संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 15-12-2020
1. तिलक अथवा बिंदी से मस्तिष्क जाग्रत और मन एकाग्र होता है - आज्ञा चक्र पर मस्तिष्क हमेशा जागृत अवस्था मे रहता हैं, आज्ञा चक्र के सक्रिय रहने पर मनुष्य जो शारीरिक आंखों से नहीं देख सकता है, वह चीजें भी आंतरिक द्रष्टि से देख और महसूस कर सकता है। ललाट के मध्य (आज्ञा चक्र पर) जहाँ बिंदी लगती हैं, वहाँ से चेतना का विकास होता है और तिलक अथवा बिंदी लगाने से भगवान शिव की तीसरी आंख जागृत करने जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। तिलक अथवा बिंदी के प्रयोग से यह बिंदु जाग्रत हो जाता है, और चेतना विकसित कर मानव को शांति देने के साथ ही तनाव मुक्ति का मार्ग भी देता है। इस बिंदु को जाग्रत और एकाग्र कर मनुष्य आध्यात्मिक दुनिया में पहुँच कर शारीरिक आँखों से ना देखे जाने वाली घटना व वस्तुओ को भी जानना और समझना सम्भव हो जाता है।
2. तिलक अथवा बिंदी से चित्त शान्त और शरीर निरोग होता है - सनातनी मान्यताओ और वैज्ञानिक शोधो के अनुसार मन अतिचंचल होता है और मन ही चिंताओ, विकारों और तनाव को बढ़ाकर चेतना को सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है। अवचेतन मन मस्तिष्क के साथ जीवित तो रहा जा सकता है परन्तु सुख शांति पूर्ण जीवन व्यतीत किया जाना सम्भव नहीं हो सकता है।
शायद इन्हीं तथ्यो को देखते हुए ही प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा तिलक अथवा बिंदी लगाने की अनिवार्य परंपरा प्रारंभ की गई थी। आज्ञा चक्र पर मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों के क्षेत्र और नसों को आराम देकर पूरे मन मस्तिष्क को शांत कर तनाव मुक्त करते हुए मन को नियंत्रित और स्थिर रखने मे तिलक अथवा बिंदी बहुत प्रभावोत्पादक साबित होती है। इससे मन शांत और एकाग्र बना रहता है।
यदि बिंदी या तिलक का उपयोग न भी किया जाए तो भी दिनभर में एक बार इस क्षेत्र में मन और शरीर को सुकून देने के लिए मालिश जरूर कर लें।
सनातनी संस्कृति में बिंदी या तिलक के बिना श्रृंगार पूर्ण नहीं होता है। परम्पराओ में नर नारी दोनो ही बिन्दी या तिलक का उपयोग करते है, नारियो के लिए बिन्दी सुहागन का प्रतीक होता है, ...
भारतीय व सनातनी परम्परा में बिंदी या तिलक के बिना श्रृंगार पूर्ण नहीं होता है। आज्ञा चक्र पर बिंदी/तिलक लगाने का प्राविधान अनादि अथवा प्राचीनतम काल से प्रचलित है। नर-नारी दोनों ही बिंदी और तिलक ...
करवाचौथ व्रत पर्व का नाम आते ही सभी सनातनी सौभाग्यवती स्त्रियाँ हर्षित और रोमांचित हो उठती हैं, क्योकि एक विवाहित स्त्री के लिए यह व्रत पर्व उनके सौभाग्य का प्रतीक है और यह पर्व सभी ...