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Basant Panchmi - जीवन मे मधुमास है बसंत, ईश्वरीय प्रार्थना व चेतना है बसंत... समझ गए तो जीवन पर्यन्त आनंदित रहेंगे...


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 02-02-2022

पूरे विश्व में सनातन संस्कृति के पर्व, त्योहार और उत्सव किसी से छिपा नहीं है। ऋषि मुनियो और सनतान मनीषियों ने इन पर्वों व उत्सवों के माध्यम से संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण संदेश देने का प्रयास किया है। बस आवश्यकता है कि सही दिशा में चिंतन और मनन करने की.... कई शताब्दियों से सकारात्मक रूप  में सनातनी पूर्वजों ने मानव को सफल, सुखमय और आनंदित जीवन जीने के लिए एक पूरी प्रणाली विकसित की है।

सनातन शास्त्रो में मकर संक्रांति से लेकर वसंत पंचमी तक की अवधि को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। संक्रांति से वसंत पंचमी के आगमन तक सूर्य की ऊष्मा व प्रकृति का अद्भुत मेल, पुराने विचार व पूर्वाग्रह का परित्याग कर अपने समस्त क्रिया-कलापों में नवीनता समाहित करने की प्रेरणा देती है। सूर्य के उत्तरायण होते ही सभी उत्सवधर्मी हो जाते हैं।

प्रकृति के प्रत्येक आयाम से जीव जीवन के अनेकों विरोधाभासों के बीच सकारात्मक जीवन जीने का कौशल भी उपजता है। उदाहरण के लिए जैसे एक गुलाब का फूल जब कांटों से घिरा रह कर भी मुस्कराता हुआ पर्यावरण को आकर्षक व सुगंधित बनाए रखता है। ठीक उसी प्रकार से प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्य को भी अपनी विनम्रता, करुणा, सहृदयता व सहनशीलता को स्थिर रखते हुए अपने परिवेश में शांति, सौहार्द और सहिष्णुता की सुगंध फैलाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। गुलाब की गन्ध तो वायु के विपरीत नहीं जा सकती, किंतु मनुष्य के गुणों की सुगंध तो सभी दिशाओं में फैल सकती है। मनुष्य को फलदार वृक्ष की भांति धैर्य और सहनशक्ति धारण करते हुए जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिए, जो पत्थर की चोट सहन करके भी मीठे फल समर्पित कर देता है।

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश, एक आध्यात्मिक घटनाक्रम है, क्योंकि इस स्थिति में सूर्य की ऊष्मा और प्रकाश दोनों ही तेजोमय होने लगते हैं। संक्रांति का सही भावार्थ है- रूपांतरण यानी ऊर्जा का परिवर्तन। परिवर्तन पुरानी सोच का, परिवर्तन पुरानी रूढि़वादी परंपराओं का, परिवर्तन उन पूर्वाग्रहों का जिनकी वजह से व्यक्ति का जीवन नीरस व व्यक्तित्व निस्तेज हो गया है। मनुष्य-जीवन में नई संभावनाओं और तेजोमय व्यक्तित्व के लिए जरूरी है- नए चिंतन, नए मनन व नई ईश्वरीय प्रार्थना को गहराई से प्रकट करना। व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा पुरुषार्थ जो उसके जीवन में पारस्परिक आस्था और विश्वास के नए आयाम स्थापित करता है और सफलता के नए द्वार खोलता है।

वसंत-पंचमी ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का महोत्सव है, जो वीणा को अपने कर-कमलों में धारण किए हुए हैं। जो संदेश देती हैं कि हम अपने परिवेश को नित्य नए दृष्टिकोण व काव्यात्मक अभिव्यक्ति से रुचिपूर्ण बनाएं। प्रत्येक व्यक्ति में कोई ना कोई विशेष गुण अवश्य होता है। जब प्रसंशक किसी दूसरों व्यक्ति के सद्गुणों की प्रशंसा करते हैं, तो प्रसंशक के हृदय में स्वाभाविक रूप से मधुमास घटित होता है और स्वयं के भीतर नूतनता समाहित होने लगती है। यदि किसी दूसरों व्यक्ति बुराई करने के बजाय उनकी अच्छाई को पहचानने की समझ है और  उनकी कुशलताओं को समझने का विवेक है, तो मकर संक्रांति से वसंतोत्सव के आने तक लोक कल्याण और विकास करने की शक्ति और ज्ञान प्राप्त हो जाती है।

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