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Sanskrit - संस्कृत भाषा चिकित्सक है - हकलाने या अस्पष्ट बोलने वालों के लिए


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 16-12-2020

संस्कृत प्राचीनतम भाषा है, परंतु लोकप्रिय नहीं है। जब संस्कृत भाषा की लोकप्रियता पर विचार किया जाय, तो विदित होता है कि संस्कृत भाषा व्यवहार में कम प्रचलित होने के कारण जन समान्य में लोकप्रिय नहीं है। यद्यपि भारत की सभी प्रांतीय भाषाओं में संस्कृत के शब्दों का प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है।
एक हजार वर्ष पहले भारत ही नहीं बल्कि विदेशियों के अध्ययन का आधार भी संस्कृत भाषा ही थी। मध्यप्रदेश के ही तत्कालीन धार राज्य (धारा नगरी) के राजा भोज की नगरी में एक सामान्य सा लकड़हारा भी संस्कृत बोलता था। राजा को व्याकरण की शुद्धता का परिचय आम आदमी देता था, किन्तु विभिन्न कारणों से धारणा होती गई कि यह भाषा केवल धार्मिक प्रसंगों में ही उपयोग होती है। विदेशी आक्रान्ताओं एवं तुर्कों के बार-बार आक्रमण, शासन-सत्ता में बार-बार परिवर्तन, रोजगार से दूरी, विदेशी आक्रान्ताओं एवं तुर्कों की दमनकारी नीतियों से क्षेत्रीय भाषाओं का विकास होता गया और संस्कृत भाषा लोक व्यवहार से अलग होती गयी। आधुनिक काल में संस्कृत भाषा एक वर्ग विशेष तक ही सीमित होकर रह गई है, इस कारण इसका उपयोग भी सीमित होता गया।
संस्कृत भाषा मृत भाषा नहीं है, यह पूर्णरूपेण वैज्ञानिक भाषा है। कई संस्कृतियों का मूल और अन्य भाषाओं की जननी व आधार संस्कृत है। लोगों की धारणा है कि संस्कृत पढ़ने से सिर्फ शिक्षक बनते हैं अथवा पंडित या आचार्य लेकिन यह सत्य नहीं है। आधुनिक युग में संस्कृत भाषा व्यापक रोजगार के क्षेत्र के रूप में परिवर्तित हो रही है। संस्कृत भाषा से रोजगार के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। संस्कृत विषय से विद्यार्थी भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य सेवा परीक्षाओं में चयनित हो रहे हैं। शिक्षण के अतिरिक्त आयुर्वेद, योग, चिकित्सा, पर्यावरण, प्रबंधन, गणित, ज्यामिति आदि विषयों में भी संस्कृत काफी उपयोगी है। संस्कृत भाषा आय की अपार संभावनाओ से भरी हुई है। बस एक प्रयास की आवश्यकता है।
संस्कृत भाषा में संभाषण से हकलाना भी खत्म हो जाता है। जिन्हें धारा प्रवाह बोलने में समस्या आती है, अटकते हैं या फिर हकलाते हैं, या जो बच्चे स्पष्ट बोलने में असमर्थ हैं, उन्हें संस्कृत श्लोक एवं मंत्रों का सतत अभ्यास कराने पर वाणी में स्पष्टता आती है।
संस्कृत मंत्र, श्लोक आदि के उच्चारण से मन, बुद्धि पवित्र होती है और मनुष्य आरोग्य को प्राप्त होता है अर्थात वाणी की शुद्धता, उच्चारण की शुद्धता से मनुष्य शुद्ध बोलता है, यही शुद्धता वाणी, मन और शरीर को शुद्ध करती है और आरोग्यता भी देती है।

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