संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 07-01-2022
भारत के अधिकतर सनातन पर्व व उपवास सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। पौराणिक शास्त्रों में भगवान सूर्य देव को आरोग्य का कारक बताया गया है। इनकी उपासना करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। यदि मनुष्य नियमपूर्वक अपने धर्म का पालन कर ले, तो सूर्य देव की कृपा से कभी भी रोग-व्याधि नहीं होंगे। सूर्य देव ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत है और पूरी सृष्टि को वृद्धि देने वाली ऊर्जा से भरपूर प्रकाश देते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड ही सूर्य की दैनिक गतिविधियों में लीन रहता है। समस्त सृष्टि का नवीन अंकुर सूर्य की शक्ति से ही उत्पन्न होते है। मानव के अस्तित्व में सूर्य के योगदान को लेकर सिर्फ धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि विज्ञान के भी ग्रंथ भरे पड़े हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सभी नौ ग्रहों में सूर्य ग्रह के श्रेष्ठतम होने के कारण ही इनको ग्रहों का राजा माना गया है, लेकिन सभी ग्रहों के राजा होने के साथ-साथ सम्पूर्ण ब्रह्मांड को सक्रिय व ऊर्जा से भरपूर भी रखते हैं। सूर्य देवता की पूजा करने से ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश पड़ते ही पूरी प्रकृति ही अपने सौन्दर्य से नहाने लगती है। अतएव सनातन धर्मियों के लिए सूर्यदेव पूजनीय हैं। सूर्य की आराधना को मानव जाति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सूर्य देव की कृपा से ही शारीरिक कष्ट दूर हो सकते हैं। मानव शरीर पांच तत्वों से बना है और यह शरीर तभी अपनी क्रिया कर सकता है, जब सूर्य से ऊर्जा प्राप्त हो। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि समस्त क्षेत्रों में सफलता के नए आयाम गढऩे के लिए सूर्य देव की शरण में जाना चाहिए। इसलिए मानव ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य देव हैं।
भानु सप्तमी तिथि को सूर्य की विशेष पूजा होती है। अलग-अलग क्षेत्रों में भानु सप्तमी को सूर्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी, सूर्य रथ सप्तमी, रथ सप्तमी और आरोग्य सप्तमी आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है। इन सभी नामों के पीछे सूर्य के तेज की अनुभूति सम्मिलित है। पौष मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भानु सप्तमी के नाम से सम्बोधित करते हैं।
भानु सप्तमी का महत्व
इस वर्ष पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी के रूप में मनाया जाएगा। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सप्तमी तिथि के साथ रविवार सयुक्त होने वाली को भानु सप्तमी कहा जाता है। इस दिवस सूर्य भगवान सात घोड़ों के रथ सवार होकर पहली बार प्रकट हुए थे इसी कारण से सूर्य देव की उपासना व भक्ति का सबसे श्रेष्ठ दिन रविवार को ही मानते हुए इस दिवस को सूर्य महाराज का पूजन होता है। इनकी उपासना व भक्ति करने से परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन सूर्य को अर्घ देने का महत्व है। इस पर्व पर सूर्य को जल चढ़ाने वाले भक्त सूर्य देव की विशेष कृपा के पात्र होते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि भानु सप्तमी तिथि दिवस को सूर्य को जल से अर्घ समर्पित से बौद्धिक प्रखरता, मानसिक शांति और चेतना मिलती है और उन्हें किसी भी प्रकार के शारीरिक कष्ट की प्राप्ति नहीं होता है। जिसका प्रभाव होता है की जातक को दरिद्रता, दुखी, संताप कभी दृष्टि दोष नहीं होता है।
भानु सप्तमी व्रत पूजा विधि:-
ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पूर्व) में उठकर व्रत करने वाले उपासकों को शारीरिक रूप से शुद्धता के उपरान्त जल से भरे तांबे पात्र में लाल चंदन, लाल फूल, चावल और कुछ गेहूं के दाने डालकर सूर्य की पहली किरण के साथ ही सूर्यदेव को जलाभिषेक देते हुए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ पूर्ण करते हुए सूर्य नमस्कार कर दिन भर उपवास रखने का संकल्प लें। सूर्य देव को अर्घ्य देने के उपरान्त श्रद्धानुसार अन्न, वस्त्र या कोई उपयोगी वस्तुओं का दान अवश्य कर गौमाता को हरा चारा दिया जाए तो विशेष फल की प्राप्ति होती है। व्रतपारण में नमकीन पदार्थ भोज्य में कदाचित ना लें।
व्रत और पूजा के लाभ:-
शास्त्रानुसार जो भी जातक प्रतिदिन सूर्य को पूरे विधान और निष्ठा के साथ जल समर्पित करने से जीवन में रोग,शोक आदि का शमन होता है। अत: प्राणियों प्रतिदिन प्रात: काल सूर्य देव को जल अवश्य अर्पित करें, क्योंकि सूर्य की कृपा से देह प्रकृति अनुरूप ढल जाता है और भक्त निरोगी होता है। साथ ही बौद्धिक क्षमता बुद्धि प्रखर, स्मरण शक्ति का भी विकास और मन को शांति की प्राप्ति होती है। भानु सप्तमी के दिन की जाने वाली पूजा पुण्य कर्म बहुत अच्छे परिणाम, ब्राह्मण सेवा से अधिक फल देती है। गाय को हरा-चारा खिलाना सबसे उत्तम बताया गया है।
सूर्य देव को जल चढ़ाने की विधि:-
भक्तों के लिए संभव हो, तो सूर्योदय के समय किसी नदी, तालाब या नहर आदि में स्नान कर पूर्व दिशा में सूर्य देव के दर्शनोपरान्त कुछ आवश्यक सामग्री जैसे लाल चंदन, लाल फूल, चावल और कुछ गेहूं के दाने आदि को जल भरे तांबे के पात्र दाहिने हाथ से सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए, जिससे सूर्य के प्रकाश की प्रथम किरण सीधे उस जल पर पड़े और जल से प्रवर्तित सूर्य की किरण शरीर को स्पर्श कर सके। इस प्रक्रिया में ध्यान रहे कि सूर्य को जल अर्पित करते समय पात्र से गिरने वाला पानी से सूर्य के दर्शन करे । इस प्रक्रिया से मस्तिष्क को त्वरित ऊर्जा मिल जाती है। सूर्य को जल अर्पित करते समय गायत्री मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूर्य की पूजा के उपरान्त क्षमता के अनुसार गरीबों और ब्राह्मणों को दान कर सकते हैं।
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