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Tilak (Bindi) - साधना और योग विज्ञान मे बिंदी या तिलक के वैज्ञानिक तथ्य


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 15-12-2020

सनातनी संस्कृति में बिंदी या तिलक के बिना श्रृंगार पूर्ण नहीं होता है। परम्पराओ में नर नारी दोनो ही बिन्दी या तिलक का उपयोग करते है, नारियो के लिए बिन्दी सुहागन का प्रतीक होता है, परंतु पुरुष वर्ग पूजन अर्चन या धार्मिक उत्सवो में तिलक का उपयोग अवश्य करते है। शास्त्रों और वेदो मे वर्णन के अनुसार बिंदी का अर्थ बिन्दु का केन्द्रीकरण होता है और तिलक का अर्थ त्री + अक यानि तीसरे नेत्र का अलंकण करना है। सनातनी मान्यतानुसार आज्ञा चक्र पर बिन्दी शरीर की उर्जा को नियंत्रित और मन को शान्त रहता है। आज्ञाचक्र (माथे के मध्य ललाट) पर बिंदी / तिलक लगाने का प्राविधान अनादि अथवा प्राचीनतम काल से प्रचलित है। सनातनियों मे देव देवी की कल्पना भी  बिना तिलक या बिंदी के संभव नहीं है।
बिंदी/ तिलक परंपरागत रूप से माथे पर भौहों के बीच में लगाया जाता है। भौहों के बीच स्थित माथे का बिंदु महत्वपूर्ण तंत्रिका है, जिसे योग शास्त्र मे चक्र कहते हैं। चक्र सात प्रकार के होते हैं, जिनमें माथे का स्थान छठवाँ है। इसे अग्नि चक्र  (आज्ञा चक्र) कहा जाता है तथा ये बुद्धिमत्ता एवं नियंत्रण का प्रतीक होता है।
शास्त्र अनुसार स्त्रीयों के महत्वपूर्ण सोलह श्रृंगार बताए गए हैं जिनमें से बिंदी लगाना भी एक है। बिंदी प्रयोग एक अनमोल श्रृंगार है। बिंदी प्रयोग सुंदरता तो बढ़ाती ही है, स्वास्थ्य मे भी अद्भुत लाभ मिलता हैं। शायद इन्हीं फायदों को देखते हुए प्राचीन ऋषि.मुनियो द्वारा बिंदी लगाने की अनिवार्य परंपरा प्रारंभ की गई थी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधान में पाया गया है कि किसी भी नारी का मन बदलने में पलभर का ही समय लगता है और बिंदी /तिलक से उनका मन शांत और एकाग्र होता है। महिलाओं का मन व चेतना अतिचंचल होता है। इसी वजह से किसी भी स्त्री का मन बदलने में पलभर का ही समय लगता है। वे एक समय एक साथ कई विषयों पर चिंतन करती रहती हैं। अतः उनके मन को नियंत्रित और स्थिर रखने के लिए यह बिंदी बहुत कारगर उपाय है।
विवाह से पूर्व लड़कियां बिंदी केवल सौंदर्य संवृद्धि करने के उद्देश्य से प्रयोग करती हैं लेकिन विवाह के पश्चात लाल रंग की बिंदी लगाना सुहाग का प्रतीक व रीति.रिवाज माना जाता है। भारत में बिंदी ज्यादातर महिलाएं लगाती हैं। आमतौर पर सुबह नहाने के बाद स्त्रीयां कुमकुम से बिंदी लगाती हैं और फिर उसी कुमकुम को अपने पति के माथे पर भी लगाती हैं। कुमकुम का यह टीका स्त्रियों के माथे पर यह बिंदी और पुरुष के माथे पर यह तिलक कहलाता है।
कुछ घरो में पति के घर से निकलने से पहले महिलाएं कुमकुम से पुरुषों के माथे पर तिलक लगाती हैं, ताकि उन पर कोई बुरा साया या नज़र न पड़े, वह हर बुरी नज़र से बचे रहे और साथ ही ये तिलक अथवा बिंदी उन पुरुषों का ध्यान एकाग्र व शांत भी रखे, जिससे वे अपने काम पर ध्यान केन्द्रित कर अपने काम मे सिद्धि ले सके। अगर काम सही दिशा में चलता रहे, तो किस्मत भी बदलते देर नहीं लगती। तिलक लगाने से शांति व सुकून का अनुभव तो होता ही हैं, यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से भी बचाती है, साथ ही तिलक लगाने से मानसिक उत्तेजना पर भी काफी हद तक नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। यह स्वस्थ के साथ काम या व्यवसाय में वृद्धि दे सकता हैं। स्त्रियों के माथे की बिंदी उनसे जुड़े पुरुषो को कई तरह से लाभ पहुंचाती है।

बिंदी या तिलक का वैज्ञानिक कारण:-
ललाट मस्तिष्क का वह भाग है, जहाँ मस्तिष्क की प्रमुख नसें एक दूसरे को परस्पर काटती हैं। वहां पर शरीर की लगभग सभी सूक्ष्म और महीन नसें एक साथ मिलती है। इस बिंदु से मस्तिष्क हमेशा जागृत अवस्था मे रहता हैं, इसलिए इस बिन्दु को पुराने समय से ही अग्नि चक्र या तीसरी आंख भी कहते हैं। माथे पर स्थित आज्ञा चक्र के माध्यम से ही शरीर में आवृतियों और ऊर्जा का प्रवेश होता है, जिसके कारण नर.नारी के शरीर में रज.सत.तम गुणों की वृद्धि होती है। आज्ञा चक्र के माध्यम से ही नकारात्मक को सकारात्मक ऊर्जा मे परिवर्तित या संकेंद्रण होता है। मस्तिष्क मे जब.जब हलचल होती हैै, हाथ स्वतः ही ललाट पर आ जाता है। जिससे ललाट की मांसपेसियों और संवेदनशील बिन्दुओ पर दबाव आता है, जो तत्क्षण स्वयं को सामान्य भी करता है और चेतना जाग्रत या विकसित हो जाती है, जिसके प्रभाव से स्वयं मे शांति अनुभूत होती है। इसी आधार पर माथे पर एक ही स्थान पर लगातार बिंदी या तिलक लगाते रहने से आध्यात्मिकता के साथ.साथ स्वास्थ्यवर्धक अद्भुत परिणामए चेतनाए रक्त संचार पर नियंत्रण मिलता है।

योग विज्ञान मे बिंदी या तिलक प्रभाव:-
योग विज्ञान की दृष्टि से ललाट मस्तिष्क के मध्य भाग को भगवान शिव का त्रिनेत्र भी कहते हैं। बिंदी का संबंध मन से जुड़ा है। वेदो मे बिंदी का अर्थ बिन्दु का केन्द्रीकरण कहा गया है और तिलक का अर्थ त्री़+अक यानि तीसरे नेत्र का अलंकरण है। जब जब मनुष्य ध्यान लगाता हैं, तब तब ध्यान यहीं केंद्रित होता है। चूंकि यह स्थान मन को नियंत्रित करता है अतः यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। मन को एकाग्र करने के लिए इसी चक्र पर दबाव दिया जाता है।

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