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Tilak (Bindi) - तिलक अथवा बिंदी अच्छी नींद दिलाता है और मन को शांत, शरीर को निरोगी भी करता है।


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 15-12-2020

मर्म चिकित्सा एवं चिकित्सीय वैज्ञानिक शोधो के अनुसार सिर की तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं के ज्यादा अभिसरण से मानसिक उत्तेजना बढ़ती है, जिससे मस्तिष्क की मांसपेशीओ पर तनाव पड़ने से ही सिरदर्द की बीमारी प्रकाशित होती है, इसी कारण से मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों की मालिश करने से तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं का रक्त प्रवाह नियंत्रित होता है, जिसके प्रभाव से मानसिक उत्तेजना कम या समाप्त होते ही सिरदर्द भी कम या समाप्त हो जाता है। इस प्रकार बिंदी या तिलक का उपयोग लगातार करते रहने से सिरदर्द की समस्या नहीं आती है, क्योकि बिंदी या तिलक रक्त प्रवाह को नियंत्रित रखती है।

चिकित्सीय वैज्ञानिक शोधो मे ट्राईगेमिनल तंत्रिका नाक से संबन्धित होती है, मस्तिष्क की मांसपेशीओ के विशिष्ट शाखाओं की मालिश करने पर रक्त का संचालन नाक के आस-पास क्षेत्र पर अच्छी प्रकार से होने लगता है जिससे नाक के आस-पास सूजन कम हो बंद नाक भी खुल जाता है। इस प्रकार आज्ञा चक्र पर तिलक अथवा बिंदी का बार-बार उपयोग करने से नाक और उसके आस-पास के क्षेत्र का रक्त संचार संतुलित हो जाने से नाक के आस-पास रक्त प्रवाह बढ़ता है और साइनसाइटिस व सूजन से छुटकारा मुक्ति भी मिलती है।

आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार मानसिक तनाव और अति क्रियाशील मन ही अनिद्रा का प्रमुख कारण है। आयुर्वेद में ट्राईगेमिनल तन्त्रिका को ’शिरोधरा’ कहते हैं। तिलक अथवा बिंदी से मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों को आराम मिलने पर अनिद्रा से राहत मिलती है और तनाव से लड़ने की शक्ति भी प्राप्त होती है। इसलिए तिलक अथवा बिंदी न केवल मन को शांत करता है बल्कि चेहरे, गर्दन, पीठ और ऊपरी शरीर की मांसपेशियों को भी आराम देता है, दैनिक आधार पर कुछ समय के लिए इन बिंदुओं की मालिश करने से अच्छी नींद आती है। अगर अच्छी नींद नही आती है तो, बिंदी उपयोग काफी लाभप्रद है। बिंदी एक मसाजर की भूमिका भी निभाता है, जिससे अच्छी नींद आ जाती है।

आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार अवश्यकता से ज्यादा मानसिक तनाव और अति क्रियाशील अर्ध आयु पर चेहरे का पक्षाघात की बीमारी का प्रमुख कारण है। बार-बार सभी मांसपेशियों को उत्तेजित करते रहने से चेहरे पर रक्त प्रवाह संचालित होकर त्वचा को पोषित करती है, जो चेहरे की पक्षाघात बीमारी की संभावना शून्य कर देता है। इस प्रकार बिंदी या तिलक का उपयोग करते रहने से चेहरे की पक्षाघात बीमारी की संभावना न के बराबर हो जाती है।

वैज्ञानिक शोध बताते है कि स्प्रट्र्रोक्लियर तंत्रिका आंखों और कान की नसों से संबन्धित होती है, यह तंत्रिका बहुत लचीली होती है, जिसके कारण आंखे चारों तरफ घूम सकती हैं और आसानी से अलग-अलग दिशाओं में देखने में मदद देती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, आंखों के बीच की फाइनलाइन्स भी बढ़ता जाता हैं, और तंत्रिका मे तनाव बढ़ता है और लचीलपन समाप्त होता जाता है, जिससे एक आयु के बाद से ही दृष्टि दोष आना शुरू हो जाता है, जिसे बिंदी या तिलक का उपयोग लगातार करते रहने से नियंत्रित और दृष्टि दोष की समस्या से मुक्त रहा जा सकता है।

स्प्रट्र्रोक्लियर तंत्रिका जो कान की नसों से संबन्धित होती है, बार-बार सभी मांसपेशियों को उत्तेजित करते रहने से चेहरे पर रक्त प्रवाह संचालित होकर त्वचा को पोषित करती है और वह कान के भीतर की मांसपेशीओ को सुदृढ़ करके कान को स्वस्थ रखने में मदद करती है। सुनने की क्षमता अथवा श्रवण शक्ति बेहतर होती जाती है।

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