संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 06-01-2022
सनातन संस्कृति में वर्ष में आने वाले हर माह, हर तिथि का अपना ही एक महत्व प्रदर्शित किया गया है। यह तथ्य तो सभी सनातनियो को ज्ञात हैं कि प्रत्येक माह में दो चतुर्थी मनाई जाती है, जिसमे एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में आती है। प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को क्रमशः संकष्टी और विनायक चतुर्थी कहा जाता है। इस वर्ष 6 जनवरी 2022 को पौष मास की शुक्ल पक्ष को विनायक वरद चतुर्थी है। मान्यतानुसार चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता देवता भगवान गणेश को माना गया है और वरद चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी का पूजन का ही विधान है। सभी देवताओं में गणेश जी का स्थान सर्वोपरि व अग्रिणी माना जाता है। गणेश जी को सभी संकटों का हरण करने वाला और विघ्नों का नाश करने वाला कहा भी जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के मतानुसार इस तिथि को भगवान गणेश अवतरित हुए थे। इसलिए भगवान गणेश को चतुर्थी तिथि अतिप्रिय है। भगवान गणेश सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले, कष्टों का निवारण और निराकरण करने वाले हैं। इनका पूजन व व्रत सभी प्रकार के विघ्नों, दुरून दुःख और संकटों से परिवार को मुक्त करता है, जीवन रस की सरसता और सरलता में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। ऐसी भी मान्यता है कि जो लोग नियमित रूप से भगवान गणेश की विधि विधान सहित पूजा करते हैं, उनके घर में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
वरद विनायक चतुर्थी की व्रत कथा:-
पौराणिक कथानुसार नर्मदा नदी के तट पर भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान थे। तत्समय हास् परिहास व क्रीड़ा भाव के साथ अतिरिक्त समय का सदुपयोग करने हेतु पार्वती माता ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने को कहा और साथ ही माता पार्वती ने संसय प्रकट किया कि यह कौन सुनिश्चित करेगा कि हम में से कौन जीता और कौन हारा? देवी पार्वत का प्रश्न सुनते ही भगवान शिव ने कुछ बिखरे हुए तिनके एकत्र किए और उसका एक प्रतिमा निर्मित कर उस प्रतिमा को आदेशित किया कि हम चौपड़ खेल रहे हैं, तुम यहां बैठ कर हम लोगो में हो रही प्रतिस्पर्धा में जीत और हार का चुनाव करें। तत्पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती ने चौपड़ क्रीड़ा का आरम्भ किया। तीन बार की चौपड़ क्रीड़ा का आयोजन हुआ और तीनो ही प्रतिस्पर्धा में माता पार्वती ने विजय श्री प्राप्त की। चौपड़ क्रीड़ा समापन के उपरान्त प्रतिबिम्बित बालक से निर्णय बतलाने को कहा गया, जिसके उत्तर में उस प्रतिबिम्बित बालक ने माता पार्वती को पराजित और महादेवजी के विजयी होने की घोषित कर दी। प्रतिबिम्बित बालक का कथन सुनते ही माता पार्वती अत्यधिक क्रोधित हो गईं और तत्क्षण ही उस बालक को अपंग व लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया, जिसके प्रभाव से उस बालक में स्थायी प्राण भी आ गए और जीवन चेतना भी मिल गयी। जीवन प्राप्त होते वह बालक माता पार्वती से अपने अविवेक पूर्ण कथन के लिए क्षमा याचना करने लगा, जिस पर माता पार्वती को भी दया आ गई और उस बालक से कहा कि जब कुछ नाग कन्याएं यहां आएँगी तब उन्हें गणेश भगवान के पूजन का सम्पूर्ण विधि विधान बताकर उनसे गणेश जी का व्रत पूर्ण कराने से आपको मुक्ति की प्राप्ति होगी। यह कहकर माता पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर लौट आईं।
एक वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरांत उस स्थान पर सर्प कन्या आई और उस बालक ने सर्प कन्या को श्री गणेश के व्रत पूजन का विधि विधान बतला कर उस कन्या से लगातार 21 दिनों तक गणेश जी का पूजन पूर्ण करवाया और स्वयं भी निष्ठा से 21 दिनों तक अखंड व्रत करता रहा। बालक की भक्ति से प्रसन्न भगवान गणेश ने वरदान रूप में इसके सभी कष्टों से मुक्ति देते हुए,आजीवन सुखी रहने का आशीष भी प्रदान किया। तभी से ही यह महिमामान व्रत सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला माना जाता है।
वरद चतुर्थी पूजा विधि:-
चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करें।
इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद पंचोपचार विधि से भगवान गणेश की पूजा करें।
श्री गणेश को फल, फूल, मोदक आदि चढ़ाएं।
अगर आप व्रत रखना चाहते हैं तो फलाहारी रहकर व्रत रख सकते हैं।
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