संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 03-02-2022
शक्ति उपासना प्राचीन काल से ही सनातन संस्कृति में होती आ रही है। शक्ति उपासना से उपनिषदों, वेदों से लेकर कई तंत्र ग्रंथ तक ओतप्रोत हैं। शक्ति उपासना का महत्व और प्रसांगिकता को कोई भी झुठला नहीं सकता है। उपासना का महत्व जितना शक्ति प्राचीन काल में था, उतना ही आज भी है। शक्ति उपासना के प्रति सनातन धर्मियों का समर्पण सभी को स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। समय-समय पर दुनिया भर में ऐसे प्रमाण सामने आते रहे हैं, जिन्होंने विश्व के सामने दर्शाया है कि प्राचीनतम काल से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई हिस्सों में शक्ति की उपासना होती आ रही है। अनेकों बार ऐसे समाचार देखने व सुनने को मिलते हैं कि देश में ही नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य देशों में उत्खनन में देवी के विभिन्न स्वरूपों की प्रतिमाएं प्राप्त होती रही हैं। जो इस तथ्य का ठोस प्रमाण हैं कि शक्ति उपासना प्राचीन काल से ही सनातन धर्म का अभिन्न अंग रही है।
शक्ति के रुप में देवियों का स्वयं का भव्य प्रभामंडल है और उनकी सत्ता भी है। लोक-परलोक में देवी की उपासना का प्रभाव जनमानस पर दिखाई देता है। राजा से लेकर रंक तक सभी शक्ति की प्राप्ति के लिए देवी की उपासना किया करते थे और वर्तमान में भी कर रहे हैं। शक्ति उपासना करने वालों का शाक्त सम्प्रदाय ही पृथक दिखाई देता है। इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष स्थान है।
बहुधा लोग शक्ति उपासना हेतु मात्र दो ही नवरात्रियों के विषय में ही जानते हैं, किन्तु आश्विन एवं चैत्र माह में आने वाले नवरात्रियों के अतिरिक्त भी दो और नवरात्रयां भी हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता हैं। सनातन पंचांग अनुसार माघ एवं आषाढ माह में ये गुप्त नवरात्र आती हैं और यह शक्ति उपासना की साधना के लिए गुप्त रूप से जाग्रत की जाती है। प्रकट और प्रत्यक्ष नवरात्रि से अधिक गुप्त नवरात्रि का शक्ति साधकों के लिए दस महाविद्याओं की साधना का विशिष्ट महत्व है। इस अवधि में दस महाविद्याओं की साधना करके साधक को मनोवांछित सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
नवरात्र के समय साधना और तांत्रिक शक्तियों को सशक्त किए के विचार से साधक अत्यधिक रूप से विशेष विधियों के साथ गोपनीय उपासना करते हैं। गोपनीय नवरात्र के पूजन का स्वरूप भी सामान्य नवरात्र के पूजन के समान ही शक्ति के नौ रूपों का नियम से वामाचार पद्धति से उपासना करते हैं।
गुप्त नवरात्र में शक्ति पूजा एवं अराधना सरल नहीं है क्योकि पूजन विधि व्यक्त नहीं की जाती है, जिस कारण से ही इस नवरात्रि को गुप्त नवरात्र की संज्ञा प्राप्त है। गुप्त नवरात्र के पूजन मे भी अखंड जोत प्रज्वलित कर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त, संध्या तथा रात्रिकाल में शक्ति का पूजन-अर्चन भी होता है। एवं अष्टमी अथवा नवमी तिथि में व्रत पूर्ण कन्या पूजन भी किया जाता है।
सनातन पुराणो के अनुसार भगवान शिव की महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं। उग्र व सौम्य प्रवृत्ति के अनेक रुप धारण करने वाली महाकाली दस महा-विद्याऑ से ही जन्मी हैं। दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूपो को ही कहा जाता है। अद्वितीय रुप लिए हुए प्रत्येक महाविद्या प्राणियों के समस्त संकटों का हरण करने वाली हैं। इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है।
शिवपुराण उल्लेख मिलता है कि पौराणिक काल में दैत्य दुर्ग ने कठोर तप के बल ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर चारों वेद प्राप्त कर संसार मे उपद्रव करने लगा। वेदों की अनुपलब्धता के कारण देवता व ब्राह्मण पथ भ्रष्ट होते चले गए, जिसके परिणाम स्वरूप देव लोक और भूलोक पर वर्षों तक अनावृष्टि बढ़ती गई। दारुण दुर्दशा मे सभी देवता एकत्रित होकर माँ परमाम्बा के शरणागत होकर दैत्य दुर्ग का वध करने का अनुरोध करने लगे, तब ममतामयी, परम दयालु मां ने दुष्ट दैत्य दुर्ग के वध के निमित्त अपने ही अंगो से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नामक दस महाविद्याओं मे पारंगत शक्ति स्वरूपा गुप्त देवियो का अवतरण हुआ।
गुप्त नवरात्रि की समयावधि शाक्त एवं शैव धर्मावलंबियों हेतु पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होती है। उक्त अवधियो मे शक्ति स्वरूपा विद्या पारंगत माँ महाकाली की पूजा सहित प्रलय व संहार के देवता महाकाल को स्थान दिया जाता है। उक्त के अतिरिक्त संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की भी साधना पूरे निष्ठा से बहुत ही गुप्त स्थल अथवा किसी सिद्ध श्मशान में की जाती है। संसार में मात्र चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं, जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम अल्प अवधि में प्राप्त होता है और ये चार श्मशान घाट हैं, 1.तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), 2.कामाख्यापीठ का श्मशान (असम), 3.त्रयंबकेश्वर का श्मशान (नासिक) और 4.उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ श्मशान।
दस महाविद्याओं का महत्व
देवी काली को गुप्त तंत्र साधना में तांत्रिक देवी का रूप माना जाता है, जिनकी उपासना से प्राणी की समस्त तांत्रिक ऊर्जा एकत्रित और संचालित हो जाती है।
देवी तारा को बंधन और दोषो से मुक्ति का कारक माना जाता है, जिनकी उपासना मात्र से ही सर्वार्थ सिद्धि संभव हो जाता है और परारूपा, महासुन्दरी, कला-स्वरूपा माँ तारा सबकी मुक्ति का विधान रचती हैं।
माँ ललिता को समृद्धि व संपन्नता का कारक माना जाता है, जिनके जप-तप करने लेने मात्र से ही वैभव प्राप्त हो जाता है। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का भी स्थान प्राप्त है।
माँ भुवनेश्वरी सृष्टि के समस्त ऐश्वर्य की स्वामिनी कही जाती हैं, जिनके कृपा मात्र से ही सर्वोच्च सत्ता एवम विशिष्ट पद मिलने लग जाता है।
त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं, जिनकी सात्विक उपासना मात्र से ही तमोगुण कम होने लगते और रजोगुण मे वृद्धि आती है।
माता छिन्नमस्तिका को मां चिंतपूर्णी की संज्ञा भी दी जाती है, वे अपने उपासक अथवा भक्तों को किसी भी प्रकार के कष्टों में उलझने नहीं देती हैं और घनघोर से घनघोर कष्टो से भी मुक्ति का मार्ग सरलता से बना देती हैं।
माँ धूमावती को अत्यंत विकराल स्वरूपा कहा जाता है क्योकि शत्रु संहार निमित्त ही माँ धूमावती का अवतरण हुआ है। जिनके दर्शन अथवा पूजन मात्र से ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
माँ बगलामुखी स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं। इनकी उपासना से असाध्य शत्रु का स्वयं ही नाश संभव होने लगता है और प्राणी का जीवन निष्कंटक हो जाता है।
देवी मातंगी वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड को समाहित कर लेने की असीम शक्ति है। मातंगी उपासको व भक्तों को अभय का वरदान प्रदान करती हैं।
माता कमला सुख सम्पदा की प्रतीक हैं। भौतिक सुख की आधिष्ठात्री देवी की अराधना सांसारिक चक्र को पूर्ण करने हेतु सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
ग्रंथानुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का भी अवतरण हुआ था। जिनकी सनातन वैदिक रीति से साधना करने मात्र से गुप्त सिद्धियां पाने का कालखंड गुप्त नवरात्रि अवधि है, माँ सरस्वती साधक को आध्यात्मिक एवं मानसिक शक्तियां प्रदान करती हैं।
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