संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 21-02-2022
सनातन संस्कृति का पंचांग पर्वों, उत्सवों से सदैव ही परिपूर्ण रहा है। शायद ही कोई ऐसा माह देखने को मिले जब सनातनी किसी पर्व या उत्सव में सहभागिता न करते हों। अर्थात सनातन संस्कृति प्रति दिन कोई न कोई उत्सव मनाती है। इस उत्सवों और पर्वों को मानने का लक्ष्य भी विभिन्न उद्देश्यों में निहित है। जो भी पर्व या उत्सव मनाये जाते हैं, वो किसी ने किसी रूप में विभिन्न प्रकार की ऐतिहासिक घटनाओं अथवा समाजिक जीवन की निश्चित व्यवस्थाओं और अवस्थाओं से संबंधित हैं। यदि किंचित मात्र भी ध्यान दिया जाये, तो स्पष्ट होता है कि सनातनी ऋषि मुनियों ने इस दर्शन को ध्यान में रखकर ही त्योहारों और उत्सवों की यह पूरी श्रंखला व्यवस्थित की थी। चाहे प्रति दिन में आने वाली दैनिक तिथियां हो या पंचांग के अनुसार आने वाले माह या फिर हमारे कृषि के दृष्टिïकोण से आने वाले महत्वपूर्ण मास हों.... इन सभी अवसरों पर सानतान संस्कृति में पर्वों और उत्सवों को उल्लासपूर्वक मनाने की व्यवस्था है। वर्ष भर मनाए जाने वाले उत्सवों की श्रंखला में महाशिवरात्रि का एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है।
मासिक शिवरात्रि का वैज्ञानिक तथ्य
सर्वविदित है कि अमावस्या से एक दिन पूर्व, प्रत्येक चंद्र माह के चौदहवें दिन को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों के अलावा फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इन सभी में से महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व सर्वाधिक है। इस रात्रि में पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध कुछ ऐसी स्थिति में होता है कि मनुष्य में ऊर्जा सहज ही ऊध्र्वाधर होती है। प्रकृति की यह विशेष स्थिति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। महाशिवरात्रि का मुख्य लक्ष्य यह है कि प्राकृतिक ऊर्जाओं के प्रवाह को सही दिशा मिल सके।
महाशिवरात्रि का महत्व
आध्यात्मिक पथ का अनुसरण करने वालों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। पारिवारिक परिस्थितियों में जी रहे लोगों तथा महत्वाकांक्षियों के लिए भी यह उत्सव बहुत महत्व रखता है। जो लोग परिवार के बीच गृहस्थ हैं, वे महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं से घिरे लोगों के लिए यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त ली थी।
स्थिरता का उत्सव महाशिवरात्रि
साधुओं के लिए इसका महत्व इसलिए है क्योंकि वे इस दिन कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। अर्थात आदि गुरू भगवान एक पर्वत की तरह बिल्कुल स्थिर हो गए थे। यौगिक परंपरा में शिव को एक देव के रूप में नहीं पूजा जाता,, वे आदि गुरु माने जाते हैं जिन्होंने ज्ञान का शुभारंभ किया। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के बाद, एक दिन वे पूरी तरह से स्थिर हो गए। यह वही दिन जिसे महाशिवरात्रि के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनके भीतर की प्रत्येक हलचल शांत हो गई और यही वजह है कि साधु इस रात को स्थिरता से भरी रात के रूप में देखते हैं। अगर किंवदंतियों को त्याग भी दिया जाए तो यौगिक परंपरा के अनुसार इस दिन और रात का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन आध्यात्मिक जिज्ञासु के सामने असीम संभावनाएँ प्रस्तुत होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से गुजरते हुए, उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ वे ये प्रमाणित कर रहे हैं कि आप जिसे जीवन के रूप में जानते हैं, जिसे आप पदार्थ और अस्तित्व के तौर पर जानते हैं, जिसे ब्रह्माण्ड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं, वह केवल एक ऊर्जा है जो अलग-अलग तरह से प्रकट हो रही है।
विज्ञान भी मानता है इस तथ्य को
तो यहां पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि यह वैज्ञानिक तथ्य ही प्रत्येक योगी का भीतरी अनुभव होता है। योगी शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जिसने अस्तित्व की एकात्मकता का अनुभव कर लिया हो। आमजन में योग शब्द की व्याख्या को लेकर कुछ विरोधाभास भी देखा जाता है। योग शब्द का अर्थ मात्र इतना ही नहीं है कि किसी एक अभ्यास या तंत्र की बात की जाए। योग शब्द का वास्तविक अर्थ यह है कि हम उस असीमित ऊर्जा को जानने की हर प्रकार की प्रबल इच्छा, अस्तित्व के उस एकत्व को जानने की इच्छा ही योग है। महाशिवरात्रि की वह रात, जो हमें इस अनुभव से साक्षात्कार करने का अवसर प्रदान करती है।
प्रकाश और अंधकार में शिव सत्य क्या है
मान्यता के अनुसार शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारमय दिन होता है। हर माह शिवरात्रि को मनाने तथा एक विशेष दिन महाशिवरात्रि को मनाना लगभग ऐसा ही है, जैसे अंधकार का उत्सव मनाना। कोई भी तार्किक मन, अंधकार के स्थान पर प्रकाश को चुनेगा। यहां पर इस तथ्य को कुछ इस प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है कि जब आप अपनी आँखें खोलते हैं और अपने आसपास देखते हैं, अगर आपकी दृष्टि केवल छोटी वस्तुओं तक सीमित होगी तो आपको सृष्टि के अलग-अलग रूप दिखेंगे। अगर आपकी दृष्टि वाकई ईश्वरीय तत्व की खोज में होगी, तो आप विस्तृत शून्य को ही अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति के रूप में देख सकेंगे। कुछ कण जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे आम तौर पर सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, पर ये विराट शून्य जिसने उन्हें थाम कर रखा है, सभी की दृष्टिï में नहीं आता है। वह अथाह, असीम शून्य ही शिव कहलाता है। आधुनिक विज्ञान भी आज यही प्रमाणित कर रहा है, कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और उसी शून्य में विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव, अथाह असीमित और अनंत हैं। जिनका न तो कोई आदि है न ही अंत क्यों कि शिव ही इस सृष्टिï का आदि व अंत है इसलिए उनको देवों के देव महादेव की उपमा दी गई है।
पृथ्वी पर विकसित प्रत्येक संस्कृति ने सदा उस दिव्य शक्ति की सर्वव्यापी और चारों ओर होने की बात कही है। अगर हम इस ओर ध्यान दें तो हमारे चारों ओर जो चीज रहती है वह अंधकार, शून्य और खालीपन...इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है। आमतौर पर जब लोग कल्याण की कामना कर रहे होते हैं, तो हम दिव्य की व्याख्या प्रकाश के तौर पर करते हैं। जब लोग अपनी खुशहाली की कामना करना छोडक़र, जीवन से परे जा कर विसर्जित होने के विषय में मनन करते हैं, अगर उनकी पूजा और साधना का लक्ष्य मुक्ति होता है, तो हम सदा उस परम की व्याख्या अंधकार के रूप में करते हैं।
प्रकाश आपके मन की छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घटता और बढ़ता रहता है और इसका अंत हो जाता है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य ही प्रकाश का स्त्रोत है। आप इसके प्रकाश को भी अपने हाथों की मदद से रोककर अंधकार की परछाईं बना सकते हैं। किंतु अंधकार तो सर्वव्यापी है, और सभी कुछ इसमें समाया है। अपरिपक्व मन वाले लोग इस संसार में सदा अंधकार को शैतान मानते आए हैं। पर जब आप उस दिव्य को सर्वव्यापी कहते हैं, तो स्पष्ट है कि आप दिव्य को अंधकार कह रहे होते हैं,क्योंकि सिर्फ अंधकार ही चारो ओर फैला हुआ है। यह हर तरफ है। इसे किसी का सहयोग नहीं चाहिए। प्रकाश सदा किसी स्त्रोत से आता है जो अपने-आप को जला रहा है। इसका एक आदि और अंत है। यह एक सीमित स्त्रोत से आता है। अंधेरे का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वव्यापी और सर्वत्र है। तो जब हम शिव कहते हैं, तो हम अस्तित्व की उसी विस्तृत शून्यता की बात कर रहे हैं। इसी अथाह शून्य के बीच कहीं सारी सृष्टि जन्म लेती है। शून्यता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।
तो जब शिवरात्रि की बात करते हैं, जो माह का सबसे अंधकारमय दिन है, तो यह एक अवसर है, जब व्यक्ति अपनी सीमितता को विलीन कर सकता है, सृष्टि के उस असीम स्त्रोत का अनुभव पा सकता है जो हर मनुष्य में बीज रूप में समाया है। महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है। ये आपको, हर मनुष्य के भीतर छिपे उस अथाह शून्य के अनुभव के पास ले जाती है, जो सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर, शिव को संहारक कहा जाता। वहीं दूसरी ओर, वे सबसे करुणामयी भी माने जाते हैं। उन्हें ही सबसे बड़ा दानी भी कहा गया है। यौगिक गाथाओं में अनेक स्थानों पर शिव की करुणा का परिचय मिलता है। उनकी करुणा के तरीके, अपने-आप में अनूठे व असाधारण रहे हैं। तो महाशिवरात्रि कुछ ग्रहण करने की विशेष रात्रि भी है।
सनातन पंचांग अनुसार संवत्सर के समापन का मास है फाल्गुन मास, जिसके समाप्त होते ही नए संवत्सर वर्ष का प्रारम्भ हो जाता है। फाल्गुन मास को फगुनई व फागुनी नाम से भी जाना जाता है। फाल्गुन ...
बेल का वृक्ष संपूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल है और बेलपत्र के दर्शन व स्पर्श करने मात्र से पाप शमन होता है। प्रभु आशुतोष के पूजन व अभिषेक में बिल्वपत्र का स्थान सर्वप्रथम है। जिसके ...
पुस्तके सदैव से ही एक मार्गदर्शक रूप में जीवन को सहेजने और संवारने का कार्य कर जीवन दर्शन को जीवांत करती हैं। पुस्तकों की भूमिका मनुष्य के जीवन व समाजिक निर्माण में कितनी सशक्त और उल्लेखनीय ...