेंक्टम्) और कुल का नाम Lamiaceae (लैमिएसी) है। अन्य भाषाओं में इसे निम्न नामों से पुकारा जाता है :
तुलसी में अनेक सक्रिय जैव रसायन हैं, जिनमें प्रमुख सक्रिय तत्व एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल है, जिसकी मात्रा संगठन, स्थान व समय के अनुसार बदलता रहता हैं। तुलसी में सामान्यतः 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, 20 प्रतिशत यूजीनॉल, मिथाइल, ईथर तथा 03 प्रतिशत कार्वाकोल होता है। है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन और सक्रिय जैव रसायन - ट्रैनिन, सैवोनिन (Savinin), ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं, जिनका पूरी तरह से अभी विश्लेषण नहीं हो पाया है।
तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं-सीटोस्टेरॉल, अनेक वसा अम्ल (मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल)। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है।
तुलसी के अनमोल 5 प्रकार होते हैं, जो और महत्वपूर्ण है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तुलसी एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-फ्लू, एंटी-बायोटिक, एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी–डिजीज में बेशकीमती फायदे का कार्य करती है। तुलसी के पांचों प्रकारों को मिलाकर अर्क निकाला जाए, तो यह पूरे विश्व की सबसे प्रभावकारी और बेहतरीन दवा है।
तुलसी के 5 प्रकार -
1) श्यामा तुलसी,
2) रामा तुलसी,
3) श्वेत / विष्णु तुलसी,
4) वन तुलसी,
5) नींबू तुलसी
तुलसी के फायदे एवं उपयोग
औषधीय उपयोग की दृष्टि से तुलसी की पत्तियां ज्यादा गुणकारी मानी जाती हैं। इनको आप सीधे पौधे से लेकर खा सकते हैं। तुलसी के पत्तों की तरह तुलसी के बीज के फायदे भी अनगिनत होते हैं। आप तुलसी के बीज के और पत्तियों का चूर्ण भी प्रयोग कर सकते हैं। इन पत्तियों में कफ वात दोष को कम करने, पाचन शक्ति एवं भूख बढ़ाने और रक्त को शुद्ध करने वाले गुण होते हैं।
इसके अलावा तुलसी के पत्ते के फायदे बुखार, दिल से जुड़ी बीमारियां, पेट दर्द, मलेरिया और बैक्टीरियल संक्रमण आदि में बहुत फायदेमंद हैं। तुलसी के औषधीय गुणों (Medicinal Properties ) में राम तुलसी की तुलना में श्याम तुलसी को प्रमुख माना गया है।
नोटः ये सामान्य लाभ हैं, किसी भी चिकित्सकीय उपचार का विकल्प नहीं हैं। किसी भी गंभीर रोग स्थिति में चिकित्सकीय परामर्श से ही इनका उपयोग करें।
आयुर्वेद के अनुसार तुलसी में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने में मदद करते हैं। यही कारण हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सक सर्दियों के मौसम या मौसम में बदलाव (ऋतु परिवर्तन) के दौरान तुलसी के सेवन की सलाह देते हैं। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर जल्दी बीमार नहीं पड़ता है और कई मौसमी बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।
अगर आप सर्दियों के मौसम में अक्सर सर्दी-जुकाम से परेशान रहते हैं तो तुलसी वाली चाय का सेवन करें। तुलसी की चाय सर्दी-जुकाम दूर करने का रामबाण इलाज है। आप चाहें तो बाज़ार से सीधे तुलसी वाली चाय खरीद कर उसका सेवन कर सकते हैं या फिर घर पर बनने वाली चाय में तुलसी की 3-4 पत्तियां डालकर उसका सेवन करें। इसके सेवन से सर्दी-खांसी के लक्षणों से जल्दी आराम मिलता है।
तुलसी इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करती है, यही कारण है कि इम्यूनिटी बढ़ाने और कोरोना वायरस से बचाव के लिए तुलसी का काढ़ा पीने की सलाह अधिकांश विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है। आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों में भी कोविड-19 से बचाव के लिए हर्बल काढ़ा पीने की बात कही गई है। इस हर्बल काढ़े में तुलसी एक मुख्य घटक के रूप में शामिल है। तुलसी काढ़े का सेवन अन्य कई वायरल इन्फेक्शन के इलाज में भी सहायक है।
यदि घर में तुलसी का पौधा नहीं है, जो कि अक्सर शहरी परिस्थितियों में अब होने लगा है, तब तुलसी ड्रॉप्स का उपयोग किया जा सकता है। यह सर्दी-जुकाम समेत कई रोगों के इलाज में सहायक है।
तुलसी की पत्तियों का सेवन शरीर को कई रोगों से बचाता है। आयुर्वेद के अनुसार रोजाना सुबह-सुबह तुलसी की 4-5 ताज़ी पत्तियां तोड़कर चबाकर खाना सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। नियमित रूप से पत्तियां खाने से कफ संबंधी समस्याओं जैसे कि अस्थमा, जुकाम आदि में आराम मिलता है साथ ही यह डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
पर यदि आप घर पर तुलसी का पौधा लगा सकते है। तो इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता । यदि आपके घर में तुलसी का पौधा है तो आप इसका काढ़ा बनाकर पी सकते हैं। इसके लिए दो कप पानी में तुलसी की कुछ पत्तियां डालकर 10-15 मिनट तक पानी उबालें या फिर इसे तब तक उबालें जब तक पानी एक चौथाई ना बच जाए। इसके बाद इसे छानकर हल्का गुनगुना होने पर पिएं। यह काढ़ा इम्यूनिटी बढ़ाने, सर्दी-जुकाम दूर करने और कोविड-19 जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव में मदद करता है।
तुलसी को आप अपने घर के आंगन में भी उगा सकते हैं। सामान्य तौर पर तुलसी के पौधे के लिए किसी ख़ास तरह के जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है। इसे कहीं भी उगाया जा सकता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि तुलसी के पौधे का रख-रखाव ठीक ढंग से ना करने पर या पौधे के आस-पास गंदगी होने पर यह पौधा सूख जाता है।
तुलसी (आसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
प्रजातियाँ:-
तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:-
1- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
2- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
3- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
4- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
5- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
6- ऑसीमम सैक्टम
7- ऑसीमम विरिडी।
इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक संरचना:-
तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है।
तुलसी की माला भी बनायी जाती है। तुलसी माला 108 गुरियों की होती है। एक गुरिया अतिरिक्त माला के जोड़ पर होती है इसे गुरु की गुरिया कहते हैं। तुलसी माला धारण करने से हृदय को शांति मिलती है।
मृत्यु के समय तुलसी के पत्तों का महत्त्व:-
मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।
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सृष्टि के आरंभ मे सांकेतिक भाषा ही प्रचलित थी, न ध्वनि या ना लिपकीय और ना भाषा। आदिकाल मे मानव सांकेतिक भाषा मे संवाद स्थापित करता और समझता था। कालान्तर मे मानवीय सभ्यता के विकसित ...
संस्कृत प्राचीनतम भाषा है, परंतु लोकप्रिय नहीं है। जब संस्कृत भाषा की लोकप्रियता पर विचार किया जाय, तो विदित होता है कि संस्कृत भाषा व्यवहार में कम प्रचलित होने के कारण जन समान्य में लोकप्रिय ...