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Basant Panchmi - बलिदानी पंथ, वसंत पंचमी संग ... माई रे, रंग दे बसंती चोला।


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 02-02-2022

सनातनी संस्कृति के महत्व को विश्व जानता है, जिसमे बसंत पंचमी का महत्व किसी से गुप्त नहीं है। शताब्दियों से बसंत ऋतु कवियों के लिए काव्य रचना का प्रेरणा स्त्रोत रहा है, लेकिन बसन्त उत्सव पंचमी पर्व का मात्र एक दर्शन है। इतिहास के पृष्ठो में बसंत पंचमी को कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जो इस तिथि को और अधिक ऐतिहासिक बनाती हैं।

सर्वप्रथम बसंत पंचमी का सम्बंध त्रेता युग से जोड़ता है और भगवान राम के लिए भी यह तिथि अविस्मरणीय थी। जब रावण द्वारा सीता के हरण हुआ और सीता जी की पता लगाते- लगाते श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते-बढ़ते दंडकारण्य वन जा पहुंचे, जहां अकस्मात को ही बसंत पंचमी तिथि को उनकी भेंट (भीलनी) शबरी से हुई, जिसको उनके पूज्य गुरु मातंग ऋषि ने शबरी की भक्ति, सात्विकता एवं सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न होकर वरदान था कि तुमसे भेंट करने भगवान विष्णु श्रीराम अवतार में स्वयं चलकर तेरी कुटिया तक आएंगे। उन्हे केवल श्री राम के दर्शन ही नहीं, अपितु भगवान स्वयं आकर मिलेंगे एवं तुम्हें उनकी सेवा का अवसर भी प्राप्त होगा। आश्रम मे रह कर विष्णु अवतार श्री राम की प्रतीक्षा करें। ऐसे में जब श्रीराम जी शबरी माता की कुटिया पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठ। भक्तिरस मे डूबी शबरी प्रतिदिन जंगल से भगवान राम के लिए एक भी बेर खट्टा न हो, इसके लिए वह एक-एक बेर तोड़ मीठे बेर श्री राम देती, जिसे भगवान राम ने बड़े चाव व प्रेम से खाकर भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया। जहां शबरी मां का आश्रम था, वहीं आज शबरी माता का मंदिर है। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे।

वसंत पंचमी तिथि पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। जिन्होने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, परन्तु जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने इस चौपाई (चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥) के माध्यम से पृथ्वीराज को संदेश दिया।

1192 ई. में वसंत पंचमी के दिन पृथ्वीराज चौहान ने बिना कोई भूल किए हुए तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक-दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया।

वसंत पंचमी गुरु रामसिंह कूका के बलिदान की भी याद दिलाती है। जिनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी तिथि को लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ और कुछ समय पश्चात वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण रणजीत सिंह की सेना में त्याग पत्र देकर घर आकर खेती-बाड़ी में लग गये,  और वही रहकर लोगों को आध्यात्मिक प्रवचन सुनने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरु रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। जिसके परिणाम स्वरूप गुरु रामसिंह को भी पकडक़र बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

वसंत पंचमी पर्व कठोर संघर्ष, बलिदान, भक्ति के मार्ग से होकर निकलता है। बसंत के पीले चावल खाने का अधिकार उन्हें ही है, जो देश व समाज के लिए विषपान करना जानता हो। बसंत की शीतलता पर पहला अधिकार गुरु तेगबहादुर व उनके शिष्यों जैसी महानात्माओं को है जो धर्म की रक्षा के लिए कड़ाहे में उबलना और रुई में लिपट कर जलने की कला में पारंगत हैं। हमारे राष्ट्रजीवन में आया बसंत कभी वापिस न हो इसके लिए हमें हर परिस्थितियों का मुकाबला करने, हर तरह के बलिदान करने को तत्पर रहना होगा। यही इस बसंत का संदेश है।

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