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Amavasya (Amawas)- अमावस्या को सकारात्मक बनाये - विज्ञान व प्रकृति का मेल, ज्ञान और संस्कृति का खेल.....


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 28-01-2022

खगोलीय घटनाओं और उनसे धरती पर होने वाले प्राकृतिक प्रभावों का मानवीय क्रिया कलापों से संबंधो का विस्तृत व सम्पूर्ण अध्ययन सनातन संस्कृति में किया गया है और वर्तमान काल की तथाकथित वैज्ञानिक सोच और प्रयोगों के निष्कर्षो को सनातन संस्कृति में पहले ही आत्मसात कर लिया था। जिनके आधार पर ही सनातन संस्कृति के सभी प्रयोगों में प्रकृति और मानव का अटूट संबंध स्पष्ट दिखता है। इसी का परिणाम है कि लगभग सभी सनातनी हर माह होने वाले दो प्रमुख खगोलीय घटनाओं (पूर्णिमा और अमावस्या) को लेकर नियमों का पालन करते हैं क्योकि प्रकृति में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का मानव जीवन पर प्रभाव अवश्य पड़ता है।
चंद्रमा मन का कारक और जल का स्वामी भी है, यह तथ्य सभी सनातनी मानते और जानते हैं। इस तर्क को वैज्ञानिकता के दृष्टिïकोण से भी माना गया है कि समुद्र में आने वाले ज्वार-भाटा का सीधा संबंध चंद्र से होता है। अर्थात जिन तथ्यों को वर्तमान कालखंड का विज्ञान अब बता रहा है, उसे सनातनी मनीषियों ने सहस्त्रो वर्षों पूर्व ही ज्ञात कर लिया था कि चन्द्रमा की रश्मियों का मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में जब एक ओर चंद्र अपने पूर्ण सौन्दर्य के साथ अपनी रश्मियों को बिखेरता है, तो चंद्रमा का प्रभाव मानवीय मन मस्तिष्क पर स्पष्ट रूप से दिखता है और वहीं, जब कृष्ण पक्ष की अमावस्या में चंद्रमा की रश्मियां धूमिल होते हुए ओझल हो जाती हैं, तो उनका प्रभाव भी मानवीय जीवन पर पड़ता है। यदि विद्वानों के द्वारा बताए गए नियमों को कोई भी मनुष्य अपनाता है तो निश्चित ही उसके जीवन में लाभ व आनंद की प्राप्ति होती है।  

इसी क्रम में सर्वविदित है कि अंधकार सदैव से ही नकारात्मकता का प्रतीक है। जब क्षितिज पर चंद्रदेव के दर्शन नहीं देते है और अमावस्या की रात्रि चारो ओर घनघोर अंधकार रहता है, तब स्पष्ट रूप से इस अंधकार का मानवीय मन-मस्तिष्क पर भी गहर प्रभाव पड़ता है। इस नकारात्मकता के प्रभाव को क्षीण् करने के लिए मनीषियों ने अमावस्या को लेकर कुछ नियम बतालाये हुए हैं, परंतु उन नियमों को ज्ञात करने से पूर्व वेदांग शास्त्रों में अमावस्या को लेकर क्या तथ्य और तर्क दिये गए हैं, उनकी कुछ सूक्ष्म मौलिक जानकारी का होना आवश्यक है। शास्त्रों में विशेष रूप से अमावस्या को पितरों से जोडकर देखा गया है। अत: इस दिवस कुछ कार्य ऐसे हैं जिनमें कुछ विशेष सावधानियां बरतने से सभी पर ईश्वर और पितृ दोनों की कृपा संयुक्त प्राप्त होती है, तो वहीं कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिनको करने से पितृ रुष्ट रह सकते हैं।

शास्त्रों में देवी लक्ष्मी को प्रसन्नता और मनो-विनोद की देवी माना जाता है, और जहा स्वच्छता होती है, वही लक्ष्मी निवास करती है जबकि स्वच्छता का प्रतीक झाड़ू ही बताया गया है। ऐसे में लोक मान्यता है कि अमावस्या तिथि को झाड़ू घर लाने से लक्ष्मी देवी नाराज हो जाती हैं। परिणाम स्वरुप घर में नकारात्मक ऊर्जा के बढऩे से धन सम्बन्धी आवश्यक वस्तुएँ कम होने लगती है और रोग व्याधियां व व्यय बढ़ने लगता है। इसलिए अमावस्या तिथि को झाड़ू की खरीदारी से कलह और सन्ताप प्रवेश करता है। लोक मान्यता यह भी है कि गेहूं और आटा अमावस्या तिथि को घर नहीं लाना चाहिए। विशेष रूप से भाद्र मास की अमावस्या तिथि के दिन इस नियम का पालन करना चाहिए। इस दिन आटा गेहूं की खरीदारी पितरों के निमित्त मानी जाती है। कहते हैं यह अन्न खाने से खाया हुआ अन्न पितरों को प्राप्त हो जाता है।

अमावस्या तिथि पितरों का दिवस है और इस तिथि का स्वामी शनि को माना गया है। अमावस्या तिथि पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का भी दिन माना गया है, ऐसे में सात्विक भाव को बनाए रखने के लिए श्रृंगार और तेल ना लगाने की मान्यता है। एक मत यह भी है कि अमावस्या के दिन चंद्रमा का पक्ष परिवर्तन होता है और संक्रांति के दिन सूर्य की स्थिति बदलती है। इसलिए भी सकारात्मकता को बनाए रखने के लिए तेल ना लगाने और सात्विक भाव बनाए रखने की बात कही जाती है।

अमावस्या के नकारात्मकता के प्रभाव को क्षीण् करने के लिए मनीषियों ने कुछ नियम बतालाये हुए हैं, यदि कोई भी मनुष्य इन नियमों का पालन करता है तो वह शत-प्रतिशत नकरात्मक प्रभाव से बच सकता है।

अमावस्या तिथि से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य :-

  1. इस दिवस सूर्योदय से पूर्व उठकर तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा का निर्वहन करने से स्वयं को और पितरो को आत्म शान्ति मिलती है, लेकिन महामारी के काल में घर पर ही साधारण जल में गंगा जल की कुछ बूंदे मिश्रित कर स्नान करने से भी उतना ही पुण्य मिलेगा।
    2. अमावस्या तिथि को श्रद्धानुसार व्रत या उपवास के साथ पूजा-पाठ, दान करने से दारिद्र्य समाप्त होता है।
    3. अमावस्या तिथि को पूरा घर झाडू-पौछा लगाकर स्वच्छ करने के उपरान्त गंगाजल या गौमूत्र का छिडक़ाव से रोग व्याधि नष्ट होती हैं।
    4. अमावस्या तिथि को प्रातः उषा काल में ही पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से वैभव बढ़ता है।
    5. अमावस्या तिथि को पीपल और वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करने से जन्मजमंतर के पाप कम होते हैं।
    6. माना जाता है कि अमावस्या तिथि को मौन रहकर स्नान और दान करने से सहस्त्रो गौदान का फल मिलता है।
    7. अमावस्या तिथि को तामसिक भोजन यानी लहसुन-प्याज और मांसाहार से बुद्धि और विवेक नष्ट होता है
    8. अमावस्या तिथि को किसी भी प्रकार का नशा और पति-पत्नी के सहवास करने पर सुख शांति नष्ट होती है।
    9. विद्वानों के अनुसार अमावस्या तिथि को मन संतुलित नहीं होता है, जिस कारण इस तिथि पर कोई भी बड़ा निर्णय लेने से बचना चाहिए। अन्यथा निर्णय गलत सिद्ध होने पर संकट का सामना करना पड़ता है।
    10. अमावस्या की रात्रि सुनसान स्थल या श्मशान की ओर जाने से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव और अधिक सक्रिय हो जाता हैं।
    11. घर में क्लेश करने से पितरो की कृपा समाप्त होती है। यथासंभव अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-दीप कर ध्यान अवश्य करें।
    12. अमावस्या पर जहां तक संभव हो यात्राओ का त्याग करना चाहिए। मान्यता है कि इस तिथि में यात्रा करना कई परेशानियों को न्योता देना होता है।
    13. अमावस्या पर क्षौर कर्म (जैसे नाखून काटना, बाल कटवाना, शेविंग बनवाना आदि) करने से ईश्वर रुष्ट हो जाते है।
    14. इस तरह की मान्यता है कि अमावस्या के दिन तेल नहीं लगाना चाहिए। अमावस्या को तेल का दान करना शनि के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है और शनि दोष को दूर करता है।

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