संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 18-01-2021
मकर संक्रान्ति का पर्व भारत के सभी प्रांतों तथा कुछ दक्षिण एशियाई देशों में भी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनता है। हालांकि इस पर्व के उद्देश्य कमोबेश सभी जगह एक से हैं, फिर भी इसे मनाने के तरीके और नाम सभी स्थानों पर भिन्न हैं। यह त्यौहार अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे- असम में बिहू, उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, बिहार-झारखंड में सकरांत, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति, पंजाब और हरयाणा में माघी व लोहड़ी, गुजरात व महाराष्ट्र में उत्तरायण, दक्षिण भारत में पोंगल, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में तिरमूरी’ या उत्तरायण, और नेपाल में माघे संक्रान्ति, के नामो से इसे मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में यह त्यौहार खिचड़ी के नाम से विख्यात है और इस दिन पर खिचड़ी का दान करने और खाने की परंपरा है। इस पर्व पर पवित्र पावनी गंगा में स्नान ध्यान कर दान पुण्य किए जाने का विशेष महत्व है। इसलिए उत्तर प्रदेश में इस पर्व को दान के पर्व के रूप मे भी मानते हैं। प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती पर माघ मेले का आयोजन होता है। मकर संक्रान्ति के दिन संगम पर इस पर्व का महत्व भली भाँति दृष्टिगोचर होता है।
बिहार - झारखंड में मकर संक्रान्ति पर्व सकरांत के नाम से प्रचलित है। यहां भी श्रद्धालु प्रातःकाल ही गंगा व अन्य स्थानीय पावन नदियों में डुबकीयां लगाकर त्यौहार की शुरूआत करते हैं और स्नान के बाद सूर्य की आराधना कर चूड़ा व तिल की मिठाई और खिचड़ी का सेवन करते हैं। यहां पर भी कुछ जगहों पर लोग इसे खिचड़ी ही कहते है।
पश्चिम बंगाल में इस पर्व को पौष संक्रान्ति या पौष पर्व के नाम से पुकारते है। पश्चिम बंगाल के 24 दक्षिण परगना जिले में सागर द्वीप है, यही गंगा नदी सागर में मिलती है। जिससे यह स्थान गंगा सागर के नाम से प्रसिद्ध है। हर वर्ष मकर संक्रान्ति के दिन दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु गंगा सागर में स्नान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा सागर में स्नान से मोक्ष मिलता है। यहां भी स्नानादि के बाद तिल दान की प्रथा है। पौष पर्व पर विशेष व्यंजन के तौर पर पुली, पिट्ठा, खीर आदि पकाकर खाया और खिलाया जाता हैं।
पंजाब और हरयाणा में मकर संक्रान्ति को माघी के नाम से मनाते है। मकर संक्रान्ति से ठीक एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। इस दिन घर के बाहर लकड़ियों को जमाकर होलिका बना उसे प्रज्वलित करके उसके चारों ओर परिवार कुटुंबजनो के साथ लोग एकत्रित हो, तिल, मूंगफली, तिलकुट और मक्की के भुने हुए दाने आदि की आग में आहुति देकर सभी जन नृत्य करते हैं और लोहड़ी गीत गाते हैं। Upइसके साथ ही नवजात शिशु और नववधू के लिए यह पर्व विशेष होता है। सभी आपस में गज़क, मूँगफली, तिल की मिठाई खाते हैं। इस अवसर पर पंजाब के मुक्तसर में हर वर्ष माघी मेले का आयोजन होता है।
गुजरात में इस पर्व को उत्तरायण कहते है, क्योंकि इस दिन ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गतिमान होते है। गुजरात में इस दिन को बेहद शुभ और समृद्धि सूचक माना जाता है। बच्चो के साथ बुजुर्ग लोग और लगभग सभी गुजराती इस दिन पतंगबाजी का आनन्द लेते हैं। यहाँ पतंग उत्सव के लिए ही मकर संक्रान्ति को जाना जाता है। गुजरात के आकाश में इस दिन अद्भुत नज़ारा होता है। आसमान इस दिन अलग-अलग आकार एवं डिज़ाइन वाली रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। यहाँ की पतंगबाज़ी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। वैसे भी गुजरात पतंगो के लिए प्रसिद्ध है। इस मौके पर गुजरात में अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। दुनिया भर से लोग गुजरात आकर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं।
महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं आपस में तिल और गुड़ बाँटते हुए ‘‘ तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला’’ बोलती हैं। अर्थात् तिल गुड़ लो और गुड़ की तरह मीठा बोलो। संबंधों में मधुरता बनाए रखने के लिए ऐसा बोलने की परंपरा है। महाराष्ट्र में इस दिन खास तरह का हलवा खाने और बाँटने की परंपरा है। सभी विवाहित महिलाएं इस दिन कपास, तेल, नमक, गुड़, तिल, रोली आदि वस्तुएं दान करती हैं।
दक्षिण भारत में मकर संक्रांति का नाम पोंगल हो जाता है। अच्छी फसल के लिए सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने लिए यह त्यौहार चार दिन तक मनाया जाता है। सूर्य देव को अन्न और सृमद्धि प्रदान करने वाला देवता माना गया है। यहां चारो दिन, हर रोज पोंगल के अलग-अलग नाम होते हैं।
पहला दिन होता है- भोगी पोंगल - जो देवराज इंद्र को समर्पित है।
दूसरा दिन है - सूर्य पोंगल- इस पोंगल के दिन महिलाएं खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में एक विशेष प्रकार की खीर तैयार करती हैं। उसके बाद उस खीर को सूर्य देव को चढ़ाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया और बांटा जाता है।
तीसरा दिन होता है- मट्टू पोंगल- मान्यता के अनुसार भगवान शिव के बैल का नाम मट्टू है। इसे उन्होंने मानव-कल्याण के लिए धरती पर भेजा है। इस दिन बैलों को खूब सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
चैथा दिन होता है कन्या पोंगल का। इस दिन घर को खूब सजाया जाता है। घर के मुख्य द्वार पर महिलाएं मनमोहक रंगोली बनाती हैं। तमिलनाडु में इस दिन जालु कट्टू खेल का आयोजन किया जाता है। इसमें बैल और इंसान की लड़ाई होती है।
नेपाल, बांग्ला देश, श्रीलंका तथा पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है । नेपाल में इसे माघे संक्रान्ति या माघी नाम से जानते हैं। नेपाल के थारू समुदाय के लोगों का यह प्रमुख त्यौहार है। नेपाल में भी इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है तथा इसे फसलों और किसानों से जोड़कर देखा जाता है व अच्छी फसल के लिए सूर्य का आभार प्रकट किया जाता है।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इसे ‘तिरमूरी’ या उत्तरायण के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग अपनी विवाहित पुत्री के घर शगुन के रूप में तिल का बना लड्डू भेजते हैं। बांग्लादेश में बंगाल की तरह पौष संक्रांति और श्रीलंका में तमिलनाडु की तरह इसे पोंगल नाम से मनाया जाता है । भारत के अन्य राज्यों में भी थोड़े-थोड़े अंतर के साथ, पर सभी जगह नया अनाज और तिल-गुड़ का इस पर्व में बहुत महत्व है।
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