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Sanskrit - नासा और इसरो ने माना कम्प्यूटर उपयोगी भाषा केवल संस्कृत भाषा ही है।


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 18-12-2020

विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है और समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 3,000 वर्ष पूर्व भारत में संस्कृत मे ही बोलचाल की जाती थी। 1100 ईसवीं तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जुड़ने की प्रमुख कड़ी थी, तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिनि ने दुनिया का पहला संस्कृत व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जिसका नाम 'अष्टाध्यायी' है। ईसापूर्व संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था। संस्कृत भाषा के व्याकरण से ही अन्य भाषाओं के व्याकरण के रूप मे विकसित हुए हैं। संस्कृत भाषा के व्याकरण को देखकर विश्वभर मे भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण संस्कृत भाषा ने किया है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है और कम्प्यूटर उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा संस्कृत ही है। विश्व के महत्वपूर्ण देशों के विश्वविद्यालयो मे संस्कृत और वेद के बारे में संस्कृत अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की होड़ लगी हुई हैं। विश्वभर के विकसित देशो मे सक्रिय रूप से संस्कृत भाषा की पवित्र पुस्तकों पर शोध कर उन्हें ही नई शोध बताकर विश्व मे अपने-अपने नामो से प्रस्तुत की जा रही है। भारत पर मुगलो और अंग्रेजों द्वारा संस्कृत भाषा को खत्म कर अरबी और रोमन लिपि व भाषा को थोपा गया। भारत की कई भाषाओं की लिपि देवनगरी थी, उसे बदलकर अरबी कर दिया गया। वर्तमान में हिन्दी की लिपि को रोमन में बदलने का छद्म कार्य ज़ोर शोर से चल रहा है।

संस्कृत भाषा के वैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर उपयोग के लिए सबसे सक्षम भाषा संस्कृत होने का सच जानकार आश्चर्य ही होगा और समझ भी विकसित होगी कि क्यो सनातनी ऋषि मुनियो द्वारा संस्कृत भाषा मे ही बोलचाल की जाती थी। मानवीय सभ्यताओ का विकास पाषाण से आधुनिक युग का सफर पृथ्वी पर फला फ़ूला है और पृथ्वी सौर परिवार का एक हिस्सा मात्र ही है। सनातनी ऋषि मुनियो द्वारा सौर परिवार पर वृहद शोध प्राचीनतम काल से की जाती रही है। जिसका परिणाम है कि आज भी सनातनी ज्ञान ही वैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर उपयोग के उपयुक्त पायी जा रही है।  

सनातनी ऋषि मुनियो द्वारा ब्रह्मांड के वृहद शोध मे पाया गया कि सौर परिवार चाहे स्थिर हो या गतिमान हो,गति सर्वत्र है और जब गति है, तो ध्वनि भी अवश्य होगी, ध्वनि है तो नाद भी निकलेगे और नाद से शब्द विकसित होगा ही। इन्ही ध्वनियों और शब्दों के संग्रहों से लिपि (लिखित) का विकास हुआ है। लिपि (लिखित) का विकास के साथ साथ ही व्याकरण प्रचलन मे आती चली गयी। सनातनी ऋषि मुनियो द्वारा ब्रह्मांड के वृहद शोध मे स्पष्ट किया गया है कि सौर परिवार मे प्रमुख सूर्य के चारों ओर से अलग-अलग 9  रश्मियां विधमान हैं, जिससे कुल 36 रश्मियां प्रगट होती है। इन्ही 36 रश्मियों की ध्वनियों पर आधारित संस्कृत के 36  स्वर निर्मित होते है। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। ठीक इसी प्रकार से सूर्य की 9 रश्मियो और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस के टकराव से 72 प्रकार की ध्वनियां निर्मित होती है, जिन्हे संस्कृत के 72 व्यंजन के रूप मे जाना गया। इस प्रकार संस्कृत की वर्ण माला पर ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108  ध्वनियो का प्रभाव हैं। ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी मान लिया है।

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