संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 28-06-2024
शास्त्रीय ग्रंथों में कुल 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं :- 1.नित्य श्राद्ध, २.नैमित्तिक श्राद्ध, ३.काम्य श्राद्ध, 4.वृद्धि श्राद्ध, 5.सपिण्डन श्राद्ध, 6.पार्वण श्राद्ध, 7.गोष्ठण श्राद्ध, ८.शुद्धयर्थ श्राद्ध, 9.कर्मांग श्राद्ध, 10.दैविक श्राद्ध, 11.औपचारिक श्राद्ध, 12.सांवत्सरिक श्राद्ध हैं, इन सभी श्राद्धों में सांवत्सरिक श्राद्ध को श्रेष्ठ कहा गया है।
पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :- एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, नागबलि कर्म, नारायणबलि कर्म, त्रिपिण्डी श्राद्ध, महालय श्राद्ध कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में परिपाटियाँ प्रचलित चली आ रही हैं।
प्राचीन ग्रन्थ गरुण पुराण के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी, ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री को श्राद्ध करने का अधिकार है। इन सबके आभाव में सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि को भी श्राद्ध करने का अधिकार है एवं इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित भी मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों श्राद्ध व तर्पण और तिलांजली देकर मोक्ष कामना कर सकती है।
मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्त पुराण बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में श्राद्ध करने के लिए या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। जो पितर संतानहीन हो, उनके पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई, भतीजे, भांजे या अन्य चाचा-ताऊ के परिवार के पुरुष सदस्य पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते हैं, तो पीड़ित आत्मा को मोक्ष अवश्य मिलता है।
उसी प्रकार दौहित्र (पुत्री का पुत्र), कुतप (मध्यान्ह का समय), कालातिल, कुश, गया, गंगा, प्रयाग, कुरुक्षेत्र तथा अन्य प्रमुख तीर्थ श्राद्ध कर्म में अत्यन्त पवित्र माने गये है। संध्या और रात्रि का समय श्राद्ध हेतु वर्जित काल होता है, किंतु ग्रहण काल में रात्रि श्राद्ध के लिए उत्तम कही जाती है। साथ ही विकलांग अथवा अधिक अंगों वाला ब्राह्मण श्राद्ध के लिए एवं सम्पूर्ण पितृ पक्ष में दातौन करना, पान खाना, तेल लगाना, क्षौरकर्म (मुण्ड़न एवं हजामत) मैथुन-क्रिया (स्त्री-प्रसंग), पराये का अन्न खाना, यात्रा करना, क्रोध करना एवं श्राद्धकर्म में शीघ्रता वर्जित है। इसमें मैथुन-क्रिया (स्त्री-प्रसंग) महापाप माना जाता है क्योकि पितृ पक्ष में अथवा श्राद्ध तिथि को मैथुन (रति-क्रीड़ा) करने से पितरों को वीर्यपान करना पड़ता है।
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